
देश की आधी आबादी कहीं जाने वाली नारी वर्ग इन दोनों एक भयंकर नशे की गिरफ्त में है। यह नशा न केवल स्वयं की जिंदगी बल्कि पूरे परिवार और समाज को बर्बादी की ओर धकेल रहा है।
यूं तो अनेक प्रकार के नशे जैसे शराब ,गांजा, चरस, स्मैक आदि देश के विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित है। उनका प्रभाव नशा करने वाले तक ही सीमित रहता है ।लेकिन देश की विशेष कर नारी वर्ग में *मोबाइल पर रील बनाने का जो नशा* है।वह पूरे देश के घरों समाज और संस्कृति पर असर डाल रहा है।
मोबाइल पर रील बनाने का नशा वैसे महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही है लेकिन देश की *आधी आबादी कहीं जाने वाली महिला वर्ग को इस नशे ने पूरी तरह से गिरफ्त में जकड़ लिया है।* ख़तरे वाली तथा प्रतिबंधित जगहों पर अपनी जान जोखिम में डालकर भी रील बनाने से नहीं चूकते। और रील बनाने की चाह में कोई बाढ़ से उफनते नदी नालों में बह जाते हैं। तो बचावकर्मियों के साथ आम जनता को भी परेशानी झेलनी पड़ती है।लेकिन इन सब के बावजूद रील बनाने के नशा कम नहीं हो रहा है।घर परिवार तबाह हो रहें हैं।
विदेशों में मोबाइल के उपयोग को सीमित करने के लिए कानून बनाएं गए हैं । ऑस्ट्रिया में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे यु ट्यूब नहीं चला सकते ।
लेकिन भारत में इस दिशा में अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
जिससे मोबाइल का अंधाधुंध उपयोग बढ़ता जा रहा है। देश की जितनी जनसंख्या है (140करोड) करीब उतने ही मोबाइल इस देश में उपयोग किए जा रहे हैं। पारिवारिक रिश्तो में दरारें पैदा हो रही है। एक कमरे में बैठे *परिवार के 4 सदस्य भी एक दूसरे से बोल बतलाने की बजाय अपने- अपने मोबाइल में* व्यस्त हैं।
*आनलाईन गेम* के प्रभाव से देश में अपराध,हत्या -आत्महत्या चोरी लूटमार की संख्या में भी इजाफा होने लगा है।
*सृजन और विध्वंस* दोनों ही गुण सोशल मीडिया में है।
*सीमित और सकारात्मक कार्यों में उपयोग किया जाए तो सृजन का काम कर वरदान साबित हो सकता है।*
*असीमित तथा नकारात्मक कार्यों में उपयोग हो तो श्राप बनकर विध्वंस भी कर सकता है।*
मोबाइल की गुलामी की ओर बढ़ते देशवासियों को इसका उपयोग कैसे करना है? आजादी के इस पर्व पर यह हमे सोचना होगा …..!
*हीरालाल नाहर पत्रकार*
लेखक व चिंतक
*9929686902*