इन दिनों राज्य में तेज तर्रार नेता खूब चर्चा में हैं। पुलिस से टकराव की एक के एक बाद घटनाएं हो रही हैं। चूंकि सोषल मीडिया का जमाना है, इस कारण ऐसे नेता ही सुर्खियां बटोर रहे हैं। सवाल उठता है कि क्या राज्य की राजनीति करवट ले रही है? क्या नए युग का सूत्रपात हो रहा है? क्या यह लोकतंत्र का नया चेहरा है? क्या व्यवस्था में मौजूद प्रषासनिक संवेदनहीनता के खिलाफ आमजन में आक्रोश बढता जा रहा है? नेताओं की जो तेजतर्रारी है, वह जनता के मन में उमड रहे असंतोश की निश्पत्ति है। जो जितनी आक्रामक षैली में विरोध प्रदर्षन करता है, उसे उतना ही अधिक जनसमर्थन मिल रहा है। कहीं हम कानून-व्यवस्था बनाने वाली पुलिस को दुष्मन मानने लगे हैं? कहीं युवा पीढी में सरकार व प्रषासन से टकराव की प्रवृत्ति तो नहीं बढ रही है? क्या पुलिस को ललकारना गौरव है? बेषक संविधान ने पुलिस को अपार अधिकार दिए हैं, कानून के हाथ बहुत लंबे हैं, मगर ऐसा लगता है कि मौजूदा राजनीतिक सिस्टम में पुलिस दबाव की स्थिति में आ गई है। विरोध प्रदर्षन के दौरान वह बहुत संयम बरतती है, मगर स्थिति काबू से बाहर होने पर चरणबद्ध उपाय करने को मजबूर होती है।
पिछले दिनों हुई कुछ वारदातों के बाद यह कयास भी लगाए जा रहे हैं कि क्या राज्य में तीसरा मोर्चा खडा हो जाएगा? क्या गैर कांग्रेसी व गैर भाजपाई क्षत्रप एकजुट हो जाएंगे? अब तक अनुभव का देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इसकी संभावना कम है। और अगर वे आगामी चुनाव में प्रभावषाली स्थिति में रहते हैं तो उसका नुकसान कांग्रेस को ही होगा। क्योंकि भाजपा का वोट आमतौर पर इधर उधर नहीं होता।