
किसी ने सही ही कहा है कि ‘पिता भगवान् के दुवारा भेजे गये धरती पर देव दूत ही होते हैं’| हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब माता पिता की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं।
असंख्य ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों, पंडितों, महात्माओं, विद्वानों, दर्शन शास्त्रियों, साहित्यकारों और कलाकारों ने भी माता पिता के प्रति पैदा होने वाली अनुभूतियों को कलमबद्ध करने का भरसक प्रयास किया है। सच्चाई तो यही है कि ‘त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः|
हमारी संस्क्रति में तीन प्रकार के ऋण यानि राष्ट्रऋण,पित्रऋण और गुरु ऋण का उल्लेख किया जाता है एवं हर इन्सान से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने सुक्रत्यों से इन तीनों ऋण से ऊऋण होने का भरपूर प्रयास करें| सच्चाई तो यही है कि बच्चें अपने पिताजी के कर्ज से अपने आपको कभी भी मुक्त नहीं कर सकते हैं | हम सभी को पित्रऋण को चुकाने के लिये हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए तथा अपने पिताजी की सुख-सुविधाओं का ध्यान रख उनकी देख भाल करनी चाहिए |
डा. जे.के. गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर