निरंकारी संत समागम के दूसरे दिन हुई एक आकर्षक सेवा दल रैली।
केकड़ी 13 फरवरी(पवन राठी) समर्पित एवं निष्काम भाव से युक्त होकर ईश्वर के प्रति अपना प्रेम प्रकट करने का माध्यम ही भक्ति है। उक्त उद्गार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने दिनांक 12 फरवरी 2022 को महाराष्ट्र समागम के द्वितीय दिन के समापन पर अपने प्रवचनों द्वारा व्यक्त किए।
केकड़ी ब्रांच मुखी अशोक कुमार रंगवानी के अनुसार सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने प्रतिपादन किया कि वास्तविक भक्ति किसी भौतिक उपलब्धि के लिए नहीं की जाती अपितु प्रभु परमात्मा से निस्वार्थ भाव से की जाने वाली भक्ति ही प्रेमाभक्ति होती है। यह एक ओतप्रोत का मामला होता है जिसमें भक्त भगवान एक दूसरे के पूरक होते हैं। भगवान और भक्त के बीच का संबंध अटूट होता है जिसके बिना भक्ति संभव नहीं है।
सतगुरु माता जी ने आगे कहा कि भौतिक जगत में मनुष्य को कुछ बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जिसे यदि हम एक बच्चे की जीवन की यात्रा को देखें तो पहले पढ़ाई फिर काम और उसके पश्चात उसी काम में तरक्की की सीढ़ियों को चढ़ते चले जाना है किंतु दूसरी ओर यदि हम भक्तिमार्ग को देखें तो वहां पर भक्त अपने आपको गिनवाने की बात नहीं करता अपितु गवांने की बात करता है सच्चा भक्त वही है जिसमें स्वयं को प्रकट करने की भावना नहीं होती है बल्कि वह तो ईश्वर के प्रति पूर्ण तरह समर्पित होता है भक्ति में जब हम इस पहलू को प्राथमिकता देते चले जाएंगे तो हम यह महसूस करेंगे कि अपनी अहम भावना को त्याग कर इस प्रभु परमात्मा के साथ इकमिक होते चले जाएंगे
*सेवा दल रैली*
केकड़ी सेवादल इंचार्ज लक्ष्मण धनजानी ने बताया कि समागम के दूसरे दिन का शुभारंभ एक आकर्षक सेवादल रैली से हुआ जिसमें महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए कुछ सेवादल भाई बहनों ने भाग लिया।
इस रैली में स्वयंसेवकों ने जहां पी.टी. परेड,शारीरिक व्यायाम के अतिरिक्त मलखंब,मानवीय पिरामिड,रस्सी कूद जैसे विभिन्न करतब एवं खेल प्रस्तुत किए। मिशन की विचारधारा और सद्गुरु की सिखलाई पर आधारित लघुनाटिकाएं भी इस रैली में प्रस्तुत की गई।
सतगुरु माता जी ने सेवादल की प्रशंसा करते हुए कहा कि सभी सदस्यों ने कोविड-19 के नियमों का पालन करके मर्यादित रूप से रैली में सुंदर प्रस्तुतीकरण किया और साथ ही माताजी ने यह संदेश भी दिया कि हमें मानवता की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहना है सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने सेवादल को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए कहा कि सेवा का भाव ही मनुष्य में मानवता का संचार करता है और यही सेवा की भावना हमें स्मरण कराती है कि सेवा किसी वर्दी की मोहताज नहीं,वर्दी हो या ना हो सेवा का भाव होना आवश्यक है सेवा के द्वारा ही अहम भावना को समाप्त किया जा सकता है और सेवा करते समय हमें इस बात का ध्यान अवश्य देना चाहिए कि हमारे मुख और कर्म से कोई ऐसा कार्य ना हो जाए जिससे किसी को ठेस पहुंचे।