जिंदगी की जंग हारी बहादुर बेटी जीना चाहती थी..

अपनी आंखें बंद कर चुकी वो पूरे देश के आंखें खोल गई। सामूहिक दुष्कर्म पीड़ित युवती की भले ही मौत हो गई पर जाते-जाते वह समाज को जागने का संदेश दे गई। उसने जान की परवाह किए बिना दरिंदों का मुस्तैदी से सामना किया। अस्पताल में जिंदगी की जंग भी दिलेरी से लड़ी। उसके साहस व इच्छाशक्ति से सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर भी हैरान हैं। उसकी प्रतिभा के कायल उसके जानकार भी हैं। उसने जिस मुस्तैदी से 14 दिन जिए, उस जज्बे को सलाम।

सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि इलाज के दौरान जब भी वह होश में आई, कभी उसके चेहरे पर निराशा का भाव नहीं दिखा। वह हमेशा अपने कॅरियर व भविष्य को आगे बढ़ाना चाहती थी। यहां तक कि उसने अपने माता-पिता को भी दुख की घड़ी में ढांढस ही बधाया। सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बीडी अथानी भी उसके इच्छाशक्ति की तारीफ कर चुके हैं।

सफदरजंग अस्पताल में इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि जिस तरीके से पीड़िता को चोट पहुंचाई गई थी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। फिर भी जब अस्पताल पहुंची तो वह होश में थी। घटना के बाद करीब दो घंटे तक होश में रही और बातें भी कर रही थी। अत्यधिक खून बहने व असहनीय पीड़ा के बावजूद दो घंटे तक होश में रहना बड़ी बात थी। सर्जरी के बाद होश आने पर वेंटिलेटर पर थी, फिर भी वह कागज पर लिखकर अपनी बात बता रही थी। वह हर हाल में ठीक होना चाहती थी-जीना चाहती थी।

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