हास्य.व्यंग्य

अजमेर शहर शुरू शुरू में मुख्यरूप से थोक तेलियान और थोक मालियान में बंटा हुआ थाण् जिसके चारों तरफ देहलीगेटए आगरागेटए मदारगेट इत्यादि हैंण् वैसे होने को यहां कई पोल भी है जैसे सर्राफापोलए खटोलापोलए सुदामापोलए सत भैयों की पोल इत्यादि लेकिन इतना होने के बावजूद पोल के मामले में यह जयपुर से उन्नीस ही है जहां चांदपोलए सूरजपोल तो है ही एक साथ तीन.तीन पोल यानि त्रिपोलियां भी हैण् विषेशज्ञों का तो यहां तक कहना है कि इसी ष्पोलष् की अधिकता की वजह से ही जयपुर इस शहर से राजधानी बनने की दौड में बाजी मार गयाण् खैरए
बसावट के मामलें में कालांतर में जाने किस मानसिकता के वशीभूत होकर यहां के लोगों ने अपने आपको अलग अलग सम्प्रदायों एवं जातिगत रिहायशी क्षेत्रों में बांट लिया और अपने मोहल्लों के नाम रख लिए माली मोहल्लाए सरावगी मोहल्लाए मोची मोहल्लाए गोधा गुवाडी इत्यादिण् ऐसे ही एक मोहल्लें में मुझे भी रहने का ष्सौभाग्यष् मिलाण् उस जमाने में ऐसी जगह रहने का सबसे बडा फायदा यह होता था कि पास.पडौस में न केवल तांक.झांक करने बल्कि उनकी बातें सुनने का भी मौका मिल जाता थाण् घरकी छोटी से छोटी घटना भी पास पडौस से छिपती नही थीण्
हमारें इसी मोहल्लें में कई दिलचस्प व्यक्ति रहा करते थेण् उनमें से एक सोहनलालजी ;बदला हुआ नामद्ध भी थेण् उनकी परिवार नियोजन में कभी दिलचस्पी नही रहीण् वह कोई छोटा मोटा काम करके अपनी गृहस्थी चलाते थेण् उनका बडा लडका भी पढने लिखने में कम ही ध्यान देता थाण् एक बार की बात है कि हमारें मोहल्लें में सरकारी कर्मचारियों का कोई दल कोई जानकारी जुटाने आयाण् उन्होंने पूछताछ के दौरान सोहनलालजी के लडके से कहा कि आपके पिताजी कहां है उन्हें बुलाओण् इस पर लडके ने अपने पिताजी कोए जो सामने पीपल के नीचेए हथाई पर बैठे ताश खेल रहे थेए बुलाने के लिए आवाज लगाई ष्ऐ मेरे बाप ! यहां आष् यह सुनकर दल के लोगों को अच्छा नही लगा उन्होंने लडकें को समझाया कि अपने पिताजी को ऐसे नही बोलते हैए उन्हें तमीज के साथ बुलाते हैंण् इस पर लडके ने पुनः आवाज लगाई ष्ऐ मेरे बाप ! तमीज से यहां आष् यह सुनकर सभी आगंतुक मुस्कराने लगेण्
एक बार बडी मजेदार घटना हुईण् चौराहें पर एक पुलीसवाला सोहनलालजी को पीट रहा था और वह हंस रहे थेण् जब वह पुलीसवाला चला गया तो लोगों उनसे पूछा कि पुलीसवाला आपको पीट रहा था और आप हंस रहे थे तो उन्होंने जवाब दिया कि वह मुझे मोहनलाल समझकर पीट रहा था जबकि मेरा नाम तो सोहनलाल हैंण्
सोहनलालजी के पास ही घनश्यामजी रहते थेण् जो वैसे तो रेलवे के कैरिज कारखाने के ब्लैकस्मिथ शॉप ;लौहार.खानाद्ध में काम करते थे लेकिन उन्हें किशोरावस्था से ही पहलवानी का शौक थाण् अपनी युवावस्था में वह दौलतबाग के पास स्थित केलकी बगीची में दंडबैठकए कुश्ती इत्यादि के लिए जाया करते थेण् इलाके में तो उनका रौब था ही रेलवे सप्ताह के दौरान भी वह कई ईनाम वगैरह जीतते रहते थेण् एक बार की बात है कि वह सांयकाल अपने घर में दाल.रोटी खा रहे थेण् दाल में कंकड आ जाने की वजह से कड.कड की आवाजें आ रही थीण् जब रसोई में खाना बना रही उनकी पत्नि ने यह आवाजें सुनी तो वह वही से ही बोली कि क्या दाल में कंकड ज्यादा है तो पहलवान साहब ने मिमियाते हुए जवाब दिया कि ष्नहीए नहीए ज्यादा तो दाल ही हैण् बीबी के सामने और क्या बोलते घ्
शहर में शुरू से ही पानी की किल्लत थीण् यह तो भला हो वाटर वर्क्सवालों का जो गर्मियों में चार.पांच रोज के अंतराल से ओैर बाकी दिनों में दो.तीन रोज के अंतराल से अलसुबह ही पानी की सप्लाई दे दिया करते थेण् इस विषय में विभाग के अपने तर्क थेण् गर्मियों में कम पानी देने के बारें में उनका कहना था कि चूंकि अक्सर इन दिनों लेडीज अपने पीहर और बच्चें अपने ननिहाल जाने का प्रोग्राम बना लेते है लेकिन जैसेही उन्हें पता लगता था कि इस शहर में पानी का तोडा है तो वह यहां आने में कतराने लगते थेण् इससे श्मेहमान से भगवान बचायेंश् वाली लोकाक्ति अपने आप चरितार्थ होजाती थीण् रहा सवाल अलसुबह उठाकर पानी देने का तो इस पर विभागका तर्क था कि इससे एक पंथ दो काज वाली कहावत सिद्ध होती हैंण् आप जल्दी उठकर पानी भी भर सकते है और बीबी के साथ घर के कामकाज में भी हाथ बंटा सकते हैण्
हमारे मोहल्लें में सरकारी नल लगा हुआ था जहां आए दिन पानी भरते समय झगडें. टन्टें होते रहते थेण् एक बार की बात है कि एक नवयुवती और एक वृद्धा के बीच तू तू.मैं मैं होगईण् वृद्धा ने युवती को ललकारा कि मेरे से ज्यादा करेगी तो तेरी शादी उस फकीर से करवा दूंगीए जो संयोग से उधर से निकल ही रहा थाण् यह सुनकर वह फकीर ठहर गयाण् खैरए लोगों ने बीच बचाव करके झगडा तो निबटा दियाण् जब अधिकांश लोग चले गए तो उस फकीर ने आकर उस वृद्धा से पूछा कि मांई मैं रूकू या चला जाउॅ घ्
जब देश में जनगणना;यह बहुत पहले की बात हैद्ध होने लगी तो हमारे मोहल्लें का भी नम्बर आयाण् सबसे पहले वह लोग नुक्कडवालें प्रभुदयालजी के मकान पर पहुंचेण् उन्होंने उनसे स्वयं के नाम.धाम के बाद पूछा कि आपके कितने बच्चें है घ् तो प्रभुदयालजी ने बताया कि मेरे तीन बच्चें हैंण् दलवालों ने पूछा कि लडके कितने है घ् तो उन्होंने जवाब दिया कि तीन है तो दल वालों ने फिर पूछा कि और लडकियां कितनी है घ् इस पर प्रभुदयालजी फटी फटी आंखों से उन्हें देखने लगे और धीरे से कहा कि तीनों लडके ही हैंण्
इसके बाद वह लोग चौथमलजी के घर गए तो संयोग से उन्हें चौथमलजी के पिताजी मिल गएण् कर्मचारियों ने नाम वगैरह के बाद उनकी उम्र पूछी तो उन्होने 55 साल बताईण् जनगणना के दल में शामिल मास्ष्साब को थोडा शक हुआण् उन्होंने पिछली जनगणना का रिकार्ड देखा और बुजुर्ग से कहा अंकलजी ! पिछली जनगणना में भी आपने अपनी उम्र 55 वर्ष ही बताई थी और आज भी आप अपनी उम्र 55 ही बता रहे हैण् इस पर बुजुर्ग ने जवाब दिया कि इतनी महंगाई और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे इस माहौल में पिछले 10 वर्ष का जीना भी क्या जीना था घ् सुनकर सभी कर्मचारी चुप्पी साध गएण्
इतना ही नही जब दलवालें घर.बार की भी जानकारी लेने लगे मसलन मकान किस चीज का बना हैए छत किसकी बनी है घ् इत्यादिए तो बुजुर्ग ने पूछा कि दीवार और छतों की जानकारी लेकर सरकार क्या करने जा रही है घ् कर्मचारियों ने तो इस प्रश्न का कोई समुचित उत्तर नही दिया लेकिन घर के अंदर से चौथमलजी की माताजी की आवाज आई कि मंदिर में पंडितजी अक्सर कहते रहते है कि भगवान जब देता है तो छप्पर फाडकर देता है शायद इसी बात को ध्यान में रखकर सरकार जानकारी इकटठा कर रही होगी कि किस किसके घर पर आसानी से फटने लायक छप्पर है ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आएण्
मोहल्लें में ही पास के एक और घर में जब जनगणना वालें घुसे तो गृहणी खाना बना रही थीण् एक कर्मचारी ने उससे पूछताछ शुरूकी
ण्ण्ण् आपके पति क्या काम करते है घ्
ण्ण्ण्वो प्रेस का काम करते हैण्
ण्ण्ण्बहनजी ! क्या वह किसी अखबार से जुडे हुए हैं घ्
ण्ण्ण्पढते तो वह कई अखबार है लेकिन यहां नही पढतेण् किसी पानवालें या नाई की दुकान पर जाकर पढते हैण् कभी कभी पडौस की आटेकी चक्कीवालें से भी मांगकर ले आते हैण् किस से जुडे है यह मुझे पता नहीण्
तब जनगणना करनेवाले कर्मचारी ने कहा कि शायद आप मेरा मतलब नही समझीए आपके पति प्रेस का क्या काम करते है जरा खुलासा बताइयेण्
इस बात पर गृहणी कहने लगीए अभी पिछली 26 जनवरी को बच्चों के जिद्ध करने पर जब हम पटेल मैदान में परेड देखने गए तो जल्दी ही चले गएण् वहां झन्डारोहण के स्थान के पास ही अलग से बने एक स्थान पर कुर्सियां लगी हुई थी और एक पुटठे पर लिखा हुआ था ष्प्रेसष् अतः हम दोनों अपने बच्चों सहित उन कुर्सियों पर बैठ गए ओैर बैठते वक्त मेरे पति ने मुझसे यह भी कहा था कि देखो असली आजादी तो अब आई हैण् अपने प्रेस का धंधा करनेवालों के लिए सरकार ने आगे ही आगे अलग से बैठने के लिए कुर्सियां तक बिछाई हैण्
जनगणना वाला तब भी कुछ नही समझाए सिर खुजाता हुआ बोलाः.
ण्ण्ण्कही आपके पति किसी प्रिन्टिग प्रेस में तो नही है घ्
ण्ण्ण्नही नहीए वह तो पांचवी फेल हैण्
ण्ण्ण्तो क्या हुआ घ् हो सकता है वहां कम्पोजिंग का काम करते हो घ्
ण्ण्ण्वे तो एक दुकान पर काम करते हैण्
दुकान पर घ् यह सुनकर कर्मचारी का माथा ठनकाण् बोलाए दुकान पर कौनसी प्रेस का काम करते है घ् उसने अपने अल्प ज्ञान का परिचय दियाण्
वह बोलीरू.
ण्ण्ण्कपडों पर प्रैस करते है ओैर रात.विरात जब भी घर आते है तो उन्हें कोई पुलीसवाला अथवा अन्य व्यक्ति टोकता नही है क्योंकि पडौस के शर्माजी की ही तरहए जो कि प्रिटिंग प्रेस में काम करते हैए इन्होंने भी अपनी साईकिल पर एक तख्ती टांग रखी हैए उस पर लिखा हुआ ष्प्रेसष्ण्
इनके पडौस में ही रामस्वरूपजी वर्मा टेलर मास्टर का मकान थाण् मदारगेट पर ऐवन टेलर के नामसे उनकी दुकान थीण् वह शर्ट एक्सपर्ट कहलाते थेण् मास्टर साहब को अपने धन्धें पर बडा नाज था और हो भी क्यों नए उनका कहना थाकि इसी धन्धें की खातिर वह चौथी क्लास फेल होते हुए भी मास्टर कहलाते है और उनकी अनपढ पत्नि मास्टरनीण् उनके पडौसी सुखरामजी का लडका जब पांचवी क्लास में तीसरी बार फेल होगया तो उसके पिताजी ने उसे मास्टरजी की दुकान पर बैठा दिया कि औेर कुछ नही तो यह काम ही सीख जायेगा तो दाल.रोटी तो खा लेगाण् शुरू शुरू में वह काज.बटन करने लगाण् कई रोज बाद जब सुखरामजी ने मास्ष्साब से अपने लडके के बारे में पूछा तो मास्ष्साब ने बताया आप फिक्र ना करे अभी वह जेब काटना सीख गया है अगले महीने मैं उसे गला काटना सिखा दूंगाण् यह सुनकर सुखरामजी एक बार तो चकरा गएए वह सोचने लगे कि क्या उनका लडका अब यही काम करेगा घ्
इसी मोहल्लें में कालीचरणजी भी रहते थेण् लोगों का अनुमान था कि जब स्वर्ग में विधाता रंगरूप बांट रहा था तब वह शायद लाईन में पीछे की तरफ होंगेण् एक तो काला रंगरूप और ऊपर से खुदका बनाया हुआ थुलथुल शरीरए वह एक विशेष आकृति के धनी थेण् हमारी इस कॉलोनी में एक डाकौत हर शनिवार को तेल मांगने आया करता थाण् एक शनिवार की बात है डाकौत उनके घर के बाहर तेलदान हेतु ष्शनि महाराजए शनि महाराजष् की आवाजें लगा रहा थाण् काफी देर तक जब उसकी कोई सुनवाई नही हुई तो उसने जोर2 से आवाजें देना शुरू कर दियाण् इतने में कालीचरणजी घर के बाहर आए और डाकौत को झिडकते हुए कहा ष्क्यों आधे घन्टें से दिमाग खा रहा हैए कहतो दिया कि आरहा हूंए आरहा हूंष्ण् इस स्वीकृति के बाद डाकौत आगे क्या बोलता घ्
इस घटना के काफी समय बाद की बात हैंण् पुष्कर में मेरे एक मित्र जयचन्द्रजी है पेशे से वकील हैंण् एक बार वह मेरे यहां आए हुए थेण् हम ड्राइंगरूम में बैठे हुए थेण् शायद सावन.भादों का महीना थाण्
तभी बाहर एक ठेलेवाला जामुन बेचता हुआ निकलाण् वह ष्कालें कालें पुष्करवालेंष् की आवाजें लगाता रहा थाण् संयोग की बात है कि वकील साहब का रंग एकदम साफ हैए उन्हें यह बात नागवार गुजरी और वह बाहर निकले और उस ठेलेवालें से बहस करने लगे कि तुम पुष्करवालों को काला कैसे कह रहे हो घ् वकीलसाहब की बात ठीक भी हैण् इसी काले.गोरे को लेकर एक कवि की उडान देखिये वह दुनियां के मालिक को क्या उलाहना देरहा हैरू.
ष्भगवान म्है भी कोनीए
अकल को भोंरोंण्
किन्नै ही बणा दियो कालोए
अर किन्नै ही गोरोंण्ष्
सन सत्तर के दशक में टीवी का आगमन हुआण् पहले ब्लैक एन्ड वाइट और फिर रंगीनण् उन्ही दिनों की बात हैण् एक रोज मैं पडौसी के साथ उनके ड्राइंगरूम में बैठा टीवी देख रहा थाण् कोई कार्यक्रम चल रहा थाण् कुछ देर बाद समाचार आने लगेण् इतने में किसी कामसे उन सज्जन के बेटे की बहू फिर वहां आई और इस बार उसने झट से घूंघट निकाल लियाण् पहले तो मैं यह समझा कि मुझे ष्रैस्पैक्टष् देने हेतु उसने ऐसा किया है लेकिन फिर बाद में मैंने सोचा कि ऐसा ही था तो इसके पहले भी वह जब यहां आई थी उसे ऐसा करना चाहिए थाण् मुझे असंमजस में देख पडौसी ने मेरी शंका का समाधान किया और बताया कि समाचारवाचक बहू के मामा श्वसुर लगते हैए उन्हीं से घूंघट किया हैंण्
ऐसे मोहल्लों में पडौसियों में आपस में आए दिन ही खूब कलह झगडें इत्यादि होते रहते है जिनमें महिलाएं भी बढचढकर हिस्सा लेती हैंण् यह उन दिनों की बात है जब फुटबाल के विश्वकप के मैच चल रहे थेण् एक दिन सुबह सुबह ही मेरी पत्नि घर से बाहर जाने लगी तो मैंने उससे पूछा कि कहां जारही हो घ् तो उसने जवाब दिया कि मंदिर के पासवाली पडौसन को उसकी औकात बताने जा रही हूंण् इसपर मैंने उसे कहा कि कल तुम्हारे बीच झगडा हो रहा था वह बडी मुश्किल से छुडाया था और आज फिर तुम झगडने चलदीण् इस पर वह बोली कि ष्कल सेमीफाइनल था और आज फाइनल हैंण्ष् मैंने सोचा आखिर टीवी पर दिखनेवाले मैच से हम कुछ तो सीखते ही हैंण्
हमारें मोहल्लें के पास ही एक छोटा.मोटा मार्केट थाण् वहां दुकानों के साथ साथ कुछ ठेलें खोमचेवालें भी खडे रहते थेण् एक बार की बात है कि दो ठेलेवालों में खडे होने के स्थान को लेकर झगडा होगयाण् इनमें से पहलेवाले का कहना था कि मैं इस स्थान पर काफी समय से खडा होता आया हूं चाहो तो चौकी के पुलीसवालें से पूछलो जो हर हफते सब ठेलेवालों के पास आता हैण् जबकि दूसरें ठेलेवाले का कहना था कि यह मेरे खडे होने की जगह हैंण् मेरे यहां नगर परिषद का कारिन्दा आकर रसीद भी काटता है और उपर से अपनी चौथ भी लेजाता हैंण् आप उससे पूछ सकते हैण् इतना सुनकर पहलेवालें ने सबको चैलेंज किया और कहा कि आप चाहो तो सीबीआई से इसकी जांच करवालोए यह जगह मेरी ही हैंण् सीबीआई की इसी महिमा के कारण सब उसके कायल हैण्
मोहल्लें के नुक्कड के एक घर पर ष्वर्मा एन्ड वर्मा ऐडवोकेटसष् का बोर्ड लगा रहता थाण् पास में ही सफाई कर्मचारी कूडा डालते थेण् वहां दो सूअर लेटे रहते थेण् वकील साहब कई बार उन्हें भगाते लेकिन वह ऐसे ढीठ थे कि फिर वही आकर लेट जाते थेण् थकहार कर एक रोज वकील साहब नगर परिषद गए और अपनी समस्या बताई और अपने गुस्से का इजहार करते हुए कहा कि वे बार बार मेरें घर के बाहर आकर ही क्यों बैठते हैण् उन्होंने यहां तक दावा किया कि उन्हें इसमें विदेशी षडयंत्र की बू आती हैए यह भी हो सकता है कि इसमें आईएसआई का हाथ होण् इस पर परिषदवालों का कहना था कि जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता हैण्
शहर की खूबियों में कमी रह जायेगी अगर मैं यहां के बंदरोंए खासकर लालमुंह के बंदरों के बारें में आपको नही बताउॅण् नगर के घने इलाकें में उनका बहुत उत्पात थाण् था क्या अब भी हैंण् आए दिन तोडफोड करनाए करधनी पर सूखते हुए कपडें लेजाना यहां तककि फ्रिज खोलकर सामान लेजाना तक शामिल हैंण् शायद वह सोचते होंगे कि जब हमारें वंशज फ्रिज इत्यादि का फायदा उठा रहे है तो हम ही इस सुविधा से वंचित क्यों रहे घ् एक बार उनके उत्पात से तंग आकर पडौसके अग्रवाल साहब नगरपरिषद गए और स्वास्थ्य अधिकारी से गुस्सें में बोले कि हमारे यहां हद से ज्यादा बंदर हैण् मैं रोज 2 इतने बंदरों का उधम सहन नही कर सकताण् इस पर स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि अग्रवाल साहब ! आप यह बतायें कि आप कितने बंदरों का उधम सह सकते हैण् हम उतने बंदर छोडकर बाकी का इंतजाम करते हैंण्
ऐसी थी हमारे मोहल्लें की महिमा ! चंद घटनाएं आपको बताई हैं ताकि सनद रहे और वक्त बेवक्त काम आएंण्