– श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’
वक्त बेवक्त वो शख्स यूं ही नहीं चींखता है
दर्द मुसलसल उसके पास जो आता है
अपनी खुशी अपने जहां में गुम है सभी
यहां दूसरों की खुशी कहां किसे भाता है
एक गम गया नहीं, दूसरा चला आता है
समझ सका नहीं मैं, ग़म से कैसा ये नाता है
दुनिया भर के रंजोगम से भीड़ता रहता है
पता नहीं इस धंधे से भला वो क्या पाता है
गुलशन में लगा है मेला बहारों का ‘श्याम’
खुशनुमा नजारा कहीं नजर नहीं आता है 00