श्रीमती संतोष शर्मा
स्वतंत्र पत्रकार] साकेत नगर] ब्यावर
राखी पूर्णिमा सिर्फ एक पारिवारिक रस्म नहींA बल्कि यह दिन भाई-बहन के रिश्ते की गहराई] सुरक्षा और आपसी विश्वास का प्रतीक होता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैंA जबकि भाई उनकी रक्षा का वादा करते हैं। यह पर्व न केवल प्रेम और सुरक्षा का प्रतीक है] बल्कि इसमें धार्मिक आस्था] पौराणिक परंपराएं और सामाजिक एकता भी गहराई से जुड़ी हुई हैं। रक्षाबंधन को श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता हैA जो 9 अगस्त] 2025 को आयेगी। इस पर्व का समय भी महत्वपूर्ण है] क्योंकि यह माना जाता है कि मानसून का मौसम नए जीवन और ताजगी की शुरुआत लाता है। रक्षाबंधन इसलिए न केवल भाई-बहन के प्रेम का उत्सव है बल्कि रिश्तों को नवीनीकृत करने और पारिवारिक बंधनों को मजबूत करने का भी समय है।
रक्षाबंधन केवल एक रिवाज नहीं है। यह भाई-बहन के बीच अटूट बंधन और उनके द्वारा दर्शाए गए प्रेम] देखभाल और सुरक्षा के मूल्यों का उत्सव है। एक बदलती दुनिया में] रक्षाबंधन का सार हमेशा बना रहता हैA जो हमें परिवार और रिश्तों की स्थायी शक्ति का महत्व याद दिलाता है। हालांकि रक्षाबंधन के पारंपरिक रीति-रिवाज ज्यादातर अपरिवर्तित रहे हैंA लेकिन इसे मनाने का तरीका समय के साथ बदल गया है। आज के वैश्विक युग में] जहाँ परिवार अक्सर दूरी के कारण अलग रहते हैं] तकनीक रक्षाबंधन की भावना को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो बहनें अपने भाइयों के साथ व्यक्तिगत रूप से नहीं हो सकतीं] वे डाक के माध्यम से राखी भेजती हैं और वीडियो कॉल के माध्यम से एक साथ वर्चुअली पर्व मनाना आम हो गया है।
रक्षा बंधन दो शब्दों से मिलकर बना है सुरक्षा और बंधन” यानी संबंध। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर एक पवित्र धागा] जिसे राखी कहा जाता है] बांधती हैं। जो उनके भाइयों की भलाई के लिए प्रार्थना का प्रतीक है। इसके बदले में भाई अपनी बहनों की हर संकट से रक्षा करने का वचन देते हैं। यह साधारण लेकिन गहरा कार्य समय और परिस्थितियों से परे एक वादा दर्शाता है। यह त्योहार एक सामान्य रस्म नहीं बल्कि रिश्तों की गहराई और जिम्मेदारी का प्रतिनिधित्व करता है। पूर्व में ये त्यौहार चचेरे भाई-बहन] भाभी-ननद] मित्र] सहकर्मी] शिक्षक और यहां तक कि सुरक्षा कर्मियों को भी राखी बांधकर समर्पण और सम्मान का भाव प्रकट किया जाता था लेकिन आज यह परंपरा सिर्फ सगे भाई-बहनों तक सीमित रह गई है।
रक्षा बंधन केवल एक पारिवारिक पर्व नहीं] बल्कि इसका गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक पहलू भी है। हिंदू धर्म यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत करने के साथ-साथ धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूजन और व्रत से जुड़ा होता है। बहनें भाई की लंबी उम्र के लिए पूजा करती हैं और रक्षा-सूत्र बांधती हैं। जैन धर्म इस समुदाय में भी यह दिन रक्षा] आत्मबल और सामाजिक जिम्मेदारी को समर्पित होता है। भाई-बहन ही नहीं,समाज के अन्य सदस्यों को भी राखी बांधने की परंपरा है। इसी प्रकार सिख धर्म में इसे राखड़ी” कहते हैं। बहनें भाई को राखी बांधती हैं और भाई बहन की रक्षा का संकल्प लेते हैं। मुस्लिम और ईसाई समुदाय सांस्कृतिक समरसता और मेल-मिलाप के प्रतीक के रूप में राखी पूर्णिमा को मनाते हैं।
राखी का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व इसे और भी गहरा बनाता है। एक प्रमुख कथा के अनुसार देवताओं और असुरों के युद्ध में जब इंद्र को पराजय का सामना करना पड़ा तब उनकी पत्नी शचि (इंद्राणी) ने एक पवित्र सूत्र उनके हाथ में बाँधा। इस रक्षा-सूत्र ने इंद्र को बल प्रदान किया और वे युद्ध में विजयी हुए। तभी से रक्षा-सूत्र बाँधने की परंपरा शुरू हुई। महाभारत के अनुसार द्रौपदी ने श्रीकृष्ण की कलाई से खून बहता देखकर अपनी साड़ी का टुकड़ा बांध दिया। इस प्रेम से प्रभावित होकर कृष्ण ने चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की। यमुना ने यमराज को राखी बांधकर अमरता का वरदान मांगा। यमराज ने वचन दिया कि जो बहन भाई को राखी बांधेगी उसे दीर्घायु और सौभाग्य मिलेगा। राखी के ऐतिहासिक उदाहरण भी इसे एक सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बनाते हैं। चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर अपने राज्य की रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूं ने इसे मानकर मदद के लिए सेना भेजी। इसी प्रकार सिकंदर की पत्नी रोक्साना ने राजा पोरस को राखी भेजकर युद्ध में अपने पति को क्षमा करने की प्रार्थना की। पोरस ने उसे स्वीकार किया और युद्ध में सावधानी बरती।
इस पर्व की तैयारी और पूजा की विधि भी इसके सांस्कृतिक और पारिवारिक महत्व को दर्शाती है। राखी से पहले बाजारों में रौनक देखने लायक होती है। रंग-बिरंगी राखियाँ] मिठाइयाँ] उपहार] पूजा सामग्री और पारंपरिक परिधान हर जगह दिखाई देते हैं। पर्व के दिन बहनें एक विशेष थाली तैयार करती हैं जिसमें राखी] चावल] कुमकुम] मिठाइयाँ और एक जलता हुआ दीपक होता है। शुरुआत बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाने से करती है। इसके बाद वह राखी बांधती है। भाई बदले में अपनी बहन को उपहार देता है। जो उसके प्रेम और सदा उसकी रक्षा करने के वचन का प्रतीक है। यह दिन एकता और उल्लास का प्रतीक बन जाता है। रक्षाबंधन के रीति-रिवाज अत्यंत सुंदर और सार्थक हैं। इन रीति-रिवाजों के बाद परिवार एक साथ मिलकर भोजन का आनंद लेते हैं] मिठाइयाँ बाँटते हैं और बचपन की यादों को ताजा करते हैं। यह खुशी हँसी और एकजुटता का समय होता है जहाँ पूरा परिवार इस पर्व का हिस्सा बनता है।
राखी केवल एक त्योहार नहीं यह सामाजिक समरसता और मूल्यों का प्रतीक है। प्रेम और सुरक्षा की डोरी का यह पर्व दिखाता है कि एक साधारण धागा भी रिश्तों को मजबूत कर सकता है। यह विश्वास] समर्पण और कर्तव्य का बंधन है। अब बहनें भी भाइयों की रक्षा का संकल्प लेती हैं। जिससे यह पर्व समानता और आपसी सम्मान का प्रतीक बन रहा है। सांस्कृतिक एकता का यह पर्व देश की विविधता में एकता का प्रतीक बन चुका है। जहां सभी समुदाय इसे अपने-अपने तरीके से अपनाते हैं।
समय के साथ रक्षा बंधन की परंपराएं भी आधुनिक स्वरूप ले रही हैं। हाल के समय में रक्षाबंधन का व्यापक महत्व भी देखा गया है। वर्चुअल राखी उत्सव के रूप में आज जब परिवार दूर-दूर बसे हैं। तब वीडियो कॉल] ऑनलाइन गिफ्ट्स और डिजिटल राखियाँ इस पर्व को तकनीकी रूप से जोड़ती हैं। इसी प्रकार पर्यावरणीय राखी के रूप में अब बहनें पेड़ों को राखी बांधती हैं ताकि प्रकृति की रक्षा का संदेश दिया जा सके। स्कूली बच्चे पौधों को राखी बांधकर हरियाली का संकल्प लेते हैं। कई बहनें सेना] पुलिस] डॉक्टर और समाज के रक्षकों को राखी बांधती हैं जो सम्मान और सद्भावना का प्रतीक है। इस परिवर्तन से पर्व का मूल संदेश जो प्रेम] एकता और सुरक्षा का है और भी स्पष्ट होता है। जिससे यह पर्व राष्ट्रीय भावना और कर्तव्य बोध से भी जुड़ता है।
यह त्योहार भावनात्मक स्थायित्व और पारिवारिक जुड़ाव को मजबूत करता है। बच्चों में रिश्तों के प्रति जिम्मेदारी और सम्मान की भावना विकसित होती है। यह आत्मीयता] सहानुभूति और देखभाल जैसे गुणों को बढ़ावा देता है। वही समाज में रिश्तों की अहमियत को समझने और निभाने का प्रेरक बनता है
रक्षा बंधन केवल एक पारंपरिक रस्म नहीं बल्कि सामाजिक समरसता भावनात्मक जुड़ाव और पारिवारिक जिम्मेदारी का उत्सव है। यह पर्व धार्मिक परंपराओं से लेकर आधुनिक समाज तक एक पुल का काम करता है। जहां रिश्ते] मूल्य और समानता को सम्मान मिलता है। आज जब सामाजिक रिश्ते समय और दूरी के कारण चुनौती में हैं ऐसे में राखी हमें याद दिलाती है कि एक छोटी सी डोरी भी विश्वास और जिम्मेदारी का अटूट बंधन बन सकती है। रक्षा बंधन या कहें राखी पूर्णिमा का यही असली महत्व है। रिश्तों को जोड़ना] निभाना और सहेजना।
इस वर्ष रक्षाबंधन का उत्सव मनाते समय आइए हम परंपराओं को अपनाएँ। अपने प्रियजनों को संजोएँ और चाहे जीवन हमें कहीं भी ले जाए। एक-दूसरे का समर्थन और सुरक्षा करने के अपने वादों को नवीनीकृत करें। रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ!