इंदौर । इंदौर में इंडियन अकैडमी ऑफ़ पीडियाट्रिक्स की ज़ोनल इन्फेक्शियस डिज़ीज़ कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय आईएपी अध्यक्ष डॉ नीलम मोहन, आयोजन समिति अध्यक्ष डॉ के के अरोरा, डॉ पी वाल्वेकर एवं पूरे देश से सम्मिलित हुए डेलीगेट्स की उपस्थिति में कोलकाता से आये विशेषज्ञ अतिथि डॉ जयदीप चौधरी ने बताया की आज हर मर्ज में अत्यधिक एंटीबायोटिक के उपयोग से पेट के बीमारी कारक तत्वों के साथ साथ आंतो में पाचन तंत्र को सुचारू रखने वाले तत्व भी नष्ट हो जाते है फलस्वरूप नई समस्याएं जैसे दस्त , उल्टी , पेट दर्द , पेट में जलन , पेट फूलना , भूख ना लगना तत्काल उत्पन्न हो सकती है और बिना जरूरत लंबे समय एंटीबायोटिक दवाएँ के सेवन से एंटीबॉटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है और भविष्य में आवश्यकता पड़ने पर वह दवाये कारगर नहीं हो पाती और सामान्य बीमारी भी लाइलाज होने लगती है साथ ही एलर्जी , अस्थमा तथा मधुमेह की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है समय रहते सावधान होने और सचेत रहने की आवश्यकता है । तार्किक रूप से आवश्यकता होने पर सही एंटीबायोटिक दवा , सही समय तक , सही खुराकों में उपयोग करना चाहिए ।
संगोष्ठी के चेयरपर्सन के रूप में संबोधित करते हुए डॉ एम के जैन ने बताया कि हर मर्ज में जैसे वायरल बीमारियों , फंगल बीमारियों , प्रोटोज़ुअल बीमारियों अथवा मौसमी बीमारियों में आवश्यकता ना होने पर भी एंटीबायोटिक उपयोग करने से अनेकों समस्यायें उत्पन्न हो रही हैं बचाव और रोकथाम के लिए वास्तव में आवश्यकता होने पर ही एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करना चाहिए क्योंकि यह एक दुधारू तलवार की तरह कार्य करती है और हर मर्ज़ और हर तकलीफ़ में एंटीबायोटिक के रामबाण जैसे उपयोग से बचना चाहिए ।
उपचार के लिए सलाद , फल , फाइबर युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन, दही और मट्ठा आदि का उपयोग करना चाहिए ठीक करने के लिए प्रीबायोटिक और प्रोबायोटिक का उपयोग भी किया जा सकता है ।