मेरा अनुभव। ( कड़वी सच्चाई )

मैं एक वरिष्ठ नागरिक होने के नाते
घर, गांव-समाज की गतिविधियां
बीते कल और आज के वर्तमान में,
जो कुछ भी देखा, पाया और खोया है
उन्हीं सच्चाई को रखने जा रहा हूं।

उस वक्त की बात बहुत ही निराली थी
आपसी भाईचारे, मेल-मिलाप के आनन्द
और आज के आनन्द में काफी अंतर है,
पहले एक-दूसरे में अपनापन महसूस करते थे
और आज एक दूसरों में स्वार्थी पन भरा है।

पहले अपनों से बड़ों को श्रद्धा पूर्वक
संस्कार के दायरे में रहकर मिलते-जुलते
मान-सम्मान के साथ आशीर्वाद लेते थे,
परन्तु आज दूर से ही हाथ हिलाकर
गुड़ मार्निंग, गुड़ नाईट कहकर चले जाते हैं।

पहले हम संपूर्ण परिवार एक साथ
एक ही कमरे में रुखी-सुखी खाकर
अभाव के बावजूद भी खुश रहते थे,
परन्तु आज सारी सहुलियत मिलने पर भी
निराश होकर नाखुशी जताई जाती है।

पहले परिवार का एक भी सदस्य
किसी कारणवश आने में विलम्ब हो जाते
तो सारे परिवार दुःख में डूब जाया करते थे,
परन्तु आज परिवार से दूर विदेशों में
वहीं की नागरिकता लेकर लौटते नहीं है।

पहले बिना किसी सुविधा के बावजूद भी
अपनों की अनहोनी की खबर सुनते ही
मिलने के लिए दौड़े-दौड़े चले आते थे,
परन्तु आज हजारों अपनों के बावजूद भी
व्हाट्सऐप में सिर्फ मैसेज ही भेज देते हैं।

पहले बड़े, बुजुर्गो को आगे रखकर
हर शुभ कार्य की शुरुआत करते थे
माता-पिता को ईश्वर का दर्जा देते थे,
परन्तु आज उसी वृद्ध माता-पिता को
वृद्धाश्रमों में छोड़कर पिंड छुड़ा लेते है।

आज का समाज,आज का नया युग
किस दिशा की ओर अग्रसर हो रही है
यह कहना कतई भी गलत नहीं होगा कि,
वर्तमान जिस तरह लोगों में परिवर्तन हो रही हैं
यह भविष्य में बड़ी विनाश का संकेत दे रही है।

गोपाल नेवार, ‘गणेश’सलुवा, खड़गपुर, पश्चिम मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल। 9832170390.

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