अजमेर में हालांकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए जवाहर रंगमंच है, जिसकी सिटिंग केपिसिटी तकरीबन आठ साढे आठ सौ है, मगर वह ताजा जरूरतों के मुताबिक बहुत छोटा है। षहर को 1500 से 2000 सीटों वाले रंगमंच की सख्त दरकार है। असल में अरसे पहले जब वरिश्ठ वकील राजेष टंडन ने रंगमंच की मांग उठाई थी, उसके भी दस साल बाद वह पूरी हुई। जब जवाहर रंगमंच बन कर पूरा हुआ तो महसूस किया गया कि यह अपेक्षा से छोटा है, मगर फिर भी जैसे तैसे कार्यक्रम होने लगे। मगर छोटी-मोटी संस्थाओं के लिए वह सपना है। केवल संपन्न संस्थाएं ही उसमें कार्यक्रम का पा रही हैं। आजकल तो वह भी बंद है। उसका रिनोवेषन हो रहा है। इस कारण आठ सौ-हजार दर्षकों का कार्यक्रम करने वाली संस्थाएं परेषान हैं। उन्हें मजबूरी में कम दर्षक संख्या वाले स्थलों का विकल्प के रूप में चुनना पड रहा है। पिछले साल आचार संहिता के कारण जवाहर रंगमंच संस्थाओं के लिए उपलब्ध नहीं था, इस कारण उन्हें मेडिकल कॉलेज के हॉल में कार्यक्रम करना पडा। वह भी बहुत महंगा है। सीटें भी रंगमंच से कम हैं। इस बार फिर वही स्थिति है। माध्यमिक षिक्षा बोर्ड स्थित राजीव सभागार भी महंगा है। उसमें सीटें और भी कम हैं। हालांकि जीसीए का सभागार सीटों के लिहाज से ठीक-ठाक है, मगर साधन सुविधाएं कम हैं। सतगुरू ग्रुप का हॉल आधुनिक है, मगर षहर से इतनी दूर है कि कोई भी संस्था वहां कार्यक्रम करने का सोच भी नहीं सकती। सूचना केन्द्र में ओपन थियेटर में सिटिंग केपेसिटी कम है। पहले जरूर केपेसिटी ठीक-ठाक थी, मगर नया बनने के बाद केपेसिटी कम हो गई है। कुल जमा हालत ये है कि अच्छा व बडा कार्यक्रम करने के लिए अजमेर में जगह ही नहीं है। जो हैं, वे सामान्य संस्थाओं के बजट से बाहर। ऐसे में इस षहर को ऐसे बडे रंगमंच की सख्त जरूरत है, जिसमें सांस्कृतिक संस्थाएं रियायती दर पर कार्यक्रम कर सकें। उसके अभाव में अजमेर में सांस्कृतिक गतिविधियां कम होती जा रही हैं। अफसोसनाक है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर करोडों-अरबों के काम तो हुए, मगर बडा रंगमंच बनाने की न तो किसी राजनेता ने सोची न ही अफसरों ने।
