25 सितम्बर (आत्मलोचन)

ई. शिव शंकर गोयल

एक बार किसी ने मुझें कहा :-

“मैंने तुम्हारी आंख में हीरे की कनि देखी है.
कही ऐसा तो नही कि, तुम्हें किसी ने सिखा दिया हो,
सत्य पर टिके रहना, कर्तव्य का पालन करना, औ’
परोपकार करना ; ‘गर, ऐसा है तो, तुम्हारी आंखों में,
आंसूओं का सैलाब भी उमडै, तो कोई आश्चर्य नही होगा.”
मेरा यह मानना है कि मनुष्य जीवन, ईश्वर प्रदत्त ताश के पत्तों का खेल है. पूर्व जंमों में किये गए कर्मों (प्रारब्ध) के फलस्वरूप जो भी पत्तें मिले है, हमें उन्हीं से खेलना होता है. मनुष्य को दिक्कत तब आती है जब वह जिध्द करने लगता है कि मुझें तो जिन्दगी में फलां फलां पत्तें ही चाहिए.
पंजाब केसरी अखबार में इशोपनिषद की यह उक्ति प्रतिदिन छपती है “ईशावास्यमिदं सर्व यत्किंच जगत्याम जगत” जिसका तात्पर्य है कि ईश्वर सर्वत्र है, सब में है, सब समय है. हम सबको इसमें दृढता से विश्वास रखना चाहिए.
Art of living के प्रणेता श्री रवि शंकरजी का एक लेख (साम्यवाद के जनक, श्री कृष्ण) दिनांक 13.6.2004 के Hindustan Times में छपा था जिसमें लिखा था कि साम्यवाद तो गीता की उपज है.  (श्रीमदभागवत गीता अध्याय 3 एवं 4). मैं इस धारणा से भी प्रभावित रहा हूं.
प्रसिध्द दैनिक राजस्थान पत्रिका में दार्शनिक वाल्टेयर की यह उक्ति प्रतिदिन छपती है “हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत ना होऊं, फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों का सम्मान करूंगा”.
 इसके अतिरिक्त महाभारत के पात्र बर्बरिक (वर्तमान में खाटू श्यामजी के नाम से मशहूर) की कथा का भी मेरे ऊपर प्रभाव पडा है जो पांडु-पुत्र होने के बावजूद, युध्द के शुरू में ही, पांडवों से स्पष्ट कह देते है कि मैं, आपकी तरफ से नही बल्कि, जो कमजोर, असहाय होगा उसकी तरफ से युध्द करूंगा.
मैं दैनिक भास्कर के मालिक और भूतपूर्व सम्पादक स्व: रमेशचन्द्र अग्रवाल की “जिध्द करो और आगे बढो” वाली बात में विश्वास करता हूं और यह भी मानता हूं कि नीतिगत राजनीति (दलगत नही) देश के प्रति चिंतन है. देश के हर एक जागरूक नागरिक के लिए यह लाजिमी है.
जहां तक उम्र का प्रश्न है What matters is depth & not the length.
जिन्दगी में कोशिश तो यही रही है कि कार्य करते समय देश-प्रेम, कार्य के प्रति प्रतिबध्दता, समय की पाबंदी, जहां तक हो सके हिन्दी भाषा में काम करना और कमजोर, असहाय की मदद करना, फिर भी मेरे में कमियां तो है ही.
विगत जीवन में जो कुछ हुआ, इन सबको भुलाकर हास्य-रस को बांटने की कोशिश की है. इन सबके बावजूद गलतियां हुई है, उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं.
विनित
शिव शंकर गोयल

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