जयपुर। सियालदह एक्सप्रेस में मानव तस्करी के लिए जयपुर से ले जाए जा रहे 200 बच्चों को भरतपुर स्टेशन पर मुक्त कराया गया है। भरतपुर जिला प्रशासन और पुलिस ने दो दिन में दो सौ बाल मजदूरों को मुक्त कराया है। शनिवार को 168 और रविवार को 30 बच्चों को मुक्त कराया गया है। दोनों ही दिन सियालदह एक्सप्रेस से ही बच्चों को मुक्त कराया गया है।
बच्चों को जनरल डिब्बों में सीटों के नीचे और टॉयलेट में छिपाकर रखा हुआ था। बच्चों पर नजर रखने वाले 43 लोगों को भी पुलिस ने दो दिन में पकड़ा है। देर रात तक प्राथमिक पूछताछ के बाद बच्चों को अपना घर भेज दिया गया। इनको तस्करी कर ले जाने के आरोपी लोगों को जीआरपी थाने में रखा गया है। मुख्यमंत्री ने जिला कलेक्टर को सभी बच्चों के लिए सीएम फंड से राशि खर्च करने के निर्देश दिए हैं। बच्चों को बिना टिकट के ही ले जाया जा रहा था, जबकि उनको ले जाने के आरोप में पकड़े गए लोगों के पास सियालदह, हावड़ा, गया, सासाराम, कानपुर, इलाहाबाद और आसन सोल बंगाल के टिकट मिले हैं।
जानकारी के मुताबिक सियालदह एक्सप्रेस से बरामद किए गए ये बच्चे बिहार और पश्चिम बंगाल के है। ये पिछले कई माह से जयपुर में चूड़ी की फैक्ट्रियों में काम कर रहे थे। इन्हें जयपुर से कोलकाता और बिहार भेजा जा रहा था।
पुलिस को सूचना मिली थी कि सियालदह एक्सप्रेस में जयपुर से बड़ी संख्या में बच्चों को तस्करी के लिए चढ़ाया जा रहा है। यह सूचना राजस्थान बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य गोविंद बेनीवाल ने भरतपुर चाइल्ड लाइन के कॉर्डिनेटर सुबोध गुप्ता को फोन पर दी थी। सुबोध ने एसपी को इसकी जानकारी दी। इसके बाद जीआरपी, आरपीएफ, मानव तस्करी यूनिट के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस जवान ट्रेन के आने से पहले ही स्टेशन पहुंच गए। टॉयलेट और सीटों के नीचे से बच्चे निकाले गए। पुलिस अधिकारियों के कहने पर ट्रेन को बीस मिनट से अधिक समय तक स्टेशन पर रुकवाए रखा। जिला कलेक्टर जी.पी. शुक्ला ने बताया कि बच्चों से इनके माता-पिता के बारे में जानकारी मांगी जा रही है। पश्चिम बंगाल और बिहार सरकार से भी संपर्क साधा जा रहा है।
राज्य सरकार के श्रम विभाग ने विधायक अभिषेक मटोरिया के सवाल के जवाब में दो दिन पहले ही कहा था कि प्रदेश में एक भी बाल श्रमिक नहीं है। वहीं बाल श्रमिक कल्याण के लिए राज्य बाल श्रमिक कोष में 140 करोड़ रुपये है, लेकिन एक पैसा भी इसमें से खर्च नहीं हुआ है। यह राशि बाल श्रमिकों को चिन्हित कर उनके विकास पर खर्च करनी थी।