देश के आर्थिक विकास व रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिहाज से महत्वपूर्ण समझी जाने वाली केंद्रीय परियोजनाओं की रफ्तार तेज करने की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कोशिशें भी कोई रंग नहीं दिखा पा रही हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से बार-बार संबंद्यित मंत्रालयों को चेतावनी देने के बावजूद इनमें कोई खास प्रगति नहीं हो रही है।
ताजा आंकड़े बताते हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद 48 फीसद केंद्रीय ्रपरियोजनाओं काफी देरी से चल रही हैं। इनमें से कुछ परियोजनाओं तो निर्धारित समय के 12 वर्ष बाद भी पूरी नहीं हो पाई हैं। अर्थव्यवस्था में सुस्ती के संकेत मिलते ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केंद्रीय परियोजनाओं की रफ्तार को लेकर जून, 2012 में एक बैठक बुलाई थी। बैठक में पेट्रोलियम, सड़क, बंदरगाह , बिजली सहित तमाम महत्वपूर्ण क्षेत्रों की परियोजनाओं की दिक्कतों की पहचान करने और उन्हें दूर करने का फैसला किया गया था। यह भी फैसला हुआ था कि हर तीन महीने पर इनकी समीक्षा की जाएगी। मगर आठ महीने बीतने बाद भी इन परियोजनाओं की सुस्ती टूटने का नाम नहीं ले रही।
कोयला क्षेत्र की 43 परियोजनाओं में से 22, पेट्रोलियम क्षेत्र की 70 में से 39, रेलवे की 154 में से 41 परियोजनाओं समय से पीछे चल रही हैं। सांख्यिकी व कार्यकम क्रियान्वयन मंत्रालय की एक रपट बताती है कि केंद्र सरकार की 563 परियोजनाओं में से 272 परियोजनाओं लेट हैं। कुछ में संभावित देरी एक महीने की है, जबकि कुछ में तो यह 11 वर्षो की है। देरी की वजह से 180 से ज्यादा परियोजनाओं की लागत 33 फीसद से भी ज्यादा बढ़ चुकी है। वहीं, 250 परियोजनाओं की लागत एक चौथाई से ज्यादा बढ़ चुकी है। इसका बोझ अर्थव्यवस्था को उठाना पड़ रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने इन परियोजनाओं को तेज करने का फैसला किया था ताकि अर्थव्यवस्था को गहरी सुस्ती में फंसने से बचाया जा सक ा । परियोजनाओं की सुस्ती तो टूटी नहीं, उलटे आर्थिक विकास दर के पिछले एक दशक के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने का खतरा जरूर बन गया है।
बहरहाल, 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा लागत वाली परियोजनाओं में कुछ सुधार की संभावना दिख रही है। पिछले हफ्ते ही प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली निवेश मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसाआइ ) की पहली बैठक में एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा लागत वाली लगभग तीन दर्जन परियोजनाओं पर विचार किया गया। इनमें से ज्यादातर परियोजनाओं पेट्रोलियम मंत्रालय की थी।
पेट्रोलियम मंत्रालय का कहना है कि रक्षा मंत्रालय की मंजूरी नहीं मिलने से ये परियोजनाओं लटकी हुई हैं। इस पर पीएम ने रक्षा मंत्री और पेट्रोलियम मंत्री को एक महीने के भीतर अपने विवाद सुलझाने का निर्देश दिया है। इसी तरह परियोजनाओं में देरी के लिए बदनाम रेल मंत्रालय को भी कहा गया है कि वह समस्याओं को दूर करने के लिए नई सोच विकसित करे। आंकड़े बताते हैं कि रेलवे की लगभग एक दर्जन परियोजनाओं 10 से लेकर 13 वर्ष बाद भी पूरी नहीं हो सकी हैं।