आठ मार्च को महिला दिवस के मौके पर उन औरतों के बारे में बात करते हैं जिन्होंने घर से बाहर निकल कर समाज और देश तक बदल डाले। इनके जज्बे से न केवल देश बदले बल्कि औरतों के संबंध में दुनिया की सोच भी बदल गई।
पिछले साल चर्चित रहीं ये औरतें अपनी दिमागी सूझबूझ के साथ साथ वीरता का पर्याय बनी। कुछ ने साहस की अदम्य मिसाल पेश करके औरतों को जीने की नई राह भी दिखाई।
पहला उदाहरण हैं जर्मनी की महिला चांसलर एंजेला मार्केल और ब्राजील की राष्ट्रपति डेल्मा रोसेफ। दोनों ही जुझारू और बेहतरीन सामंजस्य का उदाहरण पेश करते हुए अपने देशों का सफल और विकासपरक संचालन कर रही हैं। इन्होंने साबित कर दिया है कि औरतें घर और दफ्तर ही नहीं देश भी चला सकती हैं।
इसी कड़ी में अमेरिका की पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का जिक्र किया जा सकता है जिन्होंने ओबामा प्रशासन की छवि को विदेशों में मजबूत किया। माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स की पत्नी मेलिंडा गेट्स समाजसेवा के क्षेत्र में अग्रणी रही हैं जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स की पहली महिला कार्यकारी संपादक बनी जिल अब्रामसन एक जूझारू और नई सोच की पत्रकार साबित हुई हैं।
अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की पहली महिला प्रबंध निदेशक बनी क्रिस्टीन लगार्ड ने साबित कर दिया है कि पैसा संभालना केवल मर्दो का काम नही। लगार्ड ने पद संभालते ही जिस तरीके से मुद्रा कोष को संभाला और मजबूत किया, ये महिलाओं और आर्थिक बिरादरी के लिए गर्व का विषय है।
पाकिस्तान में चरमपंथियों के हाथों घायल हुई शिक्षा समर्थक मलाला युसुफजई इस बात का उदाहरण है हौंसला अगर लोहे की तरह मजबूत हो तो गोली किसी काम की नहीं। मलाला तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों को शिक्षित करने का अभियान चला रही थी जिसके फलस्वरूप चरमपंथियों ने स्कूल से लौटते समय उसे गोली मार दी।
काफी प्रयासों के बाव मलाला को बचाया जा सका। अंतरराष्ट्रीय बच्चों की वकालत करने वाले समूह किड्स राइट्स फाउंडेशन ने युसुफजई को अंतर्राष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया गया।
2011 का नोबेल शांति पुरस्कार संयुक्त तौर पर तीन महिलाओं को मिला। लाइबेरिया की एलेन जॉनसन सरलीफ, लेमाह ग्बोवी और यमन की तवाक्कोल करमन को अपने क्षेत्रों में महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण की दिशा में काम करते हुए अहिंसक संघर्ष के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सबसे आखिर में दिल्ली गैंग रेप की दामिनी का उदाहरण देना जरूरी है। औरतों को हिम्मत और जुझारूपन का संदेश दे गई दामिनी भले ही आज दुनिया में नहीं है लेकिन औरतों को स्वाभिमान की रक्षा करना सिखा गई है। दामिनी के केस ने विश्व स्तर पर औरतों की छवि को लेकर पुरुषों की सोच में बदलाव किया है।
एक तरफ जहां भारत सरकार ने अपने बजट में दामिनी के नाम पर निर्भया फंड बनाने का ऐलान किया वहीं दूसरी तरफ अमेरिका ने दामिनी को ‘इंटरनेशनल वूमेन ऑफ करेज अवॉर्ड’ के लिए चुना है।