अजमेर/स्त्री और पुरूष एक हैं, उन्हें अलग करना या समझना प्रकृति का अपमान है। नारी को देवी बनाकर पूजने के बजाय केवल एक मनुष्य समझने की आज आवश्यकता है। ये विचार विश्व महिला दिवस के अवसर पर कला व साहित्य के प्रति समर्पित संस्था ‘नाट्यवृंद’ द्वारा शुक्रवार शाम वैशाली नगर स्थित टर्निंग पाइंट स्कूल में आयोजित ‘महिला केन्द्रित काव्य गोष्ठी‘ में मुखरित हुए।
मुख्य अतिथि मित्तल अस्पताल की निदेशिका एवं वरिष्ठ कवियित्री डॉ. शकुन्तला मित्तल‘किरण‘ ने शब्द तुम्हारे दे रहे यूं अबभी अधिकार, अर्थ क्यूं जा बसे सात समंदर पार और मानवता हृदय में नहीं मुखौटों में रहती है कविताएं सुनाई तथा अध्यक्षता कर रही माध ुरी भटनागर ने क्या ओढ़ती क्या उतार फैंकती, गृहस्थी की चादर में मुझे ही बुना गया था कविता सुनाई। चेतना उपाध्याय ने स्त्री और धरती एक समान है , कालिन्द नन्दिनी शर्मा ने अब मैं लड़के नहीं जनूंगी कविता तथा संचालन कर रही गीतकारा पूनम पाण्डे ने इन गीतों में मन की हर व्यथा सुना दूंगी गीत सुनाया।
हिन्दी कविता के लिए विख्यात गोपाल गर्ग ने खुश्बू आती मेरे तन से जब तू याद करे मुझको, कौन कहे यादों का चन्दन तुझमें है या मुझमें है , कवि-चित्रकार राम जैसवाल ने मैं तुझसे अलग होकर बात करूं तो अधूरा हूं व तुम कैसे भूल गई लक्ष्मण रेखा के अर्थ डॉ. नवल किशोर भाभड़ा ने जब भी ख्वाबों को हथेली पे तराशा तूने रेत मुट्ठी से झर गयी होगी, गीतकार डॉ. हरीश ने श्रंगार गीत सुर्ख अधरों पर पलाशों को निचोड़ा किसने, संयोजक उमेश चौरसिया ने नारी देह के भीतर अनछुआ रह गया मन, डॉ. अनन्त भटनागर ने मैं जिन्दा रहूंगी संघर्ष की आँच को देते हुए प्राण, संतोष गुप्ता ने मेरे मन से पूछे कोई अपने-परायों के माने, बख्शीश सिंह ने तू अपनी मोहब्बत वाली नजर मेरे नाम न करना, मैं उसका नायक होने का भ्रम पाल लूंगा, प्रो. सुरेन्द्र भटनागर ने मैं पौरूष का ढोंग करता हुआ पुरूष कविताएं सुनाकर काव्य गोष्ठी को ऊँचाइयांे तक पहुँचाया तथा रासबिहारी गौड़ ने पत्नि जीने नहंीं देती करवा चौथ मरने नहीं देती कविता सुनाकर गुदगुदाया। गोष्ठी में डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली, हेतल वर्मा, गोविन्द भारद्वाज, मोहनलाल तँवर आदि ने भी कविताएं सुनाई। गोष्ठी में बड़ी सख्या में प्रबुद्ध महिलाएं उपस्थित थीं।
– उमेश कुमार चौरसिया