*बाहर और भीतर से हल्का होकर विचरण करने पर ही लक्ष्य की प्राप्ति संभव : गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि*

संघनायक गुरुदेव श्री प्रियदर्शन मुनि जी महारासा ने फरमाया कि दसवेकालिक सूत्र के माध्यम से आगम वाणी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। एक प्यारा सा सूत्र चल रहा था कि हल्का होकर विचरण करने का प्रयास करें, और भगवान भी हल्के होकर ही विचरण करते थे। दीक्षा लेकर भगवान आगे बड़े ही थे और दुइजत नामक तापस ने उन्हें चातुर्मास हेतु आमंत्रित किया। भगवान ने उनकी भावनाओं को ध्यान में रखा।
पौष की सर्दी, ज्येष्ठ की गर्मी को भगवान समभाव से सहन करते। भगवान के दिव्य रूप से आकर्षित नारिया भगवान से आकर काम याचनाये करती, तो भी भगवान उन सब से अनाशक्त अपने ही ध्यान में मग्न रहते ।
चातुर्मास काल में चातुर्मास हेतु दुइजंत तापस के यहां पधारे। वहां दुइजंत तापस ने प्रभु को एक घास फूस की झोपड़ी दी। दूसरे तापस तो गायों को भगाकर अपनी झोपड़ी की रक्षा कर लेते,मगर वर्धमान गायों को नहीं भगाते तब अन्य तापस की शिकायत पर दुइजंत तापस ने वर्धमान को समझाना चाहा। तब प्रभु महावीर ने विचार किया कि मैंने झोपड़ी की रक्षा के लिए संयम नहीं लिया है। तब आत्मा की रक्षा और आत्म कल्याण के लिए प्रभु ने पांच प्रतिज्ञा स्वीकार की।अब में प्रीतिकर स्थान में नहीं रहूंगा, अब मैं सदा कार्योत्सर्ग में रहूंगा, भिक्षा के लिए और मार्ग पूछने के अतिरिक्त मौन रहूंगा, हाथों में ही आहार आदि ग्रहण करूंगा, गृहस्थ के आदर, सत्कार व मान सम्मान आदि में निर्लेप बना रहने का प्रयास करूंगा।
गुरुदेव श्री सौम्यदर्शन मुनि जी महारासा ने दसवेकालिक सूत्र के तीसरे अध्ययन का विवेचन करते हुए फरमाया कि इस अध्ययन में साधु के 52 अनाचारों का वर्णन है।साधु को उनका त्याग करना चाहिए। साधु के लिए निर्गंथ शब्द का प्रयोग किया है, कि उनको राग द्वेष की ग्रंथियां से मुक्त रहना, साधु को किसी प्रकार के खेल आदि नहीं खेलने ,जूते चप्पल आदि का उपयोग नहीं करना, शैयातर के यहां आहार पानी आदि ग्रहण नहीं करना, कंद मूल आदि जो सचित हो उनका उपयोग नहीं करना। वैसे भी जैनों की पहचान होती है कि वह जमीकंद का त्याग करते हैं। ऐसे में साधु को भी व्यवहार धर्म को निभाने के लिए जमीकंद का वर्जन करना चाहिए।
इसी के साथ साधु को लघुभूत होकर विचरण करने के लिए फरमाया है। क्योंकि जितना हल्का वजन लेकर चलेगा ,उतनी ही यात्रा करने में सुविधा रहेगी। बाहरी परिग्रह और भीतरी कषाय आदि से हल्का होकर प्रभु महावीर के बताये मार्ग पर चलने का प्रयास करेंगे, तो यत्र तत्र सर्वत्र आनंद ही आनंद होगा।
आज ज्ञान पंचमी दिवस पर तप आराधना का कार्यक्रम रखा गया।बड़ी संख्या मे उपवास,आएंबिल,एकासन व नीवी तप की आराधना की गई।
धर्म सभा का संचालन हंसराज नाबेड़ा ने किया।
पदमचंद जैन

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