आज्ञा चक्र में विद्यमान रहती है गुरु चेतना

शिव शर्मा

गुरुदेव  हजरत हर प्रसाद मिश्रा जी एक बात पर अधिक जोर देते थे कि नाम को स्वयं के भीतर सुनने का अभ्यास करो। जब आज्ञाचक्र (ललाट का मध्य भाग) व सहस्त्रार (सिर का सबसे ऊपरी स्थान) पर नाम धड़कता है तो वहीं सुनाई भी देता है। ऐसा अभ्यास सामान्य मनुष्य भी कर सकता है। श्वास सुनाई देती है, नाम सुनाई देता है। नाभि पर, दोनों वक्ष पर, आज्ञा चक्र एवं कपाल क्षेत्र में एक साथ नाम धड़कता है; ऐसा लगता है मानो गुरुदेव आगे-आगे चल रहे हैं। आपको रूहानी मार्ग दिखाते जा रहे हैं। ऐसा भीतर के चिदाकाश में अनुभव होता है। हमारे अंतःकरण में जो अणुरूप चित् है वही फैल कर आकाश जैसा हो जाता है। इसी को चिदाकाश कहते हैं। यह आज्ञाचक्र पर दिखता है। इसी के साथ सूक्ष्म गुरु की सूक्ष्म में वाणी या परवाणी भी सुनाई देने लगती है। वे आपको अध्यात्म के गोपनीय रहस्य समझाते जाते हैं। सूक्ष्म लोकों के दिव्य दृश्य दिखने लगते हैं। ये इतने भव्य लगते हैं कि साधक का मन उनमें ही डूबा रहता है। वह सांसारिक खूबसूरती से विरत हो जाता है। जैसे बीज के खोल में वृक्ष का वैभव सूक्ष्म रूपेण निहित होता है, वैसे ही गुरु नाम में स्वयं गुरु चेतना ज्योतिकण रूप में विद्यमान रहती है। बीज को उर्वर जमीन मिलते ही वह अंकुरित हो जाता है। ऐसे ही अवधि (Length) एवं आवृत्ति (Frequency) के अनुसार नाम का जाप करने से वह खुलता है या यूं कहें कि उसमें निहित चेतन ऊर्जा अंकुरित हो जाती है। पानी (नदी/तालाब आदि) के किनारे जाप करने से ऐसी सिद्धि शीघ्र होती है। घर में आप जल का भरा हुआ गिलास अपने पास रख सकते हैं। किसी भी देवस्थान पर जाप करने से भी ऐसा ही फल मिलता है। इसका कारण गुरुजी ने यह बताया कि ऐसी जगह पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा अधिक मात्र में संघनित रहती है।  ब्रह्मांड में इसका द्रव्यमान 74% बताया गया है। इसे संजीवनी ऊर्जा, प्राण ऊर्जा व गुप्त ऊर्जा भी कहते हैं। इसे आज्ञाचक्र पर ग्रहण किया जाता है। ब्रह्म मुहूर्त इसके लिए श्रेष्ठ समय है।

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