आत्मचिंतन की दिवाली

रेखा यादव

दिवाली रोशनी का पर्व है, लेकिन सच्ची रोशनी तो तब आती है जब हमारे मन के अंधेरे मिटते हैं।

हम हर साल अपने घरों की सफाई करते हैं — दीवारें धोते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, दीप जलाते हैं।
पर क्या कभी हमने अपने भीतर झांका है?
क्या हमने अपने मन के कोनों में जमा अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध और लोभ की धूल को साफ किया है?
सच्ची दिवाली वही है, जब हम अपने अंतरमन को उजाला करें।
जब हम किसी से रुठे हों, तो उसे माफ कर दें।
जब हम किसी से नाराज़ हों, तो उसके लिए दुआ कर दें।
और जब किसी का दिल दुखाया हो, तो क्षमा मांगने का साहस जुटा लें।
इस दिवाली, आइए सिर्फ घर में ही नहीं,
बल्कि अपने हृदय में भी दीप जलाएं —
एक दीप प्रेम का,
एक दीप सद्भावना का,
एक दीप स्वयं के सुधार का।
क्योंकि जब मन का अंधकार मिटता है, तभी असली रोशनी फैलती है।
यही है “आत्मचिंतन की दिवाली” —
जहाँ हर इंसान अपने भीतर के दीप को प्रज्वलित करे,
और संसार को शांति, प्रेम और सत्य की रोशनी से भर दे।
लेखिका – रेखा यादव

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