अहिंसा पुजारी महात्मा गांधी

– श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में जिन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर भारत को सैकड़ों वर्षों की अंग्रेजो की गुलामी से स्वतंत्र कराया, ऐसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जीवन जैन संस्कारों से प्रभावित था। जब मोहनदास करमचंद गाँधी ने अपनी माता पुतलीबाई से विदेश जाने की अनुमति माँगी तब उनकी माँ ने अनुमति प्रदान नहीं की, क्योंकि माँ को शंका थी, कि यह विदेश जाकर माँस आदि का भक्षण करने न लग जाये। अपने 19 वें जन्मदिवस से ठीक एक महीने पहले 4 सितंबर 1888 को स्थानकवासी जैन मुनि बेचरदास जी स्वामी के समक्ष गाँधी के द्वारा तीन प्रतिज्ञा ( माँस, मदिरा व परस्त्री सेवन का त्याग ) लेने पर माँ ने विदेश जाने की अनुमति दी। इस तथ्य को गाँधी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग पृ. ३२ पर लिखा है।

Dr Pushpendra

महात्मा गांधी जन्म से जैन नहीं थे, लेकिन जैन परंपरा से प्रभावित थे। अपने आदर्शों और दर्शन के कारण वे आत्मा से जैन थे। एक जैन की तरह, वे शाकाहारी भी थे। गांधी पर जैन धर्म का एक और बड़ा प्रभाव सादगी का था। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने केवल सूती कपड़े पहने, वह भी सफेद रंग के। जैन धर्म में गांधी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने जैन सिद्धांतों को व्यापक जनसमूह के साथ लागू करके उन्हें व्यावहारिक बनाया। वे अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए जैन अहिंसा के सिद्धांत को लागू करने वाले पहले व्यक्ति थे।

गांधी पर जैन धर्म के प्रभाव की चर्चा करते समय, राजचंद्रभाई के प्रभाव पर चर्चा करना उचित है, जो जन्म से जैन थे। डॉ. प्राणजीवन मेहता ने गांधी का उनसे परिचय कराया था। राजचंद्रभाई ने अपना जीवन सर्वोच्च वैराग्य की भावना से जिया। गांधीजी ने कहा कि उन्होंने कई लोगों के जीवन से बहुत कुछ सीखा है।

श्रीमद राजचंद्र और वीरचंद गांधी
युवा गांधी के प्रमुख जैन धर्मगुरु श्रीमद राजचंद्र और वीरचंद गांधी के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे। गांधी पर श्रीमद राजचंद्र का प्रभाव इतना गहरा था कि उन्हें अक्सर ष्गांधी का गुरुष् कहा जाता है। व्यक्तिगत रूप से मिलने के अलावा, दोनों के बीच लंबा पत्राचार भी हुआ था, और बाद में गांधी ने राजचंद्र के मार्गदर्शन को नैतिक रूप से सही रास्ते पर बने रहने का श्रेय दिया। वीरचंद गांधी युवा मोहनदास के सहयोगी भी थे, और उन्होंने 1893 में शिकागो में प्रथम विश्व धर्म संसद में जैन परंपरा का प्रतिनिधित्व किया।

19 दिवसीय वार्ता –
वर्ष – 1944 सितंबर माह में जब जिन्ना से मिलने गांधी जी मुंबई आए थे, उस समय कांदावाड़ी जैन स्थानक रमें चातुर्मास हेतु विराजमान स्थानकवासी जैन साध्वी श्री उज्ज्वला कुँवर जी म. से स्वामी आनंद की प्रेरणा से गांधी जी ने उन्नीस दिन तक धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों पर गहन वार्ता संपन्न की थी जिसे इतिहास में गाँधी उज्ज्वल वार्ता के नाम से जाना जाता है।

मैंने महान पुण्य उपार्जन किया-
एक दिवस गांधी को अपने मौन दिवस में यह विचार आया कि स्थानकवासी जैन साध्वी महासती श्री उज्ज्वला कुँवर जी को अपने हाथ से आहार पानी देने का भी लाभ लिया जाय। पर दूसरे ही क्षण यह प्रश्न पैदा हुआ कि क्या वह मेरे हाथ से कुछ ले सकेंगे?
दूसरे दिन महात्माजीने अपनी यह बात महासतीजी से कह दी। महासतीजीने कहा हमें अपने नियमानुसार श्रावक के हाथ से आहार पानी लेने में कोई एतराज न होगा। स्वीकृति मिलने पर गांधी जी प्रसन्न हुए और बड़े ही अहोभाव – भक्तिभाव पूर्वक महासतीजी को आहार बहराया।

बेशक महात्मा गांधी का जन्म जैन कुल में नहीं हुआ पर उन्होंने अपना पूरा जीवन में जैन गुणों, जैन सिद्धांतों का पालन करते हुए जिया।

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