लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विपक्ष भी यह मानता है कि बेरोजगारों को भत्ता, छात्रों को लैपटॉप-टैबलेट, किसानों की कर्ज माफी, गरीब महिलाओं को हर साल मुफ्त में दो-दो साड़ियां और कन्या विद्या धन, यह वह घोषणाएं थीं जिन्होंने समाजवादी पार्टी को सत्ता में पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। यह वह घोषणाएं साबित हुई, जिन्होंने मतदान केंद्रों पर वोट डालने को लगी कतारों को लंबा कर दिया था। सत्ता में आने पर अपना वादा निभाने के लिए समाजवादी सरकार ने बजट में प्रावधान भी कर दिया। अब जब दूसरा बजट आ रहा है तो कहां पहुंची ये घोषणाएं बता रहे हैं राजीव दीक्षित :-
घटना पिछली जुलाई की है। सूबे में सत्ता के सर्वोच्च अधिष्ठान विधान भवन से बमुश्किल दो फर्लाग दूर एक कॉलेज के बगल में चाय की दुकान पर इंटर के कुछ छात्र नए शैक्षिक सत्र में अखिलेश सरकार की मुफ्त टैबलेट-लैपटॉप योजना को लेकर उत्साहित थे। समाजवादी पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र से सुर्खियों में आई यह योजना तब तक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के बजट भाषण का हिस्सा बन चुकी थी। टैबलेट पाने की हसरत से उत्साहित छात्र इसी गुणा-भाग में उलझे थे कि नई सरकार की यह नायाब सौगात कब उनके हाथ लगेगी कि तभी दुकानदार ने उनके हाथों में चाय के गिलास थमाते हुए कहा था ‘ई सरकारी योजनाएं हैं, मिल जाएं जो जानो।’ सरकारी योजनाओं को लेकर इस चाय दुकानदार की अनुभवजनित आशंका सच साबित हुई।
मुख्यमंत्री दूसरी बार बजट भाषण पढ़ने से महज एक सप्ताह दूर हैं, प्रदेश के लाखों छात्र-छात्रओं को आज भी मुफ्त में टैबलेट-लैपटॉप पाने का इंतजार है। वैसे तो अखिलेश सरकार के शपथग्रहण के तुंरत बाद हुई कैबिनेट बैठक में टैबलेट-लैपटॉप वितरण योजना पर मुहर लगा दी गई थी, लेकिन लैपटॉप आपूर्ति के लिए जब पिछले साल 29 अगस्त को निविदाएं आमंत्रित की गई तो किसी कंपनी ने टेंडर ही नहीं डाला। फिर शर्तो में संशोधन करते हुए 15 लाख लैपटॉप की आपूर्ति के लिए दूसरी बार निविदाएं आमंत्रित की गई जिनमें चार कंपनियों ने टेंडर डाले। 10 दिसंबर को फाइनेन्शियल बिड के मूल्यांकन में हेलवेट पैकर्ड (एचपी) के रेट सबसे कम पाए गए। कैबिनेट ने 24 जनवरी को एचपी से लैपटॉप खरीदने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी, लेकिन लैपटॉप की आपूर्ति के लिए कंपनी और यूपी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन के बीच समझौता होना बाकी है।
वहीं, हाईस्कूल उत्तीर्ण 26.62 लाख विद्यार्थियों को दिए जाने वाले टैबलेट की आपूर्ति का मामला और भी लेटलतीफी का शिकार है। टैबलेट आपूर्ति के लिए कंपनियों से प्राप्त निविदाएं बीती सात जनवरी को खोली जा सकी हैं जिनका अभी तकनीकी परीक्षण जारी है।
छात्रों की तरह किसानों को भी कर्ज माफी के वादे को हकीकत में बदलने का इंतजार करते करीब एक साल का वक्त गुजर गया। चुनावी घोषणापत्र के अनुरूप पिछले बजट भाषण में मुख्यमंत्री ने प्रदेश के ऐसे किसानों को, जिन्होंने अपनी कृषि भूमि को बंधक बनाकर प्रदेश के सहकारी बैंकों से खेती से जुड़े कार्यो के लिए पचास हजार रुपये तक ऋण लिया है और कर्ज अदा न कर पाने के कारण भूमि की नीलामी की स्थिति पैदा हो गई है, उन्हें राहत देने के लिए ऋण राहत योजना लागू करने की बात कही थी। बजट में इसके लिए 500 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी लेकिन इस बारे में शासनादेश जारी करने में छह महीने से भी ज्यादा समय लग गया। दिसंबर में शासनादेश के जरिये ऋण माफी की शर्ते तय कर दी गई। इसके बाद अब उप्र सहकारी ग्राम विकास बैंक ब्लॉक, तहसील और जिला स्तर पर पात्र लाभार्थियों की सूची तैयार कराने की कवायद में जुटा है जिसका सत्यापन संबंधित जिलाधिकारी द्वारा गठित समिति करेगी। यानी कि कर्ज माफी के लिए किसानों को अभी और इंतजार करना पड़ेगा।
पिछले बजट में सरकार ने प्रदेश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले सभी परिवारों की महिलाओं को दो साड़ियां और वृद्धजन को एक कंबल देने की घोषणा कर वाहवाही लूटी थी। बजट में इसके लिए 200 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी। गरीब तबके को भले ही इस सरकारी इमदाद का शिद्दत से इंतजार हो लेकिन इस मामले में सरकारी कवायद अब तक सिर्फ टेक्निकल कमेटी के गठन तक सीमित रही। जिसने सिफारिश की है कि योजना के तहत साड़ियां और कंबल यूपीका और स्थानीय बुनकरों से ही खरीदे जाएं। योजना को लागू करने में पंचायती राज विभाग को असमंजस यह भी है कि साड़ी और कंबल वितरण के लिए बजट में 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है लेकिन महकमे का आकलन है कि इस पर 500 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होंगे। यह भी उधेड़बुन चल रही है कि तमाम गरीब महिलाएं ऐसी हैं जो साड़ी नहीं पहनती, उनके लिए क्या बंदोबस्त किया जाए।
बेरोजगारी भत्ता बंटने लगा है। हालांकि सपा के घोषणापत्र में किये गए वादे के क्रम में बजट में शामिल की गई इस योजना के जरिये सरकार वाहवाही तो लूटना चाहती थी, लेकिन उसे अपने बटुए की भी फिक्त्र थी। इसी का नतीजा था कि जब यह योजना शुरू की गई तो पात्र लाभार्थियों के लिए सरकार ने इतनी कड़ी शर्ते तय कर दीं कि भत्ता लेने के लिए प्राप्त हुए आवेदनों की संख्या बेहद कम थी। लिहाजा सरकार को कई चरणों में न सिर्फ सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण की समयसीमा को बढ़ाना पड़ा बल्कि शर्तो को भी शिथिल करना पड़ा। भत्ते के लिए बीती 31 दिसंबर तक निर्धारित शर्तो को पूरा करने वाले सिर्फ 11 लाख बेरोजगारों के आवेदन प्राप्त हुए, वित्तीय वर्ष में आवंटित 1100 करोड़ रुपये में से महज 79.2 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए थे।
स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए कन्या विद्या धन योजना और अल्पसंख्यक छात्रओं के लिए ‘हमारी बेटी, उसका कल’ योजना की शुरुआत हो चुकी है। योजना की औपचारिक शुरुआत के लिए सभी मंडल मुख्यालयों पर मुख्यमंत्री और उनकी सरकार के मंत्री चेक का वितरण कर रहे हैं। योजना के लिए चयन प्रक्रिया जारी है। चयनित अन्य लाभार्थियों के चेक धीरे-धीरे बैंक पहुंचने लगे हैं।