सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर विद्युत वितरण निगम व राज्य सरकार से जवाब तलब किया

ग्रेच्युटी की गणना और उपार्जित अवकाश के बदले वेतन की गणना में वेतन वेतन का लाभ नहीं दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर विद्युत वितरण निगम व राज्य सरकार से जवाब तलब किया ( सुप्रीम कोर्ट का मामला)

1.9. 2006 से 31 दिसंबर 2006 तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों को ग्रेच्युटी की गणना और उपार्जित अवकाश के बदले वेतन में छठे वेतन आयोग के अनुसार पे फिक्सेशन का लाभनहीं दिए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ के न्यायाधीश एसअब्दुल नजीर और न्यायाधीश वी रामासुब्रह्मण्यम ने अजमेर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड और राज्य सरकार से जवाब तलब किया है उल्लेखनीय है कि प्रार्थी जगदीश प्रसाद सोनी जोकि उक्त निगम में लेखापाल के पद से 30 सितंबर 2006 को सेवानिवृत्त हुए ने अपने अधिवक्ता डीपी शर्मा के माध्यम से रिट याचिका प्रस्तुत कर राज्य सरकार के नोटिफिकेशन दिनांक 12 सितंबर 2008 को चुनौती दी गई है जिसके तहत 1.9. 2006 से 31 दिसंबर 2006 तक सेवानिवृत्त कर्मचारियों को ग्रेच्युटी की गणना और उपार्जित अवकाश के बदले वेतन में छठे वेतन आयोग के अनुसार पे फिक्सेशन का लाभ नहीं दिया गया तथा ग्रेच्युटी की सीमा 3,50,000 से 10,00,000 का लाभ 1 जनवरी 2007 से दिया गया प्रार्थी के अधिवक्ता का तर्क था कि जब छठे वेतन आयोग के अनुसार वेतन का फिक्सेशन किया जा चुका है तो राज्य सरकार के स्पष्टीकरण के आधार पर नियमों को निष्प्रभावी नहीं है जा सकता क्योंकि राजस्थान पेंशन सेवा नियम 1996 के नियम 45 व 55 के अनुसार ग्रेच्युटी की गणना अंतिम वेतन जो कि प्राप्त हो रहा है या प्राप्त होने का हक है के अनुसार की जानी चाहिए जबकि स्पष्टीकरण के अनुसार उक्त कर्मचारियों को लाभ नहीं दिया गया प्रार्थी ने स्पष्टीकरण को चुनौती दी परंतु राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मामला इस आधार पर खारिज कर दिया कि पूर्व में इसी प्रकार के स्पष्टीकरण को पूर्ववर्ती खंडपीठ के द्वारा सही ठहराया गया जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष हैं चुनौती दी गई प्रार्थी के अधिवक्ता डीपी शर्मा और डॉ सुशील बलवदा का तर्क था कि राज्य सरकार स्पष्टीकरण जारी कर किसी भी नियम को निष्प्रभावी नहीं कर सकती उनका यह भी तर्क था कि ग्रेच्युटी की सीमा इसलिए बढ़ाई गई क्योंकि नया वेतनमान जारी किया गया यह वेतनमान 1 सितंबर 2006 से जारी किया गया जबकि ग्रेच्युटी की सीमा 1 जनवरी 2007 से बढ़ाई गई जो कि असंगत है प्रार्थी के अधिवक्ता का यह भी तर्क था कि इस मामले में एकल पीठ के न्यायाधीश द्वारा राज्य सरकार के स्पष्टीकरण को अवैध ठहराया गया परंतु खंडपीठ के द्वारा बिना कोई कारण प्रदर्शित किए एकल पीठ के निर्णय को निरस्त कर दिया जो कि गैर कानूनी था इसके अलावा उन्होंने माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समान परिस्थितियों में एसोसिएशन ऑफ कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी टीचर्स के मामले का हवाला दिया जिसके तहत राज्य सरकार के द्वारा ग्रेच्युटी की सीमा पश्चात व्यक्ति तारीख से बढ़ाई जाने के कारण उस तारीख से पूर्व में सेवानिवृत्त कर्मचारियों को लाभ नहीं दिए जाने को अनुचित माना मामले की सुनवाई के पश्चात राज्य सरकार तथा अजमेर विद्युत वितरण निगम से जवाब तलब किया

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