नई दिल्ली। बत्तीस साल पहले बर्खास्तगी के खिलाफ लंबी कानूनी जंग के बीच दुनिया छोड़ गए पार्थ सारथी सेन रॉय को आखिरकार सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ मिला। शीर्ष अदालत ने प्रतिवादी कंपनी बामर लॉरी इनवेस्टमेंट्स लिमिटेड की दलील खारिज करते हुए उसे सार्वजनिक उपक्रम माना। साथ ही बर्खास्तगी से लेकर सेवानिवृत्ति तक के वेतन का 60 फीसद रॉय के वारिस को देने का फैसला सुनाया।
बामर लॉरी ने उसे सरकारी उपक्रम मानने केकलकत्ता हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। जस्टिस बीएस चौहान और वी गोपाला गौड़ा की पीठ ने कंपनी के गठन, उद्देश्य, कार्य, प्रबंधन और वित्तीय सहायता के तथ्यों पर गौर करते हुए माना कि वह एक सार्वजनिक उपक्रम है और हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में है। रॉय मई, 1975 में मैनेजमेंट ट्रेनी के तौर पर बामर लॉरी में भर्ती हुए थे। उन्हें 27 फरवरी, 1981 को बर्खास्त कर दिया गया।
उन्होंने बर्खास्तगी को हाई कोर्ट में चुनौती दी। कंपनी ने हाई कोर्ट में दलील दी थी कि वह सरकारी कंपनी नहीं है और हाई कोर्ट को इस मामले की सुनवाई का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने माना कि हाई कोर्ट ने मेरिट के आधार पर फैसला नहीं किया, लेकिन कानूनी लड़ाई के दौरान याची की मौत और मामला दशकों तक लंबित रहने का उल्लेख करते हुए राहत देना उचित करार दिया।