क्या सिंधियों का अपने इष्ट देव झूलेलाल जी की सवारी मछली यानि कि पल्ला का सेवन करना जायज है? यह सवाल इन दिनों समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है। पल्ले का सेवन करने वालों पर तंज करने वालों का तर्क है कि भला कोई अपने ही इष्ट देव की सवारी को खाता है? क्या कभी देखा है कि कोई गणेश जी की सवारी चूहा खाता हो? क्या कभी अन्य देवी देवताओं की सवारी पशु-पक्षी आदि का किसी को सेवन करते देखा है? तर्क में वाकई दम है। लेकिन पल्ले का सेवन करने वालों का कहना है कि अन्य देवी देवताओं की सवारी पशु-पक्षी सामान्यतः भी भोज्य नहीं हैं। भला चूहा कौन खाता है? शेर कौन खाता है? जबकि पल्लव तो मांसाहार में सर्वाधिक स्वादिष्ट व पोष्टिक माना जाता है। यहां तक कई तो इसे प्रसाद के रूप में भी स्वीकार करते हैं। उनका मानना है कि भले ही झूलेलाल जी पल्लव पर सवार हो कर अवतरित हुए, मगर पल्लव पूजनीय दरिया का फल है, उसे वर्जित क्यों माना जाना चाहिए। वस्तुतः यह पूरी तरह से व्यक्तिगत और पारिवारिक परंपराओं पर निर्भर करता है। सिंधी समुदाय में कई लोग मांसाहारी होते हैं और मछली का सेवन करते हैं, लेकिन कुछ सिंधी परिवार, विशेषकर झूलेलाल जी के पक्के भक्त इसे वर्जित मानते हैं और शाकाहार को प्राथमिकता देते हैं।
