10 साल पहले लिया 17000 कर्ज, आज भी कर रहे बंधुआ मजूदरी

two-brothers-works-as-captive-labour-for-10-years 2013-2-28चंदराम राजगुरु, देहरादून। इसे आधुनिक भारत की विद्रूप तस्वीर ही कहा जाएगा कि तकरीबन एक सदी बाद भी प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद की कहानी ‘सवा सेर गेंहू’ का मुख्य पात्र गरीब किसान शंकर आज भी जिंदा है। सिर्फ बदले नाम के साथ। मामला उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 150 किलोमीटर दूर जौनसार-बावर जनजाति क्षेत्र का है। चुनोटी गांव के दो भाइयों नादरु और गुसू ने 10 साल पहले साहूकार से 17 हजार रुपये कर्ज लिया और कर्ज न चुकाने पर उन्हें करनी पड़ रही है मजदूरी।

अब दोनों भाइयों ने प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए एसडीएम ने तहसीलदार चकराता को जांच के निर्देश दिए हैं। मामला देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर के चुनोटी गांव का है। गांव के दलित परिवार से संबंध रखने वाले नादरु ने अपने भाई गुसू की बीमारी पर वर्ष 2003 में एक साहूकार से 17 हजार रुपये बतौर कर्ज लिए। उसने साहूकार को आश्वस्त किया कि वे जल्द ही देनदारी चुका देंगे। लेकिन बेहद गरीबी में जीवनयापन करने के कारण वे उधार न लौटा सके। इस पर कुछ समय के बाद साहूकार ने कर्ज न लौटा पाने की एवज में दोनों भाइयों से अपने यहां मजदूरी करने को कहा। दोनों भाइयों का आरोप है कि दस साल से वे साहूकार के घर पर मजदूरी कर रहे हैं।

दोनों भाइयों का आरोप है कि कुछ दिन पहले जब उन्होंने साहूकार से कर्ज में ली गई रकम के बदले दस साल तक उनसे कराई गई मजदूरी का हिसाब करने को कहा तो साहूकार ने उनकी बात को अनसुना कर दिया। साहूकार ने उन्हें चेतावनी दी कि कर्ज की रकम की अदा होने तक मजदूरी करनी पड़ेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि मजदूरी न करने पर साहूकार उन्हें प्रताड़ित करता है। नादरु और गुसू ने चकराता के एसडीएम मोहन सिंह बर्निया को सौंपे लिखित शिकायत पत्र में न्याय की गुहार लगाई है।

 

 

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