बाहर का जाया ही अजमेर में पनपता है

राजनीति के लिहाज से अजमेर को चरागाह माना जाता है। पार्टियों के हाईकमान जानते हैं कि यहां से किसी की दमदार दावेदारी है नहीं, सो जिस किसी को भी एडजस्मेंट के लिए यहां भेजा जाएगा, उसे यहां के दावेदार व जनता शिरोधार्य करेगी।
बाहर के नेताओं के अजमेर में पनपने का एक लंबा सिलसिला है। रोचक तथ्य है कि वर्षों से यहां बसे अनेक नेता भी कभी बाहर से ही यहां आए और आज अपना वजूद रखते हैं। वे भले ही अब स्थानीय कहे जाएं और यहीं रच-बस गए हैं, मगर वास्तविकता से कैसे नकारा जा सकता है कि वे बाहर से आ कर ही यहां पनपे हैं। मौजूदा भाजपा विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी का उदाहरण तो सबको पता है। वे उदयपुर से लाए गए। कुछ नेताओं का जिक्र करें तो आप भी चौंक जाएंगे। यथा सर्वश्री औंकार सिंह लखावत, धर्मेश जैन, पूर्णाशंकर दशोरा, डॉ. श्रीगोपाल बाहेती, भंवर सिंह पलाड़ा आदि आदि। तत्कालीन अजमेर नगर परिषद के सभापति स्वर्गीय वीर कुमार भी बाहर से ही यहां आए थे। विष्णु मोदी भी बाहर से आ कर कांग्रेस के सांसद बने और बाद में भाजपा के टिकट पर मसूदा विधायक चुने गए। यहां जन्मे नेता भी स्थापित हुए हैं, मगर उनकी संख्या कम ही है।
वस्तुतः स्थानीय नेताओं के स्थापित न होने का मूल कारण ये है कि वे कभी अपना जनाधार नहीं बना पाए। चुनाव के वक्त उनकी दावेदारी होती जरूर है, मगर जनाधार न होने के कारण पार्टियां उनको तवज्जो नहीं देतीं। आपको याद होगा कि एक बार कांग्रेस हाईकमान ने स्थानीय इकाई की ओर से डॉ. श्रीगोपाल बाहेती का नाम प्रस्तावित करने के बाद भी सचिन पायलट को प्रत्याशी बनाया। भाजपा ने भी हाई प्रोफाइल सचिन से मुकाबला करने के लिए स्थानीय दावेदार प्रो. रासासिंह रावत, पूर्व मंत्री प्रो.सांवरलाल जाट, धर्मेन्द्र गहलोत, सरिता गेना, पुखराज पहाडिया, मदनसिंह रावत, भंवरसिंह पलाड़ा, सुरेन्द्र सिंह शेखावत, डॉ. भगवती प्रसाद सारस्वत, डॉ. कमला गोखरू आदि को साइड में रख कर उदयपुर की श्रीमती किरण माहेश्वरी को चुनाव मैदान में उतार दिया। इसी प्रकार जब पहली बार प्रो. देवनानी अजमेर लाए गए तो यहां हरीश झामनानी, तुलसी सोनी, जगदीश वच्छानी सरीखे दावेदार थे, मगर भाजपा हाईकमान ने उन्हें उपयुक्त नहीं माना।
अब बात करते हैं कि आखिर क्या वजह है कि स्थानीय नेताओं का जनाधार बन नहीं पाता। इसकी एक मात्र वजह यही समझ में आती है कि ये नेता ग्राउंड पर ठीक से काम नहीं करते और मात्र पार्टी में सक्रियता के नाते टिकट मांगते हैं। जनता में उनकी पकड़ तो होती नहीं है, केवल पार्टी सिंबल के दम पर चुनाव लडना चाहते हैं। छिटपुट उदाहरणों को छोड़ दिया जाए तो यह याद नहीं आता कि किसी नेता ने स्थानीय किसी समस्या के लिए बडा जन आंदोलन खड़ा किया हो। शहर की सबसे बड़ी समस्या पेयजल, यातायात व पार्किंग की है, मगर आज तक कोई ऐसा आंदोलन नहीं हुआ कि प्रशासन को मजबूर हो कर इसका समाधान करना पड़ा हो। दैनिक नवज्योति के संपादक श्री दीनबंधु चौधरी व युवा भाजपा नेता श्री भंवर सिंह पलाड़ा ने आईआईटी के लिए एक आंदोलन खड़ा किया, मगर उसे पूरा जनसमर्थन नहीं मिला। परिणाम स्वरूप सरकार पर दबाव नहीं बनाया जा सका। यूं आंदोलन हुए हैं, मगर केवल पार्टी बैनर पर। उसमें किसी नेता विशेष की निजी भूमिका नहीं रही। नतीजा ये है कि आज अजमेर एक भी नेता ऐसा नहीं है, जिसकी एक आवाज पर पूरी जनता साथ खड़ी हो जाए। यानि कि जब तक स्थानीय नेता जनता पर अपनी पकड़ नहीं बनाएंगे, पार्टी हाईकमान इसी प्रकार बाहरी नेताओं को पेराटूपर की तरह उतारते रहेंगे।

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