बुक बैंक प्रोग्राम के तहत जयपुर के स्कूलों में बांटी सिलेबस की 750 से अधिक पुस्तकें
मिलजुल कर सीखने और शिक्षा के दीर्घकालिक प्रभाव की साझी संस्कृति को बढ़ावा
जयपुर, जुलाई 2025- संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य 4 यानी सभी के लिए समावेशी और समतामूलक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने में गिरनार फाउंडेशन भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रहा है। फाउंडेशन ने बुक बैंक कार्यक्रम के तहत जयपुर के विभिन्न स्कूलों में सिलेबस की 750 से अधिक पुस्तकें वितरिक की हैं। गिरनार फाउंडेशन अपनी इस पहल से मिलजुल कर सीखने और शिक्षा के दीर्घकालिक प्रभाव की सांझी संस्कृति को विकसित करना चाहता है।
गिरनार फाउंडेशन ने शिक्षा को न्यायसंगत और सुलभ बनाने की दिशा में एक प्रशंसनीय पहल करते हुए अपने बुक बैंक प्रोग्राम को जुलाई 2025 में सफलतापूर्वक पूरा किया है। इसके अंतर्गत फाउंडेशन ने जयपुर के तीन स्कूलों एल.एन. सैकंडरी स्कूल (करतारपुरा), सत्यम सीनियर सैकंडरी स्कूल और सेंट जोसेफ एकेडमी में जरूरतमंद विद्यार्थियों को उनकी अकादमिक जरूरत के अनुसार सिलेबस से जुड़ी 750 से अधिक पुस्तकों का वितरण किया। इन पुस्तकों से न केवल वर्तमान विद्यार्थी लाभान्वित होंगे, बल्कि सतत् लेंडिंग मॉडल के जरिए भविष्य के बैच भी इन पुस्तकों का लाभ ले सकेंगे।
इस कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण सीख यह है कि बहुत सारे विद्यार्थियों में सीखने की ललक होती है, लेकिन पाठ्यपुस्तकों जैसी आधारभूत अकादमिक सामग्री का अभाव एक बड़ी बाधा बन जाती है। बहुत सारे ऐसे बच्चे थे जिनको पहली बार अकादमिक सत्र के प्रारंभ में ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों का पूरा सैट मिला। पुस्तकें प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों और पुस्तकें उपलब्ध करवाने वाले गिरनार फाउंडेशन दोनों के लिए ही यह भावुक कर देने वाला क्षण था।
गिरनार फाउंडेशन की प्रमुख, पीहू जैन ने कहा, ‘यह अनुभव केवल किताबें उपलब्ध करवाना नहीं था- यहसम्मान, आत्मविश्वास और भरोसा बहाल करना था कि उनके सपने मायने रखते हैं। हमने पुस्तक बैंक कार्यक्रम को एक घूमने वाले संसाधन के रूप में डिज़ाइन किया है। विद्यार्थियों को पुस्तकों की देखभाल करने और उपयोग के बाद उन्हें वापस करने के लिए प्रोत्साहित करके, हम न केवल एक बैच की मदद कर रहे हैं – बल्कि हम सीखने की एक साझा विरासत को भी सक्षम बना रहे हैं।’
बुक बैंक मॉडल गिरनार फाउंडेशन के समुदाय आधारित शैक्षणिक व्यवस्था के एक दीर्घकालिक नजरिए का हिस्सा है, जहां शिक्षण सामग्री को साझा संपत्ति के रूप में देखा जाता है। परोपकार से सशक्तिकरण की ओर यह बदलाव ही वह बात है जिसे फाउंडेशन अपने सभी कार्यक्रमों के माध्यम से प्रेरित करना चाहता है।