अपने समूह की विदेश स्थित कंपनी के साथ मिलकर 15000 करोड़ रुपयों की हेरफेर करनेवाली पेट्रोलियम क्षेत्र की कंपनी शेल इंडिया मार्केट प्रा.लि. पर अब भारत की कई नियामक एवं जांच एजेंसियां अपना शिकंजा कसने वाली हैं।
भारत सरकार के आयकर विभाग का आरोप है कि शेल इंडिया ने अपने शेयरों की कीमत बहुत कम दिखाकर 87 करोड़ शेयर अपने ही समूह की विदेश स्थित कंपनी शेल गैस बीवी को बेचकर 15000 करोड़ रुपयों की हेरफेर की है। इस हेराफेरी के कारण आयकर विभाग तो शेल इंडिया पर कार्रवाई की तैयारी कर ही रहा है, अब कई अन्य जांच एजेंसियां भी शेल इंडिया पर शिकंजा कस सकती हैं।
भारत सरकार के नियमानुसार किसी जांच या नियामक संस्था द्वारा किसी कंपनी की जांच के दौरान कोई अनियमितता पाए जाने पर उसे उस मामले से संबंधित अन्य जांच एजेंसियों को भी सूचित करना अनिवार्य होता है। चूंकि इस मामले में प्रथम दृष्टया रिजर्व बैंक, प्रवर्तन निदेशालय एवं कंपनी रजिस्ट्रार आदि के नियमों का उल्लंघन नजर आ रहा है।
इसलिए माना जा रहा है कि आयकर विभाग इस मामले की लिखित सूचना सेंट्रल इकोनॉमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो (सीईआईबी) को देंगे, जो आरबीआई, ईडी, आरओसी एवं एफआईपीबी जैसी नियामक व जांच संस्थाओं के जरिए इस मामले में हुई अनियमितताओं की विस्तृत जांच करा सकता है।
आयकर विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार यदि शेल इंडिया मार्केट प्रा.लि.अपने 870 करोड़ शेयर कम दिखाई गई कीमत 6.93 रुपये के बजाय मूल्य अंतरण निदेशालय द्वारा आंकी गई कीमत 187 रुपये पर बेचती, तो विदेश स्थित खरीदार कंपनी इसके एवज में शेल इंडिया को 15000 करोड़ रुपए अमेरिकी डॉलर में अदा करती।
इस प्रकार भारत में एक अनुमान के मुताबिक कम से कम 300 करोड़ अमेरिकी डॉलर की विदेशी मुद्रा आती। चूंकि दोनों कंपनियों की हेराफेरी में इतनी बड़ी विदेशी मुद्रा भारत में नहीं आ सकी, इसलिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इन कंपनियों पर अपने नियमानुसार कार्रवाई कर सकता है।
शेल इंडिया ने भारतीय रिजर्व बैंक को अपने शेयरों के गलत मूल्यांकन दस्तावेज पेश किए हैं। इस आधार पर रिजर्व बैंक रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) को यह सौदा रद्द करने की सिफारिश कर सकता है। इस सिफारिश के आधार पर आरओसी शेल गैस बीवी को बेचे गए 87 करोड़ शेयर तो रद्द कर ही सकता है, वह इस हेराफेरी में शामिल भारतीय कंपनी को भी बंद करने के निर्देश दे सकता है।
शेल इंडिया पर तीसरा शिकंजा उन उच्च न्यायालयों का कस सकता है, जिनसे कंपनी ने अपनी पांच पूर्व कंपनियों के विलय की इजाजत हासिल की थी। चूंकि कंपनी ने मुंबई, दिल्ली, चेन्नई एवं कर्नाटक उच्च न्यायालयों में अपने शेयरों के मूल्य कम करके दर्शाए गए दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं। इस आधार पर यदि इन उच्च न्यायालयों ने संज्ञान लिया तो कंपनी के अधिकारियों पर हेराफेरी के उद्देश्य से गलत जानकारी देने के मामले में आपराधिक मुकदमा भी चल सकता है। इसके अलावा कंपनी के शेयरों की सही जांच न करने के कारण फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) के अधिकारियों पर शिकंजा कसने की उम्मीद जताई जा रही है।