जन स्वास्थ्य शिक्षा पर आईआईएचएमआर की बड़ी पहल, SEAPHEIN वेबिनार से एशिया को मिलेगा नया रोडमैप

दक्षिण-पूर्व एशिया में स्वास्थ्य शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आईआईएचएमआर ने लिया बड़ा कदम

जयपुर,  01 अक्टूबर,, 2025 । आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी ने दक्षिण-पूर्व एशिया में जन स्वास्थ्य शिक्षा को मजबूती देने के लिए बड़ा कदम उठाया है। यूनिवर्सिटी ने SEAPHEIN (साउथ-ईस्ट एशिया पब्लिक हेल्थ एजुकेशन इंस्टिट्यूट नेटवर्क) के सहयोग से एक अहम वेबिनार की शुरुआत की। दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा कार्यक्रमों का परिदृश्य विषय पर आयोजित इस कार्यक्रम ने स्वास्थ्य शिक्षा को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंडे में मजबूती से स्थापित कर दिया।

उत्तराखंड और पंजाब में हालिया बाढ़ हो या कोविड-19 महामारी का असर—बार-बार सामने आ रही सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों ने यह साफ कर दिया है कि अब शिक्षा और प्रशिक्षण को नई दिशा देने का समय आ गया है। इसी संदर्भ में आयोजित वेबिनार में भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और स्विट्ज़रलैंड के 200 से अधिक जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नेताओं ने भाग लिया। सभी ने मिलकर भविष्य के संकटों से निपटने के लिए क्षेत्र-विशिष्ट समाधान तैयार करने पर जोर दिया।

चर्चाओं में साफ कहा गया कि स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में फैकल्टी की कमी, मांग और आपूर्ति की असमानता और वैश्विक मानकों को अपनाने की चुनौतियों को तुरंत दूर करना होगा। विशेषज्ञों ने मान्यता प्रक्रियाओं को तेज करने, संकाय विकास में निवेश बढ़ाने और सीमा-पार सहयोगी शोध को बढ़ावा देने की सिफारिश की।

आईआईएचएमआर यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट और SEAPHEIN के महासचिव डॉ. पी.आर. सोडानी ने कहा, “जन स्वास्थ्य शिक्षा का मकसद सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि छात्रों को असली जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार करना जरूरी है। हम दक्षिण-पूर्व एशिया में सहयोगात्मक पहलों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

वहीं, आईआईएचएमआर के अध्यक्ष और SEAPHEIN के अध्यक्ष डॉ. एस.डी. गुप्ता ने सत्र की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि “नवाचार, नेतृत्व विकास और रणनीतिक साझेदारी ही इस क्षेत्र में स्वास्थ्य शिक्षा को नई ऊंचाई दे सकते हैं।”

वेबिनार में श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, बांग्लादेश और भारत सहित कई देशों के दिग्गज विशेषज्ञ शामिल हुए। इनमें प्रो. आर. सुरेंथिरन कुरुमन (जाफना विश्वविद्यालय, श्रीलंका), प्रो. हला हला विन (एसटीआई हेल्थ साइंसेज यूनिवर्सिटी, म्यांमार), प्रो. नेयजांग वांगमो (भूटान), प्रो. शरेमीन यास्मीन (बांग्लादेश), प्रो. संजय ज़ोडपे (इंडियन पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन) और ब्रिटेन के प्रो. जॉन मिडलटन भी शामिल थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ा और शिक्षा को व्यावहारिक बनाया गया, तो दक्षिण-पूर्व एशिया भविष्य में महामारी और आपदाओं से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हो सकेगा ।

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