
धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए उपप्रवर्तिनी सदगुरुवर्या डॉ. श्री राजमती जी म.सा. ने फरमाया -यौवन, धन-संपत्ति, सत्ता और अविवेक ये एक-एक भी अनर्थ के कारण है तो जहां चारों इकठ्ठे हो जायें तो अनर्थ का कहना ही क्या। युवावस्था हो, धन हो, छोटी-मोटी कुर्सी मिल जाए पर इनके प्रयोग-उपयोग का विवेक नहीं मिले तो एक-एक चीज भी अनर्थ का कारण बन जाती है। यह जवानी कागज की नौका है, पवन का झौंका है और सुधरने का मौका है। जिसकी जवानी सुधरी तो उसका बुढ़ापा भी सुधर जाता है। दूसरे शब्दों में जो जाने वाली है वो जवानी। कहा गया है जो जाके नहीं आवे वो जवानी देखी, जो आके नहीं जावें वो बुढ़ापा देखा। इन शब्दों में मनुष्य के साथ तीन अवस्थाएं जुड़ी है – बचपन, युवा, वृद्धावस्था। जो बचपन में शिक्षा और सद्संस्कार ग्रहण कर लेता है, यौवन वय में इन्द्रियों का संयम रखता है और वृद्धावस्था में भी आत्मा के प्रति जागरूक रहता हुआ अनासक्त भाव में रमण करताहै, ऐसा विवेकवान व्यक्ति का जीवन गौरवपूर्ण होता है। यौवन, धन, संपत्ति का विवेक पूर्ण उपयोग करने वाला व्यक्ति यशस्वी होता है।
साध्वी डॉ. राजरश्मि जी म.सा. ने इसी धर्म सभा में फरमाया – गौरवपूर्ण इतिहास उन्हीं का बनता है जो स्वयं पहले ईमानदार, कत्र्तव्यनिष्ठ, सत्यनिष्ठ, चारित्रवान और नैतिक बन पाते हैं। जब जीवन में संतोषवृत्ति हो तब चोरी जैसे पापकर्म का भाव ही पैदा नहीं होगा। सफदेपोश चोर तो धर्म का पैसा भी खाने से नहीं चूकते तो नैतिक मूल्यों में गिरावट आयेगी।
धर्म की क्षति और दुर्गति, यह गंभीर समस्या नैतिक पतन के कारण हो रही है। परमात्मा ने चोरी जैसे पाप से स्वयं को बचाने को पुण्य कहा है। पुण्य हमारे आचरण और व्यवहार में प्रकट होना चाहिए।
साध्वी डॉ. राजऋद्धि जी म.सा. ने कहा – जीवन में सफलता पानी है तो धैर्य को अपना धर्म बना लेना चाहिए। बुरे के साथ अच्छा नहीं कर सकते तो कम से कम अच्छे के साथ बुरा मत करो। मानवीय जीवन में दानव जैसे आचरण नहीं करें।
धर्म सभा में श्री विमलेश खटोड़ एवं सुशीला खटोड़ के 8-8 उपवास एवं थाँवला निवासी श्रीमती करिश्मा सोजतिया के 7 उपवास के प्रत्याख्यान हुए। ऑल इण्डिया जैन कॉन्फ्रेंस की जैन प्रकाश योजना की प्रमुख मार्गदर्शिका श्रीमती रतनी बाई मेहता ने भी गुरूवर्या के दर्शन प्रवचन का लाभ लिया। श्री संघ की ओर से तपस्यार्थियों का एवं विशिष्ट अतिथियों का अभिनन्दन किया।