आम बजट: काले धन पर दिखा करनी व कथनी में अंतर

chitramban1नई दिल्ली । काले धन पर रोक लगाने की सरकार की मंशा पर गंभीर सवाल उठ सकते हैं। यह लाजिमी भी है क्योंकि काले धन को लेकर केंद्र सरकार ने तीन समितियां गठित की थीं। इनकी रिपोर्ट भी आ चुकी है और इस विषय पर संसद में श्वेत पत्र पेश किया गया था। ऐसे में सभी को उम्मीद थी कि आम बजट में काले धन को लेकर कुछ ठोस कार्रवाई होगी। मगर वित्त मंत्री चिदंबरम ऐसी कोई हिम्मत नहीं दिखा सके।

विदेशों में भारतीयों के जमा काले धन को स्वदेश लाने की कौन कहे, घरेलू स्तर पर जमा हो रहे काले धन पर भी वित्त मंत्री कुछ खास करते नहीं दिखे। चिदंबरम ने स्वीकार किया है कि देश में अचल संपत्तियों की एक तिहाई खरीद-फरोख्त में स्थायी खाता नंबर (पैन) का भी उल्लेख नहीं होता और अधिकांश लेन-देन में पूरी राशि नहीं दिखाई जाती। इसे रोकने के लिए उन्होंने 50 लाख रुपये से ज्यादा की अचल परिसंपत्तियों की खरीद-बिक्री पर एक फीसद का टीडीएस लगाने का प्रावधान किया है। कृषि योग्य भूमि को इससे अलग रखा गया है। सनद रहे कि सरकार की तरफ से गठित एक समिति ने रियल एस्टेट को काले धन सृजन का सबसे बड़ा स्रोत माना है।

कंपनियों की तरफ से शेयरों के हस्तांतरण के जरिये काला धन जुटाने के मुद्दे की तरफ वित्त मंत्री का कुछ ध्यान गया है। उन्होंने गैर सूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से उनके शेयरों की पुनर्खरीद से होने वाले मुनाफे पर 20 फीसद की दर से कर लगाने का प्रस्ताव किया है। विदेशी कंपनियों की भारतीय शाखाओं की तरफ से दी जाने वाली रॉयल्टी पर कर की दर को 10 से बढ़ाकर 25 फीसद किया गया है। जानकार बताते हैं कि यह रास्ता भी देश से काले धन को बाहर भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।

काले धन पर रोक लगाने के प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर कोड (डीटीसी) को लागू करने के लिए एक विधेयक मौजूदा बजट सत्र के दौरान ही पेश किया जाएगा। डीटीसी में बदलाव पर वित्त मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति के सुझावों पर मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों का एक दल विचार कर रहा है। जाहिर है कि डीटीसी अब अगले वित्त वर्ष से लागू नहीं होगा।

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