नई दिल्ली। श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार पर संसद में प्रस्ताव लाने की सरकार की कवायद दिखावे और दुविधा में उलझी हुई है। पड़ोसी मुल्क के अंदरूनी मामले पर भारतीय संसद में प्रस्ताव को लेकर सर्वसम्मति का अभाव जहां उसे इससे बचने का गलियारा दे रहा है। वहीं तमिल भावनाओं पर हिमायत दिखाने की कोशिश में वह सुर ऊंचा करने का मौका भी नहीं छोड़ना चाह रही। श्रीलंका पर संभावित संसदीय प्रस्ताव के लिए लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने राजनीतिक दलों के नेताओं की बैठक बुलाई है। हालांकि इसमें प्रस्ताव के नकारे जाने की संभावना ही अधिक है। इस बीच, जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में गुरुवार को होने वाले मतदान से पहले सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर संशोधन पेश करने की तैयारी कर ली है।
श्रीलंका के खिलाफ भारत के कम तेवरों की शिकायत पर संप्रग सरकार से द्रमुक की विदाई के बाद गुरुवार को संसद में घरेलू सियासत साधने की कोशिशें होती रहीं। प्रधानमंत्री ने आला मंत्रियों और राजनयिकों के साथ संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव पर भी भारत की ओर से रखे जाने वाले संशोधनों पर चर्चा की। कूटनीतिक स्तर पर चल रही कवायद से मिल रहे संकेतों के मुताबिक भारतीय खेमा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रस्ताव में ‘निष्पक्ष जांच’ की मांग को लेकर संशोधन पेश कर सकता है। महत्वपूर्ण है कि संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के मंगलवार को कांग्रेस संसदीय दल के भाषण में इसकी गूंज सुनाई दी थी।
प्रस्ताव पर भारत की ओर से रखे जाने वाले संशोधनों को लेकर देर शाम तक चली माथा-पच्ची के बीच विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने प्रस्ताव में ‘नरसंहार’ शब्द के इस्तेमाल से परहेज को जायज ठहराते हुए कहा कि इससे पूर्वाग्रह झलकता है। जब हम नहीं चाहते कि कोई हमारे बारे में पूर्वाग्रह से निर्णय करे तो हमें भी ऐसा नहीं करना चाहिए। इस बीच तमिलों के हितों की हिमायत में संप्रग सरकार ने अपना चेहरा चमकाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। गुरुवार सुबह वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने नई दिल्ली में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस के दौरान तमिल में सरकार की वकालत की।
वामपंथी दलों, भाजपा समेत अनेक दलों की ओर से श्रीलंका के खिलाफ भारतीय संसद में प्रस्ताव पर मुखर विरोध के बावजूद सरकार ने इसके लिए कोशिशें दिखाने की पूरी कोशिश की। द्रमुक के साथ छोड़ने के बावजूद प्रस्ताव लाने की कोशिशों को जायज ठहराते हुए संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ ने कहा कि यह प्रयास तमिल लोगों की भावनाओं के मद्देनजर किया जा रहा है। हालांकि बयानों से परे सरकार को यह भी पता है कि सर्वसम्मति के बिना प्रस्ताव संभव नहीं है, लिहाजा उसके पास बचाव का गलियारा भी मौजूद है।