वैश्विक अर्थव्यवस्था के 2060 की ओर बढ़ने के साथ हाइड्रोजन की मांग बढ़ने का अनुमान- एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स

नई दिल्ली, सितंबर, 2025- हाइड्रोजन के क्षेत्र में भारत खुद को वैश्विक नेता के तौर पर स्थापित करने की स्थिति में है। ऐसे में इस देश की उभरती हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था को आकार देने के लिए नीति निर्माता, उद्योगपति और निवेशक वर्ल्ड हाइड्रोजन इंडिया समिट के उद्घाटन समारोह में एकत्रित हुए। एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट के विशेषज्ञों ने यह बात रेखांकित की कि कैसे वैश्विक एवं भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में हाइड्रोजन की भूमिका उल्लेखनीय रूप से विस्तार लेगी जिसमें भारत घरेलू स्तर पर इसका उपयोग बढ़ाते हुए एक किफायती प्रतिस्पर्धी वैश्विक आपूर्तिकर्ता के तौर पर उभरने की अनूठी स्थिति में है।

नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्री श्री प्रह्लाद वेंकटेश जोशी ने “भारत का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशनः नीति, प्रोत्साहन और वर्ष 2030 तक 5 एमएमटी तक पहुंचने का मार्ग” विषय पर एक वर्चुअल मुख्य भाषण दिया। इस बीच, एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के सह अध्यक्ष डेव अर्न्सबर्जरने “भारत के हरित भविष्य को हाइड्रोजन से ताकत” विषय को लेकर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री श्री हरदीप सिंह पुरी के साथ गहन चर्चा की।

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के भारत प्रमुख पुलकित अग्रवाल ने कहा, “वैश्विक हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण देश के तौर पर भारत का उद्भव, इसके ऊर्जा एवं कमोडिटी बाजार उद्भव के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत 2.4 अरब डॉलर निवेश से वर्ष 2030 तक सालाना 50 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य और इसके आधे से अधिक का निर्यात करने की महत्वाकांक्षा है। घरेलू खपत और निर्यात की तैयारी का दोहरा फोकस, एक सूक्ष्ण रणनीति दर्शाता है। यह रणनीति है वैश्विक बाजारों के लिए किफायती एवं प्रतिस्पर्धी आपूर्तिकर्ता के तौर पर भारत की स्थिति बनाते हुए आंतरिक लचीलापन तैयार करना।”

उन्होंने आगे कहा कि भारत की ऊर्जा मूल्य श्रृंखला, सिटी गैस, रिफाइनरियों, फर्टिलाइजर और अक्षय ऊर्जा में हाइड्रोजन का विघटनकारी प्रभाव होगा। वहीं एक महत्वपूर्ण बाधा के तौर पर मूल्य निर्धारण के लिए टिकाऊ नीतिगत सहयोग और जबरदस्त बाजार व्यवस्था की जरूरत होगी।

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के वरिष्ठ विश्लेषक (मात्रात्मक विश्लेषण) अभय सिंह ने कहा, “हमारे रेनेसां परिदृश्य में दुनियाभर में हाइड्रोजन की मांग 2060 तक मौजूदा स्तर से 3.5 गुना तक बढ़ सकती है। यह आज की अंतिम ऊर्जा मांग का 1.7 प्रतिशत है जिसके 2060 तक 7 प्रतिशत से ऊपर जाने की संभावना है। भारत में भी अंतिम ऊर्जा मांग में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी आज के 1.8 प्रतिशत से बढ़कर रेनेसां परिदृश्य में 3 प्रतिशत से ऊपर जाने की संभावना है जिसमें उत्पादन का करीब 80 प्रतिशत हरित हाइड्रोजन से आने की संभावना है। यह उद्भव डिकार्बनाइजेशन को गति देते हुए भारत के संतुलित कार्य और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि को रेखांकित करता है।”

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स की निदेशक (एनर्जी ट्रांजिशंस एंड क्लीन टेक) गौरी जौहर ने कहा, “भारत और चीन इलेक्ट्रोलाइटिक अमोनिया के लिए सबसे कम लागते वाले आपूर्ति क्षेत्रों के तौर पर उभर रहे हैं। भारत की ग्रीन हाइड्रोजन सर्टिफिकेशन स्कीम, वैश्विक मानकों के साथ तालमेल बिठाने में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसके तहत वित्त पोषित परियोजनाओं के लिए उत्सर्जन 2 kg CO₂e/kg H₂ के नीचे लाना अनिवार्य है। बड़ी इलेक्ट्रोलाइटिक परियोजनाएं भारत, चीन, अमेरिका और यूरोप में केंद्रित होने के साथ, भारत की इसे बढ़ाकर 100-500 मेगावाट तक की परियोजनाओं तक ले जाने की क्षमता, हाइड्रोजन पारितंत्र में तेजी लाने के लिए महत्वपूर्ण होगी।”

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के शिपिंग एनालिटिकल रिसर्च के प्रमुख राहुल कपूर ने कहा, “भारत शिपिंग उत्सर्जन घटाने और नेट-जीरो लक्ष्यों को हासिल करने के लिए वैकल्पिक समुद्री ईंधन के तौर पर हाइड्रोजन और अमोनिया को प्राथमिकता दे रहा है। इस सरकार के विजन में वर्ष 2025 तक एक बंदरगाह पर ग्रीन अमोनिया बंकरिंग सुविधाएं और 2035 तक सभी प्रमुख बंदरगाहों पर ये सुविधाएं स्थापित करना शामिल है जो निर्यात महत्वाकांक्षाओं के साथ समुद्री ढांचागत सुविधाओं के अनुरूप है। यह भारत को भावी स्वच्छ ईंधन व्यापार प्रवाह में सक्रिय भागीदारी करने की स्थिति में लाता है।”

एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स के सीनियर प्राइसिंग रिपोर्टर (एनर्जी ट्रांजिशन) विपुल गर्ग ने कहा, “हाल में भारतीय निविदाओं ने 4 डॉलर प्रति किलोग्राम से नीचे का हाइड्रोजन मूल्य और 600 डॉलर प्रति मीट्रिक टन के करीब अक्षय अमोनिया हासिल किया है जोकि वैश्विक मानकों पर बहुत प्रतिस्पर्धी है। भले ही इन मूल्यों के लंबे समय तक टिके रहने को लेकर सवाल हो सकते हैं, रिफाइनरियों और फर्टिलाइजर उत्पादकों के साथ बाध्यकारी उठाव के समझौते मजबूत शुरुआती मांग के संकेत देते हैं। इस्पात, परिवहन और अन्य कठिन काम वाले क्षेत्रों में बढ़ती रुचि, प्रोत्साहन और कार्बन क्रेडिट, जीवाश्म ईंधन के मुकाबले लागत अंतर को और पाट सकते हैं।”

 

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