गणिनी आर्यिका 105 यशस्विनी माताजी ने कहा कि संस्कारों का जन्म बचपन में हो जाता है पचपन मैं नहीं जब संस्कारों का बीजारोपण होना होता है तब हम लोग विवेक को भूल जाते हैं एक बालक में संस्कार बचपन से ही आ जाए तो वह युवावस्था तक उसे ले जा सकता है जब युवावस्था में व संस्कारवान होगा तो उसका बुढ़ापा उसका जीवन सार्थक हो जाएगा
माता पिता अपने लाड प्यार में अपनी संतानों को सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं माता का धर्म यह होता है कि वह अपने बालक को अच्छे संस्कार दे एक माता अपने बालक की मां होने के साथ एक गुरु का रूप भी होती है जो से चलना उठना बैठना के साथ-साथ संस्कार भी देती है
आधुनिकता के परिवेश में माताओं को फुर्सत नहीं है वह ना खुद संस्कारवान हो रही है ना अपनी संतानों को संस्कार दे पा रही है अगर अपना बुढ़ापा माताओं को सुधारना है तो अपने बच्चों को अच्छे संस्कार से पोषित करें
आज की प्रवचन सभा प्रातः काल 8:30 बजे भगवान पार्श्वनाथ कॉलोनी में प्रारंभ हुई सभा में पुखराज पहाड़िया प्रेमचंद बड़जात्या सुनील पालीवाल अशोक अजमेरा
आदि उपस्थित थे
