फर्जी दिव्यांग्ता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने के आरोपी स्टेनोग्राफर के विरूद्ध आयोग ने की कार्यवाही

अजमेर, 14 अगस्त। राजस्थान लोक सेवा आयोग ने अजमेर के सिविल लाइंस पुलिस थाने में आयोग में कार्यरत् स्टेनोग्राफर अरुण शर्मा के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मामला दर्ज कराया है। शर्मा ने 2018 की संयुक्त सीधी भर्ती परीक्षा में सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी दिव्यांगता प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया था।
फर्जी प्रमाण पत्र का इस्तेमाल
शिकायत के अनुसार, राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड द्वारा 4 जुलाई 2018 को स्टेनोग्राफर संयुक्त सीधी भर्ती परीक्षा का विज्ञापन जारी किया गया था। इसमें आरपीएससी के लिए पांच पद शामिल थे, जिनमें से एक पद ब्लाइंड/लो विजन श्रेणी के दिव्यांगों के लिए आरक्षित था।
आरोपी ने इस श्रेणी में 24 सितंबर 2020 को आवेदन किया। परीक्षा में चयन होने पर शर्मा द्वारा विस्तृत आवेदन-पत्र के साथ दिव्यांगजन विशिष्ट पहचान प्रमाण-पत्र बोर्ड को प्रस्तुत किया, इसमें लो विजन में स्थाई दिव्यांगता का प्रतिशत 70 दर्शाया गया था। 4 अप्रेल 2022 को चयन बोर्ड द्वारा दस्तावेज सत्यापन के दौरान विकलांग प्रमाण-पत्र जमा न कराने पर शर्मा को प्रोविजनल किया गया। इस पर आरोपी ने जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं चिकित्सालय का फर्जी स्थाई विकलांगता प्रमाण पत्र क्रमांक 303/2019 कर्मचारी चयन बोर्ड में जमा कराया। इसमें भी आरोपी की स्थाई विकलांगता का प्रतिशत 70 से अधिक दर्शाया गया।
11 मई 2022 को जारी अंतिम परिणाम में चयन बोर्ड ने आरोपी द्वारा प्रस्तुत फर्जी प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए ब्लाइंड/लो विजन श्रेणी में विचारित कर मेरिट क्रमांक 4168 पर चयनित कर लिया। इसके अनुसार आरपीएससी ने 21 जून 2022 को आरोपी शर्मा की नियुक्ति का आदेश जारी किया और उन्होंने 24 जून 2022 को स्टेनोग्राफर के पद पर कार्यभार संभाला।
आयोग की जांच और खुलासा
कार्मिक (क-5/भर्ती प्रकोष्ठ) विभाग के पत्र दिनांक 6 जून 2024  की अनुपालना में आयोग कार्यालय में विगत 5 वर्षों में सीधी भर्ती द्वारा नियुक्त कार्मिकों के दस्तावेजों की जांच की गई। इसके लिए आयोग ने 6 अगस्त 2024 को एक आंतरिक समिति का गठन किया। समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के प्रस्तावानुसार आयोग ने 9 सितंबर 2024 को जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय को पत्र प्रेषित कर मेडिकल बोर्ड से शर्मा की दिव्यांगता की गंभीरता से जांच करने का अनुरोध किया।
जांच में सहयोग न करने पर मांगा आरोपी से स्पष्टीकरण
आयोग द्वारा आरोपी की निशक्ता जांच हेतु किए गए अनुरोध के क्रम में 4 मार्च 2025 को अधीक्षक जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय द्वारा अवगत कराया गया कि आरोपी मेडिकल जांच के लिए उपस्थित नहीं हुआ है। चिकित्सक व कार्मिकों द्वारा दूरभाष पर शर्मा से संपर्क करने का प्रयास करने पर भी फोन अटेंड नहीं किया व न ही अपना फोटो व पहचान चिन्ह उपलब्ध करवाए हैं। इस पर आयोग द्वारा आरोपी को विधि सम्मत निर्देशों की अवज्ञा करने के संबंध में पत्र जारी कर स्पष्टीकरण मांगा गया। इसके साथ ही चिकित्सालय को आरोपी की जांच हेतु पुनः मेडिकल बोर्ड का गठन करने के संबंध में निर्देशित किया गया।
जांच रिपोर्ट तारीख में हेरफेर से गहराया संदेह
अधीक्षक, सामूहिक चिकित्सालय संघ, अजमेर द्वारा एक मेडिकल बोर्ड का पुनर्गठन करवाया, जिसने शर्मा को 27 मार्च 2025 को जांच के लिए बुलाया। शर्मा जांच के लिए उपस्थित हुए, जिसके बाद जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, अजमेर के नेत्र चिकित्सा विभाग ने अपनी जांच रिपोर्ट आयोग को भेजी। इस रिपोर्ट के साथ एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर की विजुअल इवोक्ड पोटेंशियल जांच रिपोर्ट भी संलग्न थी, जिसकी तारीख 28 सितंबर 2024 थी। आयोग को संदेह हुआ क्योंकि 28 सितंबर 2024 को शर्मा ने मुख्यालय छोड़ने की अनुमति जयपुर के बजाय डेगाना, नागौर के लिए ली थी। इस पर आयोग ने शर्मा से स्पष्टीकरण मांगा।  अपने जवाब में, शर्मा ने कहा कि वे जांच के लिए 30 सितंबर 2024 को जयपुर गए थे और जांच स्लिप पर 28 सितंबर 2024 की तारीख संभवतः गलत हो सकती है। इसके अलावा, जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय, अजमेर की 28 मार्च 2025 की जांच रिपोर्ट में निम्नलिखित कारणों से संदेह पैदा हुआ। रिपोर्ट के साथ संलग्न एसएमएस, जयपुर की जांच रिपोर्ट की तारीख 28 सितंबर 2024 थी। डॉ. किशोर कुमार, सहायक आचार्य, एसएमएस, जयपुर ने भी 28 सितंबर 2024 को जांच होने की पुष्टि की, जबकि आरोपी ने 30 सितंबर 2024 को जांच कराने का दावा किया। जवाहरलाल नेहरू आयुर्विज्ञान महाविद्यालय के नेत्र चिकित्सा विभाग ने एसएमएस, जयपुर द्वारा 28 सितंबर 2024 को की गई वीईपी जांच को विश्वसनीय नहीं बताया।
एसएमएस मेडिकल बोर्ड ने किया अयोग्य घोषित
उपरोक्त घटनाक्रम के आधार पर आयोग ने 23 अप्रेल 2025 को पत्र प्रेषित कर अधीक्षक सवाई मानसिंह चिकित्सालय, जयपुर से आरोपी की निःशक्तता की जांच गंभीरता पूर्वक करने हेतु मेडिकल बोर्ड का गठन करने को कहा गया। जांच उपरांत मेडिकल बोर्ड ने 23 मई 2025 को अपनी रिपोर्ट में शर्मा की नेत्र दिव्यांगता 30 प्रतिशत से कम पाई और उन्हें पीएच श्रेणी के लिए अयोग्य घोषित किया।
भर्ती के समय दिया प्रमाण-पत्र भी निकला फर्जी
जेएलएन मेडिकल कॉलेज ने 18 जुलाई 2025 को एक जांच रिपोर्ट भेजी, जिसमें बताया गया कि उनके नेत्र रोग विभाग ने शर्मा को ऐसा कोई प्रमाण पत्र जारी नहीं किया था। प्रमाण पत्र पर मौजूद हस्ताक्षर और मुहर भी विभाग के किसी डॉक्टर के नहीं थे। रिकॉर्ड के अनुसार, 19 जुलाई 2019 को अरुण शर्मा के नाम से कोई भी दिव्यांग प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया था।
जांच में यह भी सामने आया कि शर्मा ने 19 जुलाई 2019 को जारी हुए फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नागौर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से 12 फरवरी 2020 को एक ऑनलाइन विकलांगता प्रमाण पत्र भी प्राप्त किया था।
पुष्टि होने पर दर्ज कराया प्रकरण
आयोग ने सभी जांच रिपोर्टों और दस्तावेजों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि अरुण शर्मा ने जानबूझकर फर्जी प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर धोखाधड़ी से सरकारी नौकरी प्राप्त की है। इसके बाद, आरपीएससी ने शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।

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