चिंतन की ऑक्सीजन, अब क्या होगा कांग्रेस का जीवन

-उदयपुर चिंतन शिविर में जो भी निर्णय किए गए हैं, क्या उन पर पूरी तरह अमल हो पाएगा
-आपसी फूट और मनमुटाव दूर कर बड़े नेता एक हो पाएंगे
-क्या वास्तव में युवाओं को दी जाएगी तरजीह
-क्या सभी धर्मों, जातियों व वर्गों को साथ लेकर चलेगी कांग्रेस

प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
लो जी अब उदयपुर का चिंतन भी पूरा हो गया। शिविर में चढ़ी चिंतन-मंथन की ऑक्सीजन से क्या कांग्रेस को नया जीवनदान मिल पाएगा। क्या वह फिर से अपने पुराने वजूद में आ पाएगी। क्या राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर के बड़े नेता आपसी फूट और मनमुटाव को दूर कर पार्टी को फिर से जिंदा या खड़ा करने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलने को तैयार हो जाएंगे। क्या अब उनके बीच कुर्सी का मोह नहीं रहेगा। क्या पार्टी अपने संगठनात्मक ढांचे में युवाओं को तरजीह देगी। क्या बूथ स्तर तक संगठन को फिर से सक्रिय करने के लिए कोई ठोस नीति अपनाई जाएगी। क्या केवल चुनावों के वक्त ही याद आने वाले जमीनी कार्यकर्ताओं को गले लगाया जाएगा। क्या सभी धर्मों, वर्गों और जातियों को साथ लेकर चलेगी कांग्रेस। यह सवाल इसलिए उठाए जा रहे हैं, क्योंकि कांग्रेस को जीवनदान देने के लिए हुए चिंतन-मनन में भी यह मुद्दे जरूर उठे होंगे। जो निर्णय शिविर में किए गए हैं, क्या उन पर पूरी तरह अमल हो पाएगा। इन सवालों के जवाब ही यह तय करेंगे कि कांग्रेस में फिर से जान आ पाएगी या नहीं। चिंतन शिविर में भले ही अनेक मसलों पर चर्चा हुई, लेकिन यह मुद्दा शायद ही किसी ने रखा हो कि उन जमीनी कार्यकर्ताओं को भी तवज्जो दी जानी चाहिए, जो जरूरत पड़ने पर पार्टी के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। शिविर में यह तो विचार हुआ कि पूरे देश में सिमटती जा रही कांग्रेस को कैसे फिर से जिंदा किया जाए।

प्रेम आनंदकर
कांग्रेस नेताओं और कर्ता-धर्ताओं, भले ही आप कितने ही जतन कर लें, जब तक जमीनी कार्यकर्ताओं को कदम-कदम पर साथ लेकर नहीं चलेंगे, उनको तवज्जो नहीं देंगे, उनकी उपेक्षा बंद नहीं करेंगे, तब तक कांग्रेस का उद्धार नहीं हो सकता है। यह वही कार्यकर्ता होते हैं, जो चुनाव और सभाओं में झंडे लेकर सबसे आगे चलते हैं, गला फाड़-फाड़ कर नारे लगाते हैं, बड़े नेताओं की जय-जयकार करते हैं। लेकिन जब कांग्रेस सत्ता में आती है, तो सबसे पहले उन्हीं कार्यकर्ताओं को भूल जाती है। यदि कांग्रेस का पूरे देश से सफाया होने से बचाना है, तो बदलाव की शुरूआत बड़े नेताओं को पहले खुद से करनी होगी। कुर्सी का मोह छोड़कर पार्टी के लिए काम करना होगा। कुर्सी का मोह छोड़ने की मिसाल केकड़ी के विधायक डाॅ. रघु शर्मा ने पेश की, जिन्होंने गुजरात का प्रभारी बनाए जाने पर चिकित्सा व स्वास्थ्य मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। यदि अन्य बड़े नेता भी ऐसा करने लग जाएं, तो यकीन मानिए कांग्रेस को जीवनदान मिल जाएगा। वरना यह बात बुरी लग सकती है, यदि अब भी कोई सबक नहीं लिया, तो कांग्रेस का राजस्थान और छत्तीसगढ़ से भी सफाया हो सकता है। यदि बदलाव की शुरूआत अच्छी हो गई, तो हो सकता है, अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में राजस्थान व छत्तीसगढ़ को कायम रखने के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी कांग्रेस फिर से अपना वजूद बना ले।

error: Content is protected !!