जैन धर्म के तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी की शिष्याओं मुमुक्षु बहनों राजुल बाई, मुमुक्षु खुशी बाई, मुमुक्षु भावना बाई, मुमुक्षु कनिष्का बाई की उपस्थिति में इस वर्ष सामुहिक रूप से सुंदर विलास स्थित तेरापंथ भवन में त्याग तपस्या के पावन पर्व पर्युषण महापर्व को मनाया जा रहा है। पर्युषण के अंतिम दिन मुमुक्षु राजुल जी ने कहा कि सभी जीवों से राग- द्वेष मिटाकर शुद्ध मन से ओर शुद्ध भावना से प्रतिक्रमण करके साल भर में जितने भी पाप और गलतियां की हो, उन सभी की क्षमा याचना करने का यह संवत्सरी पर्व है। जिनसे वेर-विरोध है, उनसे भी और जिनसे वेर- विरोध ना हो उनसे भी क्षमा याचना करना है। क्योंकि क्षमा ही वीरों का आभूषण होता है। वीरता के आभूषण को धारण करने वाला ही एक दिन महावीर बनता है।
पापों को करने में ताकत की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन किए गए पापों का प्रायश्चित करने में बहुत ताकत की जरूरत होती है। क्योंकि प्रायश्चित करने से बड़ा से बड़ा पाप भी धुल जाता है। दूसरों के पाप दोष को न देखकर अपने पाप और दोषों का प्रायश्चित करने का यह पावन दिवस है। आपका एक भव लाखों भव सुधार भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है। इसलिए इस महावीर के शासन में ज्ञान,शील ओर तप की भावना से जितना भी पुण्य कमाना चाहते हो कमा लो। संवत्सरी महापर्व आत्मसाधना, क्षमायाचना ओर पापों की आलोचना का पर्व है।
अशोक छाजेड़
अध्यक्ष तेरापंथ भवन
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