नई दिल्ली । बेफिक्र रहिए यह बजट आपका कोई नुकसान नहीं करेगा। और फायदा? यह बजट उसके लिए बना ही नहीं था। चिदंबरम को कांग्रेस और अर्थव्यवस्था की साख को ताजा नुकसान रोकना था। वह इतना करने से आगे कतई नहीं गए। पलानिअप्पन चिदंबरम ने बिग बैंग होने की अपनी स्थापित छवि से समझौता कबूल किया, मगर जोखिम नहीं लिया। शुक्र है इस बजट में कुछ भी रोल बैक नहीं होगा। न आह और न वाह! यह एक ठंडा व ठोस बजट है, लेकिन इस पर भरोसा किया जा सकता है।
यह बजट यूथ के मिजाज, ग्रोथ के हिसाब और टैक्स की गणित जैसा है। जिन्हें इन तीनों को समझने में दिक्कत होती हो, उसे अपनी सूची में में संप्रग के दसवें बजट को भी शामिल कर लेना चाहिए। आंकड़ों व परोक्ष फैसलों की पेचीदा कारीगरी से बुना यह बजट वक्त की कसौटी पर कसने के बाद ही समझ में आएगा। नामुराद वक्त ने पिछले वित्त मंत्रियों को बहुत धोखा दिया है। इसलिए चिदंबरम ने एक हर्फ भी ऐसा नहीं बोला, जिससे कोई उछल पडे़ या मायूस हो जाए। बजट की संख्याओं से ज्यादा उसके संदेश कीमती होते हैं। इसलिए चिदंबरम ने सिर्फ उन्हें संदेश भेजे, जिनसे फिलहाल मतलब है। बजट का राजनीतिक संदेश युवाओं व महिलाओं के लिए है, जो अब राजनीति के केंद्र में हैं। जबकि ग्रोथ पर फोकस रहने का संदेश उन रेटिंग एजेंसियों व निवेशकों के लिए है, जो इस बजट को देखने को बाद भारत की साख पर फैसला करेंगे। रही बात गरीबों के लिए तो उनके लिए डायरेक्ट कैश ट्रांसफर है ही।
ड्रीम बजट के कारीगर चिदंबरम ने इस बजट से ठंडे, तकनीकी और स्थिर बजटों की एक नई श्रेणी ईजाद की है और बडे़ फैसलों को बजट से बाहर रखने की परंपरा जारी रखने का संकेत दिया है। इस बजट से अगर महंगाई कम नहीं होगी तो बढ़ेगी भी नहीं। अगर ग्रोथ कूदेगी नहीं तो शायद इससे ज्यादा ढहेगी नहीं। यह विकास दर ताजा आंकडे़ के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में 4.5 फीसद पर आ गई। घाटा अगर कम नहीं हुआ तो उसमें बढ़त जरूर रुक सकती है। आयकर में चिल्लर जैसी रियायत, बयालीस हजार अमीरों पर दिखावटी टैक्स जैसी घोषणायें महज सजावटी हैं और जुटाया गया 18,000 करोड का राजस्व भी मामूली है। महंगाई दर पर आधारित बांड, जमीनों की खरीद फरोख्त पर आयकर और शेयर बाजार में नए निवेशकों की आमद जैसे प्रयोगों की सफलता वक्त पर निर्भर होगी।
आर्थिक विकास बजटों के दर्शन के केंद्र में लौट आया है। विदेशी निवेश को फिर ग्रोथ की टॉनिक मान लिया गया है और निजी निवेश के लिए प्रोत्साहित करने में बजट गंभीर नजर आया है। खर्च में सख्ती दिखाकर वित्त मंत्री ने यह भरोसा भी बंधा दिया है कि वह घाटा काबू में कर सकते हैं। विदेशी निवेश संस्थाओं के लिए बाजार खोलकर चालू खाते के घाटे को सीमित करने के कदमों से यह संदेश जरूर जाएगा कि वित्त मंत्री हकीकत से गाफिल नहीं है। फिलहाल वह इतना ही कर भी सकते थे।
नौजवान, भारतीय बजटों के लोकलुभावन दर्शन के केंद्र में आ गए हैं। 90 लाख युवकों को कौशल विकास के एजेंडे पर लेना एक नया राजनीतिक प्रयोग है, जो गांवों में रोजगार बांटने वाली स्कीमों की परंपरा से दूर जाता है। मनरेगा जैसी स्कीमों के आवंटन में सीमित बढ़ोतरी इसे प्रमाणित करती है।
नुकसान रोकने की कोशिश पर केंद्रित यह बजट सरकार विवशता का हिसाब किताब भर है। भाषण के अंत में विवेकानंद के सहारे चिदंरबम शायद यही कहना चाह रहे थे कि अर्थव्यवस्था को अपनी ताकत पर आगे बढ़ना होगा, सरकार कुछ खास कर पाने की स्थिति में नहीं है।
महत्वपूर्ण प्वाइंट्स:-
-आम आदमी को राहत नहीं, अमीरों पर बोझ
– आय कर के स्लैब में कोई बदलाव नहीं
– दो से पांच लाख रुपये के आय वर्ग में कर पर दो हजार रुपये की छूट
-एक करोड़ रुपये से ज्यादा आय वालों पर 10 फीसद का अधिभार
4. 25 लाख रुपये तक होम लोन लेने वालों को ब्याज पर एक लाख रुपये की अतिरिक्त छूट
5. तीन फीसद का शिक्षा अधिभार जारी रहेगा
6. गंभीर बीमारी या शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों को देय जीवन बीमा प्रीमियम पर अतिरिक्त छूट
7. सीजीजीएस जैसी अन्य स्वास्थ्य स्कीमों पर देय प्रीमियम पर भी आय कर छूट
8. नेशनल चिल्ड्रेन फंड में दिए गए दान को आय कर से पूरी छूट
9. 10 करोड़ रुपये से ज्यादा कर योग्य आय वाली स्वदेशी कंपनियों पर 10 फीसद अधिभार
10. अतिरिक्त अधिभार सिर्फ अगले वित्त वर्ष के लिए
टिप्पणी:-
महंगाई से त्रस्त मध्यम वर्ग कोई राहत नहीं मिली। दो से पांच लाख रुपये की सालाना आय वाले वर्ग को मात्र दो हजार रुपये की छूट झुनझुना है। होम लोन ग्राहकों को अवश्य कुछ राहत मिलेगी। अमेरिका, फ्रांस, इटली जैसे देशों की तर्ज पर सुपर रिच कर की जद में 42,800 लोग आएंगे। दस करोड़ रुपये से ज्यादा आय वाली कंपनियों पर अधिभार 5 से बढ़ा कर 10 फीसद कर दिया गया है। ज्यादा कारपोरेट कर अदा करने वाली विदेशी कंपनियों पर अधिभार की दर दो फीसद से बढ़ा कर 5 फीसद कर दी गई है। राहत यही है कि यह सिर्फ एक वर्ष के लिए है।
बजट ने बंधाई बिहार को उम्मीद
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे बिहार जैसे राज्यों के लिए केंद्र सरकार ने एक नया दांव फेंक दिया है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने किसी भी राज्य को न तो यह दर्जा देने का एलान किया और न ही ऐसा कोई वादा किया। मगर इतना कहकर ही उन्होंने यह उम्मीद बढ़ा दी है कि पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष [बीआरजीएफ] के तहत पिछड़ेपन के पैमाने की समीक्षा की जाएगी।
बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष [बीआरजीएफ] के तहत इस साल 11,500 करोड़ रुपये आवंटित करने का एलान किया। साथ ही कहा कि अभी भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या के घनत्व और अंतरराष्ट्रीय सीमा को ही पिछड़ेपन का पैमाना माना जाता है। लेकिन, इससे ज्यादा प्रभावी पैमाने लागू किए जाने की जरूरत है। इसके लिए यह देखना चाहिए कि वह राज्य प्रति व्यक्ति आय, साक्षरता और विकास के दूसरे पैमाने पर राष्ट्रीय दर से कितना पीछे है। उन्होंने नए पैमाने विकसित करने और भविष्य में उन्हीं के आधार पर आवंटन करने का वादा भी किया है।
अब तक विशेष राज्य की अपनी मांग पर केंद्र सरकार की चुप्पी से परेशान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह एलान भी कम राहत देने वाला नहीं। इसे वे अपनी मांग की नहीं तो तर्क की जीत जरूर बता सकते हैं क्योंकि विशेष राज्य के दर्जे का फार्मूला भी इसी आधार पर तय होता है। चिदंबरम ने ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ [पीएमजीएसवाई] में भी कई नए राज्यों को शामिल कर उनकी मांग पूरी कर दी है। योजना का दूसरा चरण शुरू करने का एलान करते हुए उन्होंने इसमें हरियाणा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजग शासित कर्नाटक और पंजाब को भी शामिल कर लिया। इसी तरह बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और असम जैसे पूर्वी राज्यों में हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए एक हजार करोड़ रुपये देने का एलान किया है।
चिदंबरम ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में अगले छह महीने के दौरान सड़कों का जाल बिछाने में भी तेजी दिखाने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि इस दौरान इन राज्यों में तीन हजार किलोमीटर की सड़क परियोजनाओं के लिए ठेके दे दिए जाएंगे। इसी तरह उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र को उत्तरी ग्रिड से जोड़ने के लिए श्रीनगर से लेह तक 1840 करोड़ रुपये के खर्च पर ट्रांसमीशन लाइन बनाने का वादा भी किया है।