*”होई सो होई वही जो बहेडिया रूचि राखा*”

आखिर प्रशांत मेवाड़ा *दुबारा* बन ही गए *भाजपा जिलाध्यक्ष*
सुशील चौहान

भीलवाड़ा।  भाजपा जिलाध्यक्ष की लड़ाई में पूर्व सांसद सुभाष बहेडिया ने आखिरकार *बाजी मारी* ही ली। उन्होंने अपने *राजनैतिक शिष्य* और *वफादार* प्रशांत मेवाड़ा के सिर जिलाध्यक्ष का *ताज* पहना कर अपनी राजनीतिक पकड़ की हैसियत को सिद्ध कर *मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी* को  *शिकस्त* दे दी। मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी ने बहेडिया से राजनैतिक *पेतरेबाजी* सीख आज दिल्ली तक पहुंचे। वो चाहते थे कि भाजपा जिलाध्यक्ष पद पर उनका खास *सिपहसालार* आसीन हो जाए। इसके  लिए उन्होंने युवा के रूप में कल्पेश चौधरी और नंदलाल गुर्जर को प्राथमिकता से आगे किया । अगर युवा किसी तरह मात खा जाए तो अपने अध्यक्षीय कार्यकाल के *सखा राकेश  ओझा* जो   उनके अध्यक्षीय कार्यकाल में महामंत्री भी रहे। और सहाड़ा क्षेत्र से विधायकी का चोला नहीं पहन सके रूप लाल जाट को भी जिलाधयक्ष बनाने के लिए *ताना बाना* बुना। मगर यह हो ना सका।  अपने राजनैतिक जीवन के साथी बहेडिया जी से मात खा गए।  क्योंकि बहेडिया जी  ने अपने दो  सिपहसालार प्रशांत मेवाड़ा को प्रमुखता से आगे रखकर  बढ़े। अगर प्रदेश के आला मेवाड़ा को रिपीट करना नहीं चाहे तो उसके बदले वो अपने संसदीय काल के स्थानीय प्रतिनिधि राजकुमार आंचलिया को आगे किया ताकि उनका  ही जिलाध्यक्ष बने। जब से जिलाध्यक्ष के चुनाव की चर्चा हुई तो भाजपा के लोग कह रहे थे *बहेडिया मांगे मेवाड़ा* और मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी यानी *सांसद अग्रवाल मांगे कुछ ।और*…। मगर हुआ *वो ही जो बहेडिया रूचि राखा*

जिलाध्यक्ष की दौड़ में मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी यानी सांसद महोदय ने क्यों मात खाई? यह भाजपा  सहित राजनीति के जानकार अच्छी तरह से जानते हैं?
क्योंकि मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी ने विधानसभा चुनाव के दौरान भीलवाड़ा सहित भाजपा के कुछ टिकट  के दावेदारों  की जो *कार सेवा* की वो किसी  से छुपी हुई नहीं हैं। उन्होंने कोई कोर कसर  बाकी नहीं छोड़ी। खास कर भीलवाड़ा में तो उन्होंने परदे के पीछे रहकर *कंट्रोल बाबा*  और अपने *चंद चेहतों* की मदद से *गौ भक्त* को  राजनीति का रास्ता दिखा कर राज्य की राजधानी तक पहुंचाने का अप्रत्यक्ष रूप से जतन किया।
वहीं आसींद से अपने खास चेले *धन के राजा* को विधायकी का चोला पहनाने के लिए उस समय के  और वर्तमान विधायक की राह में जो कांटे बिछाए । वो सर्वविदित हैं। लेकिन *जब्बर* भी खूब जब्बरे निकले। उन्होंने भी मेवाड़ के स्वयं भूं मोदी को मात देकर टिकट ले आए। फिर भी स्वयं भू मोदी नहीं माने और उन्होंने अपने चेले को निर्दलीय के रूप में उतरवा दिया और नतीजा पराजय ही मिली। इसके बाद जब उन्होंने *सांसदी का चोला* केवल और केवल *प्रधानमंत्री मोदी* के नाम पर पहना तो अपने को राजनीति का
*स्टार* मान बैठे और भाजपा के विजयी विधायकों को *ताड़ने* लगे। मगर भाजपा के छह के छह विधायक एक हो गए। इसी का परिणाम रहा कि जिलाध्यक्ष प्रशांत मेवाड़ा के लिए सभी ने एक स्वर में पुनः जिलाध्यक्ष बनाने के लिए प्रदेश को चिट्ठी लिखकर अपनी भावनाओं से अवगत करा दिया। अब प्रशांत के साथ छह विधायक तो थे ही उस पर पूर्व विधायक विठ्ठल दादा, पूर्व सांसद बहेडिया और पहले महापौर राकेश पाठक का साथ भी मिल गया। इस पर मेवाड़ा के कार्यकाल में विधानसभा की छह सीट तथा सांसद के चुनाव में भाजपा का विजयी होना मेवाड़ा के लिए *सोने में सुहागा* साबित हो गया। इसके अलावा मेवाड़ा का कार्यकाल भी *निर्विवाद* रहा। मेवाड़ा की टीम एक जुट रही। इसलिए प्रदेश को सोचना पड़ा। इसके अलावा मेवाड़ा के पुनः अध्यक्ष बनने में *मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा* की महत्वपूर्ण भूमिका  भी रही। क्योंकि मेवाड़ा की जिलाध्यक्ष की नियुक्ति भी मुख्यमंत्री के इशारे पर हुई। मुख्यमंत्री जब प्रदेश  संगठन में महामंत्री थे। तो प्रशांत उनकी वजह से ही जिलाध्यक्ष  बने थे। इसके अतिरिक्त प्रशांत की मिलनसार प्रवृत्ति भी उनके लिए सार्थक सिद्ध हुई।
वहीं प्रशांत की राह में रोड़े अटकाने में *गौ भक्त कोठारी साब* ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। भाजपा ने उन्हें विधिवत रूप से नहीं अपनाया । फिर भी भाजपा का झंडा लेकर यह जताने का   प्रयास किया कि मैं तो भाजपाई हूं। मगर जिलाध्यक्ष के चुनाव में भी गौ भक्त कोठारी साब ने पीठ में छुरा भौंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अपने खासमखास प्रदीप सांखला को जिलाध्यक्ष बनाने के लिए आवेदन करवा दिया। उसके बाद भी गौ भक्त जी बड़ी शान से जिलाध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया में मंच पर जाकर आसीन हो गए।
जैसे ही मेवाड़ा के नाम की घोषणा हुई तो सारे दावेदार मेवाड़ा को  बधाई देकर भाजपा कार्यालय से *सटक* लिए।
जानकारों ने बताया कि स्वयं भूं मेवाड़ के मोदी ने प्रदेश को संदेश भिजवाया कि अध्यक्ष उनके आदमी को बनाएं नहीं तो वो… कुछ भी कर सकते हैं। बताया जाता हैं कि सरकार के मुखिया ने साफ कह दिया कि कुछ भी कर लो। बनेगा तो प्रशांत ही। इस चुनौती के बाद स्वयं भूं मेवाड़ मोदी ने *भाप* लिया की अब सीमा में रहने में ही भलाई हैं।
*अब भाई  आखिर में हुआ वो ही जो बहेडिया रूचि राखा*
  – *सुशील चौहान*           
– *स्वतंत्र पत्रकार*
 –   *पूर्व उप सम्पादक, राजस्थान पत्रिका, भीलवाड़ा*
 – *वरिष्ठ उपाध्यक्ष, प्रेस क्लब, भीलवाड़ा*
             – *sushil chauhan953@gmail.com*

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