सरकार की सुस्ती से जोखिम में लाखों की जान

प्राकृतिक आपदाएं बताकर नहीं आतीं, लेकिन भारत में अगर 2001 का गुजरात भूकंप या 2004 की सुनामी जैसी आपदा लौटी तो तबाही केआयाम बहुत बड़े होंगे। आपदा प्रबंधन में सरकार की भयानक सुस्ती ने देश की बहुत बड़ी आबादी की जिंदगी गहरे जोखिम में झोंक दी है। राष्ट्रीय आपदा नियंत्रण अधिकरण (एनडीएमए) के गठन को सात साल बीत चुके हैं और देश में भूकंप, बाढ़, चक्रवात, भूस्खलन के खतरे बताने वाले वैज्ञानिक नक्शे तक तैयार नहीं हैं। आपदा प्रबंधन कानून को बने छह साल हो गए हैं, लेकिन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना नहीं बनी है। आपदा की चेतावनी, प्रबंधन और संचार से जुड़ी दर्जनों बड़ी परियोजनाएं पिछले पांच साल से जहां की तहां खड़ी हैं या बीच में बंद हो गई हैं।

आपदाओं का असर कम करने के लिए ज्यादातर कार्यक्रम भी शुरू नहीं हो सके हैं। उल्लेखनीय है कि एनडीएमए के मुखिया खुद प्रधानमंत्री हैं।

प्राकृतिक विपत्ति से निबटने की तैयारियों की पोल दरअसल नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) के एक ताजा ऑडिट में खुली है जो कि अंतरराष्ट्रीय दायित्व के जरिये हुआ है। विश्व की ऑडिट संस्थाओं का शीर्ष संगठन इंटोसाई आपदा से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय वित्तीय मदद के ऑडिट के लिए दिशा-निर्देश तय कर रहा है। इसलिए कई देशों में आपदा प्रबंधन के इंतजामों का ऑडिट किया गया। भारत में इस ऑडिट की रिपोर्ट बेहद डरावनी है, जो बजट सत्र के दौरान संसद के सामने आएगी। एनडीएमए शीर्ष संस्था है जो देश में आपदा के खतरों के वैज्ञानिक आकलन, नुकसान रोकने व आपदाओं के दौरान राहत और बचाव के लिए अधिकृत है। 2004 की सुनामी के बाद 2005 में संसद से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून पारित हुआ था। इस कानून के तहत संचालन करने वाला एनडीएमए, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना बनाने का पहला काम भी पूरा नहीं कर सका। कई आपदाओं के बावजूद 2008 से आज तक राष्ट्रीय आपदा कार्यसमिति की बैठक तक नहीं हुई। आपदाओं की संभावनाओं के आकलन को लेकर देश पूरी तरह अंधेरे में है। भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, तूफान और सुनामी के खतरे कहां और कितने हैं, इनका कोई वैज्ञानिक नक्शा उपलब्ध नहीं है। शहरों में मकान और फ्लैट खरीदने वाले लोगों को अब तक यह पता नहीं है कि शहर के कौन से इलाके भूकंप के प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं। शहरों को भूकंप के खतरे के लिहाज से अलग-अलग जोन में बांटने का काम दूसरा सबसे जरूरी प्रोजेक्ट था, जो बीच में ही छूट गया है। इसके लिए राज्यों और केंद्र के बीच सही तालमेल नहीं हो सका। एनडीएमए को भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ के असर को कम करने के लिए भी व्यापक योजनाएं बनानी थीं। ये सभी योजनाएं 2007 में मंजूर हुई थीं, लेकिन अब पांच साल बाद इन्हें नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। ऑडिट रिपोर्ट कहती है कि एनडीएमए की कोई बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना आज तक पूरी नहीं हो सकी।

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