आयुर्वेद से कविता तक का जीवन-संगम है डॉ. दीपाली वार्ष्णेय अग्रवाल की पुस्तक

समीक्षक : रेनू शब्दमुखर, जयपुर / जयपुर । संपर्क संस्थान के बैनर तले हाल ही में डॉ. दीपाली वार्ष्णेय अग्रवाल की पुस्तक का विमोचन हुआ। आयुर्वेद की गहन साधिका होने के साथ-साथ वे संवेदनशील कवयित्री भी हैं। यही कारण है कि उनकी कविताओं में केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन के विविध रंग और अनुभवों की गहराई बसी हुई है।

किताब में लगभग 80 कविताएँ संकलित हैं। यह संग्रह केवल किसी एक भाव या विषय तक सीमित नहीं, बल्कि प्रकृति, समाज, स्त्री, रिश्ते, अध्यात्म और संवेदनाओं की बहुरंगी झलकियों को समेटे हुए है। पाठक जब इन्हें पढ़ता है तो कहीं शीतल औषधीय स्पर्श का अनुभव करता है, तो कहीं ज्वलंत प्रश्नों की आग से गुजरता है।

डॉ. दीपाली की कविताएँ जीवन को देखने का एक अलग दृष्टिकोण देती हैं। उनकी लेखनी में आयुर्वेद की शांति, अध्यात्म की गहराई और स्त्री-मन की जिजीविषा, तीनों का समन्वय है। यह कविताएँ केवल भावाभिव्यक्ति नहीं, बल्कि जीवन का उपचार भी हैं—मन को राहत देने वाली औषधि की तरह।

संपर्क संस्थान के अंतर्गत यह काव्य-संग्रह विमोचित होना साहित्य-जगत के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि चिकित्सा और साहित्य दोनों ही जीवन को सँवारने की साधनाएँ हैं।

डॉ. दीपाली वार्ष्णेय अग्रवाल का यह काव्य-प्रयास न केवल सराहनीय है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करने वाला है। निश्चय ही उनकी कविताएँ पाठकों को आत्ममंथन के साथ-साथ जीवन का रस भी प्रदान करेंगी।

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