बात तकरीबन 1990 की है। दैनिक न्याय में एक लेख प्रकाशित होने पर तत्कालीन प्रबंध संपादक स्वर्गीय श्री विश्वविभूति विदेह के विरुद्ध मुकदमा दर्ज हुआ। जैसा कि अखबार मालिकों के साथ कई बार हो जाता है। पुलिस उन्हें हिरासत में लेने को आई। शाम कोई सात बजे का समय था। हालांकि अखबार जगत के लिए इस प्रकार के मुकदमे व गिरफ्तारी कोई खास बात नहीं, मगर परिवार की महिलाओं के लिए तो यह बड़ी बात थी। महिलाएं रुआंसी थी। प्रधान संपादक स्वर्गीय बाबा श्री विश्वदेव शर्मा के भोजन का समय हो गया था। उसमें विलंब होने लगा तो वे बोले, अरे भाई भोजन परोस दो। बाबा की धर्मपत्नी, जिन्हें सब अम्मा जी कहा करते थे, बोलीं कि मेरे बेटे को गिरफ्तार करके ले जा रहे हैं और आपको लगी है खाने की। इस पर बाबा बोले के ये महज भूख व खाने की बात नहीं है। भोजन करना एक यज्ञ ही है। आमाशय में प्रकृति प्रदत्त अग्नि प्रज्ज्वलित है और उसे आहुति देना जरूरी है। अन्यथा विकृति उत्पन्न होगी। गिरफ्तारी व जमानत पर रिहाई आदि एक सामान्य घटनाक्रम है, मगर पेट का यज्ञ ज्यादा जरूरी है। वह समय पर ही होना चाहिए। ऐसे थे बिंदास व नियम के पक्के थे बाबा। कहने की जरूरत नहीं है कि वे पक्के आर्य समाजी थे। जिन्होंने उन्हें निकट से देखा है, वे मेरी बात की ताईद करेंगे। उस वक्त मुझ सहित अन्य को भी लगा कि क्या बाबा कुछ वक्त भूख पर नियंत्रण नहीं कर सकते, मगर बाद में विचार करने पर लगा कि वे सही कह रहे थे।
चलो, भोजन करना भी एक यज्ञ है, यह बाबा का नजरिया हो सकता है, मगर यदि स्वास्थ्य के लिहाज से भी देखें तो जिस नियत वक्त पर भूख लगती है, तब आमाशय में भोजन को पचाने वाले रसायनों का स्राव शुरू हो जाता है। भूख लगती ही उन रसायनों के कारण है। अगर हम भोजन नहीं करते तो वे रसायन आमाशय को नुकसान पहुंचाते हैं। हो सकता है कि हम यह कह कर उपहास उड़ाएं कि क्या भूख पर काबू नहीं कर सकते? बेशक काबू कर सकते हैं, मगर फिर हमें उसके शरीर पर पडने वाले दुष्प्रभाव के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
मैने देखा है कि सरकारी कर्मचारी तो लंच टाइम होने पर समय पर भोजन कर लेते हैं, मगर व्यापारियों को ऐसी कोई सुविधा नहीं। लंच टाइम पर भी ग्राहकी लगी रहती है। मैने ऐसे कई व्यापारी देखे हैं, जो भोजन की नियमितता का पूरा ख्याल रखते हैं और कितनी भी ग्राहकी हो, टाइम पर ही भोजन करते हैं। गुजरात में तो कई व्यापारी लंच टाइम पर दुकान मंगल कर घर जा कर भोजन करते हैं और तनिक आराम करने के बाद दुकान खोलते हैं।
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