तीर्थराज पुष्कर

dr. j k garg
अरावली पर्वत श्रृंखला का नाग पर्वत अजमेर और पुष्कर को अलग करता है सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्या स्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। पुष्कर मे अगस्तय, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि इत्यादि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएँ आज भी नाग पहाड़ में हैं। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार तीर्थो के गुरु पुष्कर की महत्ता इससे ही स्पष्ट हो जाती है कि पुष्कर स्नान के बिना चारों धाम की यात्रा का पुण्य फल भी अधूरा रहता है। 52 घाटों में गऊघाट, वराहघाट,वीर गुर्जर घाट, ब्रह्मघाट, जयपुर घाट प्रमुख हैं। जयपुर घाट से सूर्यास्त का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है। विदेशी पर्यटकों को यह दृश्य बेहद भाता है। झील के बीचोंबीच छतरी बनी है। पुष्कर के सम्बन्ध में पोराणिक मान्यतायें—– पुष्प से बना पुष्कर ——पद्मपुराण में प्राप्त विवरण के अनुसार एक समय ब्रह्मा जी को यज्ञ करना था, उसके लिए उपयुक्त स्थान का चयन करने के लिए ब्रह्मा जी ने प्रथ्वी पर अपने हाथ से एक कमल पुष्प को गिराया, यह पुष्प अरावली पहाडियों के मध्य गिरा और लुढकते हुए दो स्थानों को स्पर्श करने के बाद तीसरे स्थान पर ठहर गया. जिन तीन स्थानों को पुष्प ने प्रथ्वी को स्पर्श किया, वहां जलधारा फूट पडी और पवित्र सरोवर बन गए | सरोवरों की रचना एक पुष्प से हुई, इसलिए इन्हें पुष्कर कहा गया | प्रथम सरोवर कनिष्ठ पुष्कर, द्वितीय सरोवर मध्यम पुष्कर कहलाया एवं जहां पुष्प ने विराम लिया वहां एक सरोवर बना, जिसे ज्येष्ठ पुष्कर कहा गया(ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के श्री विष्णुजी और कनिष्ठ पुष्कर के देवता रुद्र हैं)। | अन्य मान्यताओं के मुताबिक योगीराज श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था। पुष्कर का गुलाब तथा पुष्प से बनी गुलकंद, गुलाब जल इत्यादि बहुत प्रसिद्ध हैं इन सबका का बड़ी मात्रा मे निर्यात भी किया जाता है जिससे करोड़ों रुपयों की आय होती है । डा.जे.के.गर्ग

पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर
पुष्कर में स्थित ब्रह्माजी के एक मात्र मंदिर को ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में बनवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है एवं तथा इसमें ब्रह्माजी के वाहन हंस की आकर्षक आकृतियाँ हैं। मन्दिर में चतुर्मुखी ब्रह्माजी, देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। कहते है कि विक्रम संवत्‌ 713 में आदि शंकराचार्यजी ने ब्रह्माजी की मूर्ति की स्थापना की थी। ब्रह्मा मन्दिर प्रवेश द्वार संगमरमर का है वहीं दरवाजे चांदी के बने हैं। यहां भगवान शिव को समर्पित एक छोटी गुफा भी बनी है। ब्रम्हा मंदिर में लगे सैकडों चांदी के सिक्कों पर दानदाता के नाम भी खुदे हुए हैं। मंदिर के फर्श पर मनमोहक एक चांदी का कछुआ भी है। ज्ञान की देवी सरस्वती के वाहन मोर के चित्र भी ब्रह्माजी के मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं। यहां गायत्री देवी की एक छोटी प्रतिमा और किनारे ब्रह्माजी की चार मुखों वाली मूर्ति को चौमूर्ति कहा जाता है। मंदिर के पीछे रत्नागिरि पहाड़ पर जमीन तल से 2369 फुट की ऊँचाई पर ब्रह्माजी की प्रथम पत्नी सावित्री का मंदिर है। यज्ञ में शामिल नहीं किए जाने से कुपित होकर सावित्री ने केवल पुष्कर में ब्रह्माजी की पूजा किए जाने का श्राप दिया था। कुछ वर्षोँ पूर्व राजपुरोहित समाज द्वारा बाड़मेर जिले के आसोतरा में भी ब्रह्माजी के मन्दिर का निर्माण करवाया गया है |
पुष्कर और पुष्कर का मेला पुष्कर मेला राजस्थान का सबसे prshid मशहूर फेस्टिवल है। रेत में सजे-धजे ऊंटों को करतब करते हुए देखने का एक्सपीरियंस ही अलग है। इस मेले में आकर आप कला और संस्कृति के अनूठा संगम देख सकते हैं। हालांकि, इस बार लंपी चर्म रोग के फैलने के कारण यहां के फेमस पशु मेले के बिना ही आठ दिन का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।
इस मेले में अल-अलग प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। मेले में ट्रेडिशनल और फ्यूजन बैंड भी अपनी परफॉर्मेंस का प्रदर्शन करेंगे। इसके अलावा मेले में टेस्टी डिशेज और सुंदर शिल्प कौशल भी प्रदर्शित किया जाएगा।
ले की शुरूआत कार्तिक पूर्णिमा के दिन होती है। इस बार ये मेला अक्टूबर 31 (सोमवार) से नवंबर 09 (बुधवार) को खत्म होगा। ये मेला रेत पर कई किलोमीटर तक लगता है। खाने पीने से लेकर, झूले, नाच गाना सब यहां होता है। पुष्कर मेले में हज़ारों की संख्या में विदेशी सैलानी भी पहुंचते हैं। अधिकतर सैलानी राजस्थान सिर्फ इस मेले को देखने ही आते हैं। सबसे अच्छा नज़ारा तब दिखतक्या होता है मेले में?ये खासतौर पर ऊंटों और पशुओं का मेला होता है। पूरे राजस्थान से लोग अपने अपने ऊंटों को लेकर आते हैं और उनको प्रदर्शित किया जाता है। ऊंटों की दौड़ होती है। जीतने वाले को अच्छा खासा इनाम भी मिलता है। पारंपरिक परिधानों से ऊंट इस तरह सजाए गए होते हैं कि उनसे नज़र ही नहीं हटती। सबसे सुंदर ऊंट और ऊंटनी को भी इनाम मिलता है। ऊंटों की सवारी करवाई जाती है। यही नहीं ऊंटों का डांस और ऊंटों से वेटलिफ्टिंग भी करवाई जाती है। ऊंट नए नए करतब दिखाते हैं। नृत्य होता है, लोक गीत गाए जाते हैं और रात को अलाव

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