प्रखर साहित्यकार हैं श्री मंगलसेन सिंगला

रेलवे में राजभाषा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त अधिकारी मंगलसेन सिंगला अंग्रेजी के साथ-साथ साहित्यिक हिंदी के विद्वान एवं समालोचक हैं। हिंदी भाषा के मूर्धन्य विद्वान हैं। हिंदी के अतिरिक्त अंग्रजी पर भी उनकी गहरी पकड है। वे कुछ समय तक दैनिक न्याय में अनुवादक के रूप में सेवाएं दे चुके हैं।
वे स्वभाव से दार्शनिक हैं। उनका एक स्वरचित काव्य संग्रह और श्री गीतमृत पद्मावली नामक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। अर्थशास्त्र का भी उन्होंने गहन अध्ययन किया है। उनकी सोच है कि आयकर को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने इस विषय की विस्तृत व्याख्या करते हुए समझाया है कि आयकर खत्म कर देने से अर्थव्यवस्था कैसे और मजबूत होगी। बाकायदा एक पुस्तिका बना कर उसे सरकार को भेज कर उस पर गौर करने का आग्रह किया है। वे अग्रवाल समाज, अजमेर, लोक स्वराज्य मंच, अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़), सेवानिवृत्त रेल अधिकारी संस्था, अजमेर और सीनियर सिटिजंस सोसाइटी, अजमेर से जुड़े हुए हैं। उनका जन्म 13 फरवरी 1932 को श्री रामानंद के घर हुआ। उन्होंने विशारद (अंग्रेजी), बी.ए. (अंग्रेजी) और एम.ए. (हिंदी) की डिग्रियां हासिल की हैं।
उनकी तीक्ष्ण समालोचना का उदाहरण देखिए। उनसे जब अजमेर एट ए ग्लांस पुस्तक के लिए अपना परिचय भेजने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने परिचय के साथ एक टिप्पणी भेज कर इस गाइड बुक के अंग्रेजी नामकरण को अरुचिकर बताया। साथ ही इसे भाषा, संस्कृति व इतिहास जैसे गंभीर विषयों के साथ खिलवाड़ की संज्ञा भी दी है। अजमेरनामा न्यूज पोर्टल उनकी दीर्घायु व स्वास्थ्य की कामना करता है।

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