साहित्य में सेना के शौर्य का प्रदर्शन प्रेरणादायक: अनिल सक्सेना

संस्कृति, साहित्य और मीडिया विषय पर कलमकार और कलाकारों ने रखे अपने विचार 
फलौदी । प्रदेशभर में चल रहे राजस्थान के साहित्यिक आंदोलन की श्रृंखला में राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के बैनर तले रविवार को होटल लाल पैलेस में भारतीय संस्कृति, साहित्य और मीडिया विषयक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के संस्थापक वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार अनिल सक्सेना ‘ललकार‘ ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में साहित्यकार को सेना के शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी कलम चलानी चाहिए।  भारतीय सैनिक अपनी जान पर खेल कर देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए हमारी रक्षा कर रहे हैं। सक्सेना ने  मीडिया के बदलते स्वरूप को बताते हुए कहा कि सेना के शौर्य पर लिखना प्रेरणादायक है और इससे देश की सेवा के लिए प्रोत्साहन मिलता है।
उन्होंने कलमकार और कलाकारों से सीधा संवाद करते हुए युवाओं को भारतीय संस्कृति और साहित्य से जोड़ने पर भी जोर दिया। अनिल सक्सेना ने मीडिया के बदलते स्वरूप पर भी प्रकाश डाला और कहा कि आज मीडिया केवल समाचार देने का माध्यम नहीं रह गया, बल्कि यह सांस्कृतिक चेतना का संवाहक बन गया है। ऐसे में मीडिया को अपनी भूमिका को समझते हुए साहित्य और संस्कृति के संरक्षण में सक्रिय भागीदारी निभानी चाहिए।
युवाओं को संस्कृति व साहित्य से जोड़ना समय की मांग :-
अपने संबोधन में अनिल सक्सेना ने यह भी कहा कि वर्तमान में भारतीय संस्कृति, मूल्य और साहित्य को युवाओं से जोड़ना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने मंच से उपस्थित कलाकारों और साहित्यकारों से आह्वान किया कि वे विद्यालयों, महाविद्यालयों और डिजिटल माध्यमों से युवाओं को जोड़ने के लिए सक्रिय पहल करें।  अहिंसा,दया,संवेदना भारतीय संस्कृति ने प्रदान की है।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी संस्कृति की आड़ में युवा अपनी संस्कृति को भूल रहा है। बच्चा कच्चे घड़े की तरह होता हैं इसलिए संस्कृति से जोड़े रखने की प्रथम कड़ी परिवार ही हैं। संयुक्त परिवार की परम्परा की कमी ने हमें अपने संस्कारो से दूर किया हैं।
कलमकारों और कलाकारों ने रखे विचार :-
कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं ने भी विषय के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे। आज के समय में मीडिया, साहित्य और संस्कृति – तीनों के बीच समन्वय आवश्यक है, ताकि समाज में सकारात्मक चेतना और मूल्यों की पुनर्स्थापना की जा सके। कार्यक्रम में नवल जोशी, डॉ अरुण माथुर, मुरारी लाल थानवी,अशोक पालीवाल,गोपाल व्यास,किशोर बोहरा सहित सभी वक्ताओं ने युवाओं को अखबार, साहित्यिक किताबों व साहित्यिक कार्यक्रमों से जोड़ने पर जोर दिया।

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