गंगा जमुना संस्कृति के प्रतीक राष्ट्रपिता बापू

डा. जे.के.गर्ग

मोहनदास करमचंद गांधी वास्तव के अंदर एक   विचारधारा ही है जिससे सभी परिचित है | अहिंसा एवं सत्य के सिद्धांत के जनक के रूप में आज भी उन्हें याद किया जाता है, हालांकि गांधीजी की विचारधारा को शब्दों की माला में पिरोने का काम काफी मुश्किल कार्य है |  गांधीजी ने सबको सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पे चलने का संदेश दिया था कि व्यक्ति अपने विचारो में परिवर्तन ला कर बड़ी से बड़ी जंग जीती जा सकती है, गांधीजी ने अपने विचारो के माध्यम से राजनितिक, दार्शनिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन किये, वे एक समाज सुधारक भी थे उन्होंने निची जाति के लोगो के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई एवं छुआ-छूत का विरोध किया| दलित जाति के लोगो को सर्वप्रथम उन्होंने ही हरिजन कह कर बुलाना प्रारंभ किया जिसका शाब्दिक अर्थ “ईश्वर के बच्चे” है।

21वी सदी का युवा क्या विश्वास करेगा कि कोई मनुष्य अपने जीवन में 79000 किलोमीटर पैदल चल सकता है यानी धरती का दो बार चक्कर लगा सकता महात्मा गांधी मानते थे कि पैदल चलना व्यायाम का राजा है, इसलिए वे बहुत लंबी दूरी के लिए भी किसी साधन की बजाय पैदल चलने को तरजीह देते थे।  वे अपने पूरे जीवन में औसतन रोज 18 किलोमीटर पैदल चले। ! 1913 से 1938 तक विभिन्न आंदोलनों के दौरान 25 वर्षों में वे करीब 79,000 किलोमीटर पैदल चले। देश के लिए चालीस साल के स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधीजी ने करीब 1 करोड़ शब्द अपने हाथों से लिखे यानी रोज करीब 700 शब्द लिखें। बापूजी कहते थे कि में भगवान राम के अंदर पुरी आस्था रखता हूँ और मूल रूप में एक धार्मिक प्रवत्ति का इंसान हूँ और मेरे धर्म पर मेरी गहरी आस्था है, में इसके लिये अपने प्राण दे सकता हूँ | लेकिन धर्म मेरा पूर्ण रूप से निजी मामला है | राज्य का मेरे धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं होता है और ना ही कभी भी होना चाहिये गांधीजी के लिये स्वच्छता एक काम या आदत नहीं वरन जीने का एक तरीका था | वो अपना सारा कांम खुद अपने हाथों से किया करते थे आज कल के नेताओं की तरह वो स्वच्छता का ढिंढोरा नहीं करते थे वो तो सही मायनों के अंदर एक महामानव थे उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं होता था बापू जी ससत किताबें लिखी और भगवद गीता का गुजराती में अनुवाद भी किया
गांधीजी की ऐसी विचारधारा थी कि राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उनके अनुसार ईश्वर तो सत्य एवं प्रेम का रूप हैं, उनका भी यही मानना था की सबका मालिक एक है बस सब ईश्वर की अलग अलग व्याख्या करते हैं, गांधीजी का स्वयं का जीवन मानव और समाज का वो नैतिक लेख है जिसके गर्भ दृष्टि से उनकी अहिंसा एवं सत्य की विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ।गांधीजी ने बताया कि मैं तुम्हे एक मन्त्र देता हूँ  जब भी तुम्हे संदेह हो या तुम्हारा अहम् तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी आजमाना, जो सबसे गरीब और कमजोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने दिल से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिए उपयोगी होगा क्या ? उससे उसे कुछ लाभ पहुंचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर कुछ काबू रख सकेगा? यानि क्या उससे उन करोड़ो लोगो को स्वराज मिल सकेगा जिनके पेट भूखे आत्मा अतृप्त है? तब तुम देखोगे तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम् समाप्त होता जा रहा है।
गांधीजी के विचार आज भी हमारे ह्रदय
के अंदर उपस्थित हैं एक विचारधारा के रूप में। गांधीजी मानते थे कि सभी  को मानवता का पालन करना चाहिये | आदमी को मानवता में कभी भी विश्वास नहीं खोना चाहिए क्योंकि मानवता एक समुद्र के समान है जिसकी अगर कुछ बूंदें सुख भी जाये तो ना वो खाली होता है और ना ही सूखता है | आजादी का कोई मतलब नहीं अगर उसमे गलतियाँ करने की आजादी शामिल नहीं हो | गांधीजी के मुताबिक सबसे ताकतवर भी कमजोर हो सकता और बुद्धिमान भी गलती कर सकता है | मतभेद का होना एक स्वस्थ संकेत है किन्तु मन भेद नहीं होना चाहिए | “गांधीजी पूंजीवादी विचारधारा के विरोधी रहे क्योंकि  वो शक्ति के विकेंद्रीकरण में विश्वास रखते थे इसलिए उन्होंने ग्राम पंचायतों को शक्तिशाली बनाने पर जोर दिया, उन्होंने हमेशा से राम राज्य की कल्पना की जहां हिंसा नहीं अहिंसा का बोलबाला हो, गांधीजी ने कहा था कि, “मैं उस राम में आस्था नहीं रखता जो रामायण में हैं  या मन्दिर में है में तो तो उस राम में आस्था रखता हूँ जो मेरे मन में हैं” | विडम्बना तो यही है कि आजकल समाज के कतिपय नेता बापू के बारे मे अनर्गल बेतुके बयान देकर उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं और बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को शहीद बताने पर अपने को देशभक्त कहकर संसद के सदस्य  बन जाते हैं और उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती है पता नहीं हम कहां जा रहे हैं | रघुपति राजा राम पतित पावन सीता राम सबको सन्मति दें भगवान ईश्वर अल्लाह एक ही नाम को भूल कर विभिन्न समुदायों  के बीच वैमनस्य पैदा करके गंगा जमुनी संस्कृति  को नष्ट कर रहे हैं |
 उनके अनुसार भारत की सभी समस्याओं का समाधान अहिंसा में छिपा है। गांधीजी का ऐसा मानना था की व्यक्ति को हर परिस्थिति में अपना धैर्य बनाये रखना चाहिए और कभी भी असत्य के मार्ग को नहीं अपनाना चाहिए, गांधीजी ने निज स्वार्थ के लिए कभी भी कोई कार्य नहीं किया वो कभी भी किसी लाभ के पद पर नहीं रहे उनका ऐसा मानना था कि निज स्वार्थ मनुष्य के अंदर कायरता, लोभ, मोह जैसे दुर्गुणों का संचार करती है जिससे  ना तो व्यक्ति का भला होता है और ना ही परिवार और उस समाज का जहाँ वो रह रहा है।निसंदेह गांधीजी की विचारधारा सत्य, अहिंसा, कर्तव्य प्रान्यता, सहनशीलता एवं संवेदनशीलता पर आधारित थी जिसके आत्मबल पर उन्होंने  भारत को अंग्रेज़ो की गुलामी से स्वतंत्रता दिलाई जिससे यह बात प्रमाणित  होती है कि अगर आदमी के अंदर सत्य, अहिंसा, कर्तव्यपराण्यता, सहनशीलता एवं संवेदनशीलता उपस्थित हो तो वो अपने देश में सुधारवादी अहिंसात्मक क्रांति ला सकता है।गांधीजी की ऐसी विचारधारा थी कि राज्य को धर्म के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, उनके अनुसार ईश्वर तो सत्य एवं प्रेम का रूप हैं, उनका भी यही मानना था की सबका मालिक एक है बस सब ईश्वर की अलग अलग व्याख्या करते हैं, गांधीजी का स्वयं का जीवन मानव और समाज का वो नैतिक लेख है जिसके गर्भ दृष्टि से उनकी अहिंसा एवं सत्य की विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ।
बापूजी की 2 अक्टूबर 2025को उनकी 156वीं जयंती पर हम सभी उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके संकल्पों का देश बनाने काप्रण लें और ऐसा भारत बनाये जहां सभी धर्मों का सम्मान करें खुद जिएं दूसरों को अपनी आस्था के मुताबिक़ जीने दें | अपनी बात कहने आजादी दें | मत भेद हो सकते है किन्तु मन भेद नहीं हो |
  डॉ जे के गर्ग

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