*जनता के विश्वास पर अविश्वास*

रासबिहारी गौड
सुना है नई सरकार के शपथ ग्रहण को देखते हुए सुरक्षा की दृष्टि से दिल्ली हवाई निषिद्ध क्षेत्र घोषित हुआ है अर्थात् कि इस बीच दिल्ली जाने के लिए कोई आपात परिवहन उपलब्ध नहीं होगा ।इतना ही नहीं समूची राजधानी में धारा 144 , सेना और सुरक्षा बटलियानों की फ़ौज, अनेक ड्रोन सहित इतना चाक चौबंद इंतज़ाम है कि समझ नहीं आ रहा शपथ ग्रहण समारोह है या युद्ध की तैयारी ..।
इतना भय..! इतना डर..! अपने ही देश में ..! अपने ही लोगों से..!
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन का संस्मरण पढ़ा था जिसने गांधी जी ने तात्कालिक गवर्नर जनरल की सुरक्षा में तैनात अमले को देखकर कहा था-
“आप इतने डरे हए हैं ….आप हम भारतीयों पर विश्वास नहीं करते तो आपको हम पर शासन करने का कोई अधिकार नहीं हैं..आपको देश छोड़ देना चाहिए..”
इतना ही नहीं उन्होंने उपस्थित राजा महाराजों की भव्यता को भी साफ़ शब्दों में ललकारा था कि उनके चमकीले परिधान और गहने भारत की गरीब जनता का शोषण से कमाया हुआ धन है।
जब हिंदू अतिवादियों ने बीस जनवरी 1948 को गांधी जी पर जानलेवा हमला किया और किन्ही कारणों से सफल नहीं हुआ तब तात्कालिक गृह मंत्री बल्लभ भाई पटेल ने उनकी सुरक्षा में सिपाही नियुक्त करने चाहे किंतु। गांधी जी ने यह कहकर कि जिस दिन ममुझे अपने लोगों से डर लगेगा, उस दिन मेरा जीवन जीने लायक़ नहीं रहेगा , सुरक्षा की किसी भी बंदोबस्त के लिए साफ़ इनकार कर दिया था। परिणाम उसी समूह ने दस दिन बाद 30 जनवरी को गांधी जी की हत्या कर दी। गांधी जी नहीं रहे लेकिन भारत की जनता के प्रति उनका विश्वास आज तक ज़िंदा है। यह और बात है कि कुछ लोगों को गांधी फ़िल्म देखकर ही गांधी जी का पता चला था और फ़िल्म में भी उक्त दोनों दृश्य नहीं फ़िल्माए गए थे ।
ऐसा ही संस्मरण नेहरू जी को लेकर भी है । जब गांधीजी उपवास पर थे और बाहर खड़ी हिंसक भीड़ में से एक अदृश्य आवाज़ ने सबको चौंका दिया था – “ गांधी को मर जाने दो..!”
नेहरू भीड़ में बिना किसी साधन या साथी चिल्लाते हुए पहुँच गए ,”कौन बोल रहा है ? सामने आए..! पहले मुझे मारे ..!”
हज़ारों की भीड़ में सन्नाटा खींच गया ।न केवल सन्नाटा बल्कि भीड़ का समूचा हिंसक भाव तिरोहित हो गया।
मेरी पीढ़ी की याद में इंदिरा गांधी के ऑपरेशन ब्लू स्टार बाद सुरक्षा तैनात दो सिक्ख को हटाने की सिफ़ारिश तब भी तात्कालिक प्रधानमंत्री ने सारे ख़तरे मोल लेते हुए यह कहकर कि इससे एक समुदाय विशेष के प्रति मेरा अविश्वास झलकेगा, प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। भले ही बाद में उन्ही सुरक्षा कर्मीयों ने इंदिरा गांधी की हत्या की ,किंतु अपने लोगों केप्रति प्रधानमंत्री के विश्वास ने मिसाल क़ायम की ।
उपरोक्त उदाहरण किसी व्यक्ति विशेष का गौरव गान ना होकर सार्वजनिक जीवन में रहते हुए अपने लोगों पर विश्वास करने का है ।
यह मान भी लिया जाए कि वर्तमान प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर कोई वास्तविक ख़तरा है भी तो उसके निराकरण के अन्य तरीक़े हैं ।आप गोपनीयता की शपथ गोपनीय तरीक़े से ले सकते हैं। सादगी पूर्ण आयोजन कर सकते हैं..किंतु राजधानी को हवाई यात्रा निषिद्ध बनाना, चप्पे चप्पे ओर सुरक्षा कर्मीयों की तैनाती ..यह न केवल आभासीप्रभा मंडल है वरन इस दिखावे मेंआम जन का बहुत सा पैसा और संसाधन बर्बाद होते हैं..मानवीय तकलीफ़ों का तो कहना ही क्या…।
बहरहाल, नई सरकार भी उसी दिखावे, लवाजमे , डर और जनता के अविश्वास के साथ शपथ ग्रहण कर रही है ।

*रास बिहारी गौड़*

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