आरक्षण की मूल भावना अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग को समाज में समानता और सम्मान दिलाने की हैं

अजमेर/बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने जब भारत का संविधान बनाया था तो उसमें स्पष्ट था की जो दलित धनाढ्य होते हुए भी छुआछूत के भेदभाव से उच्च वर्ग के पास नहीं बैठ पाते । इसलिए जब तक उन्हें आरक्षण द्वारा मजबूती प्रदान कर एक साथ उठने बैठने व भाईचारे के साथ रहने का अवसर प्रदान ना हो, जो आज करोड़ों दलित भाई बहनों को नहीं है । तब तक संविधान की भावना फलीभूत नहीं होगी और उस समय तक, जब आपस में मन ही नहीं मिलेंगे तो कोई भी फैसला जमीन पर कारगार नहीं होगा।

हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायालय की सात सदस्य पीठ का जो फैसला आया है मैं उसका सम्मान करते हुए कहना चाहती हूं कि उस पीठ में एक भी एसटी का प्रतिनिधि नहीं था ।उच्च स्तरीय सम्मान के पद पर रहते हुए, ऐसे व्यक्तियों को जमीन पर दलितों के साथ क्या हो रहा है, इसका पता ही नहीं होता ।
आरक्षण का मूल उद्देश्य नौकरी पाने के साथ-साथ यह वर्ग जमीन पर भी उच्च वर्ग के साथ बराबरी के साथ उठे बेठे व उसे वहां पर्याप्त सम्मान मिले, यह स्थिति कस्बों, गांवो व ढ़ानियों में आज भी नहीं है ।
अगर मैं उच्चतम स्तर की बात करूं तो अनुसूचित जाति के राष्ट्रपति श्री रामनिवास कोविंद जी को राम मंदिर के शिलान्यास व प्राण प्रतिष्ठा दोनों अवसरों पर नहीं बुलाया गया । इसी प्रकार नई संसद के संसद भवन के शिलान्यास व उद्घाटन समारोह दोनों जगह ही दलित श्री रामनिवास कोविंद जी एवं आदिवासी श्रीमती द्रोपदी मुर्मू जी दोनों राष्ट्रपतियों को नहीं बुलाया गया । लोग अभी भूले नहीं हैं की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निवास को जब ओबीसी के अखिलेश यादव ने खाली किया था तो योगी आदित्यनाथ ने प्रवेश से पहले उसे गंगाजल से धूलवाया था । मैं दूर बात नहीं करूं तो भारत के अनुसूचित जाति के राष्ट्रपति के.नारायण व राजस्थान के मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया ने जब पुष्कर के एक मंदिर में दर्शन किए थे तो बाद में उस मंदिर को गंगाजल से धुलवाया गया था।

यह विचार राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस के सचिव सुश्री मीनाक्षी प्रताप यादव ने एक प्रेस विज्ञप्ति में व्यक्त किये, उन्होंने आगे कहा कि
राजस्थान में अभी भी सरकारी कार्यालयों में कई जगह जहां कार्यालय का प्रमुख अधिकारी अनुसूचित जाति का है वहां का उच्च वर्ग का स्टाफ व यहां तक की चपरासी भी उन्हें पानी नहीं पिलाता वह उनके आदेशों की एक सीमा तक अवहेलना करता है । कहने का तात्पर्य यह है की समाज में अभी तक भी पूरी तरह कुछ अपवादों को छोड़ कर, बदलाव नहीं आया है ।
समाचार पत्रों में अक्सर पढ़ने को मिलता है की उच्च वर्ग की हताई के सामने से अनुसूचित जाति की महिला आज भी चप्पल /जूते पहनकर नहीं निकल पाती व शादी के अवसर पर दूल्हा घोड़े पर बैठकर नहीं निकल पाता । यह अलग बात है की कोई ठान ही ले तो भारी पुलिस जाप्ते के साथ वह घोड़े पर बैठकर निकल पाता है, लेकिन यह हिम्मत कितने लोग दिखा पाते हैं । वह बाद में ऐसे परिवार की गांव में क्या स्थिति होती है यह बताने की आवश्यकता नहीं ।

इसलिए संविधान के मूल भावना का बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के विचार के अनुसार, वह संविधान में लिखे अनुसार आज भी अक्षरत पालना नहीं हो रही है ।
आरक्षण में हमें आर्थिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक व बौद्धिक व अन्य तरह से आरक्षित किया जाना चाहिए । जब हम उच्च शिक्षा के साथ-साथ उच्च कोचिंग प्राप्त कर पाएंगे तभी नौकरी मैं आवश्यक आरक्षण का नंबर आता है । आज दलित व्यक्ति ज्यादातर सरकारी स्कूलों में पढ कर बिना कोचिंग लिए जब प्रतियोगी परीक्षा में बैठता है तो वैसे ही उसका नंबर नहीं आता और आरक्षित होने के बाद भी अनुसूचित जाति के करीब आधे उच्च वर्ग के पद खाली ही रह जाते हैं ,जिन्हें बाद में उच्च समाज वर्ग से भर दिया जाता है , तो यह आरक्षण के नाम पर जो मखौल चल रहा है ,सरकार को पहले इस पर विचार कर अलग से कानून बनाना चाहिए की अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित पद हर हाल में अनुसूचित जाति वर्ग से ही भरे जाएंगे ।
आज उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में कितने अनुसूचित जाति/ जनजाति के माननीय जज साहिबान है, ढूंढने से भी बामुश्किल मिलेंगे ।
माननीय उच्चतम न्यायालय के फैसले से धीरे-धीरे नौकरी में मिल रहा आरक्षण भी समाप्ति की ओर बढ़ेगा, ऐसा प्रतीत होता है । सरकारें दलितों के नाम पर जो भी योजनाएं लेकर आती है वह जमीन पर बिल्कुल भी खरी नहीं उतरती, दलितों को रोजगार के लिए दिया जाने वाला ऋण कागजों में 2 लाख का होता है लेकिन बैंक बामुश्किल ₹50000 मंजूर करती है उसमें से भी सब्सिडी की एफडी कराकर अपने पास रख लेती है और ऋण लेने वाले को विभिन्न बीमा योजनाएं लेने को बाध्य किया जाता है , जिससे रोजगार के लिए गरीब के पास नाम मात्र के राशि बचती है ,जिससे वह व्यापार नहीं कर सकता उल्टे कर्ज के नीचे दब जाता है ।
ऐसी स्थिति में अपने अधिकारों की रक्षा के लिए अगर दलित वर्ग 2अप्रैल 2018 की तर्ज पर कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ।
यहां यह भी आवश्यक है कि जब तक जातीय जनगणना नहीं होगी तब तक दलित वर्ग की कौन सी जाति कहां खड़ी है, जब इसकी ही हमें जानकारी नहीं हैं ,जो इस फैसले से पहले होना जरूरी था , जो नहीं हो पाई । फिर यह फफैसला लागू ही कैसे होगा इसलिए पहले जातिगत जनगणना होना आवश्यक है जिससे जितनी जिसकी जाति उतनी उसकी भागीदारी, लागू हो सके ।
उच्चतम न्यायालय का ये आदेश SC/ST समाज मे फूट डालने और उनकी एकता तोड़ने का काम करेगा ना की उनके हित में l
डॉ भीमराव अंबेडकर ने कहा था शिक्षित बनो, संगठित रहो व संघर्ष करो । तो अब दलित वर्ग व उसके समर्थक उच्च वर्ग के लोगों को दलितों के हित में संघर्ष करने का अवसर आया है वह दलित वर्ग संघर्ष के लिए तैयार है ।

(मीनाक्षी प्रताप यादव),
सचिव ,
राजस्थान प्रदेश महिला कांग्रेस

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