मुलायम के पैंतरों से संकट में सरकार

sonia-request-mulayam-leave-his-demandनई दिल्ली । करुणानिधि के संप्रग से बाहर जाते ही मुलायम के पैंतरों ने सरकार को एक और संकट में डाल दिया है। राष्ट्रपति को द्रमुक की समर्थन वापसी का पत्र मिलने के बाद मुलायम ने बेनी प्रसाद वर्मा की बदजुबानी का दो दिन पुराना मुद्दा सान चढ़ाकर कांग्रेस को घुटनों पर ला दिया। कभी सपा सुप्रीमो के लिए 10, जनपथ के दरवाजे बंद करने वालीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लोकसभा में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव से हाथ जोड़कर माफी मांगी। इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ लगभग जबरन बेनी प्रसाद वर्मा को मीडिया के सामने लाए और उन्होंने मुलायम पर टिप्पणी के लिए खेद जताया। इसके बावजूद श्रीलंका मुद्दे व बेनी-मुलायम विवाद पर हंगामे के चलते लोकसभा व राज्यसभा दोनों सदनों की कार्यवाही बुधवार को नहीं चल सकी।

इस दोहरे संकट से निपटने के लिए कांग्रेस के प्रबंधक भी दोहरी रणनीति पर चल रहे हैं। मुलायम को मनाने के लिए तो सरकार ने जो किया सो किया, लेकिन साथ में ही कांग्रेस यह संदेश देने से नहीं चूक रही कि संप्रग को बहुमत के लिए नंबर कम नहीं पड़ेंगे। आंकड़ों के खेल में माहिर कांग्रेस ने फिलहाल भाजपा से लगातार दूर होते जा रहे जदयू पर भी डोरे डालना तेज कर दिया है। जदयू अध्यक्ष शरद यादव से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने मुलाकात कर वास्तव में मुलायम को ही संदेश दिया है। द्रमुक के 18 सांसदों के हटने के बाद फिलहाल संप्रग की लोकसभा में संख्या 228 बची है। 271 के आंकड़े को पूरा करने के लिए माया (21) और मुलायम (22) दोनों का बाहर से समर्थन संप्रग के लिए जरूरी है।

इसी बात को समझते हुए सपा प्रमुख ने अब आंखें दिखाकर कांग्रेस अध्यक्षा से भी हाथ जुड़वा लिए। मुलायम का सदन में भाजपा ने समर्थन किया। इससे पहले मुलायम की राकांपा सुप्रीमो शरद पवार से मुलाकात हुई। परदे के पीछे चले इस खेल से सहमी कांग्रेस यह दिखा रही है कि बहुमत उसके लिए समस्या नहीं है। कांग्रेस मान रही है कि मुलायम को जब लगेगा कि सरकार अब किसी कीमत पर नहीं बचेगी तो ही वह समर्थन वापस लेंगे। इसीलिए, वह मुलायम को भी आश्वस्त होने का मौका नहीं दे रही। मगर दिक्कत यह है कि अगर अब मायावती ने भी शर्ते थोपनी शुरू कीं तो संतुलन बनाना कांग्रेस प्रबंधकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

उत्तर प्रदेश के इन दोनों दलों को ज्यादा खुलकर न खेलने देने के लिए ही समर्थन वापसी के बाद भी द्रमुक को कांग्रेस नाराज नहीं कर रही। द्रमुक के समय से पहले ही समर्थन वापसी का कदम उठाने पर वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने हैरानी जताई। उन्होंने कहा कि सरकार संसद में प्रस्ताव लाने के लिए सभी दलों से चर्चा कर रही है और श्रीलंकाई तमिलों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी प्रस्ताव में संशोधन भी पेश करने जा रही है। द्रमुक की समर्थन वापसी के बावजूद कांग्रेस ने खुद को तमिलों के हित की पैरोकार साबित करने के तहत इन दोनों ही मुद्दों पर आगे बढ़ने का फैसला किया।

दरअसल, कांग्रेस इस फैसले से दो हित साध रही है। पहले तो वह गंभीरता दिखाकर यह सुनिश्चित करना चाहती है कि द्रमुक संकट आने की स्थिति में सरकार के खिलाफ न जाए। साथ ही भाजपा व वाम दल संसद में प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, इस आधार पर भविष्य की सियासत में जयललिता यदि राजग या तीसरे मोर्चे की तरफ जाती हैं तो द्रमुक और कांग्रेस उन्हें वहां घेरेंगे।

मुलायम के बचाव में उतरीं सुषमा

नई दिल्ली। द्रमुक के बाद अब सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के तेवरों से सरकार पर बढ़े संकट के बीच भाजपा में भी मंथन तेज हो गया है। बुधवार को भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच राजनीतिक घटनाक्रम के हर पहलू पर लंबा विचार-विमर्श हुआ। वहीं, लोकसभा में पार्टी ने मुलायम के मुद्दे पर बेनी का इस्तीफा मांगकर नया संकेत भी दिया। सुषमा स्वराज ने मुलायम को सम्मानित नेता बताकर उनका बचाव किया।

मुलायम के भाई और राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का हवाला देते हुए कहा कि मनमोहन सिंह गठबंधन धर्म नहीं निभा पा रहे हैं। हर कोई उन्हें छोड़कर जा रहा है, जबकि वाजपेयी सबको साथ लेकर चलते थे।

मंगलवार की चुप्पी के बाद बुधवार को सपा ने एक बार फिर बेनी के आपत्तिजनक बयानों को मुद्दा बनाया। दबाव इतना बढ़ा कि कुछ मिनट में ही कार्यवाही स्थगित हो गई। द्रमुक के समर्थन वापसी के बाद सपा और बसपा पर टिकी सरकार की परेशानी उस वक्त स्पष्ट हो गई जब संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी उठकर मुलायम के पास गई। बताते हैं कि उन्होंने बेनी की तरफ से मुलायम से खेद जताया और आश्वासन दिया कि कार्रवाई की जाएगी, लेकिन संभवत: मुलायम नहीं माने।

कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने आग में घी डाल दिया। उन्होंने मुलायम के पक्ष में कहा कि वह एक सम्मानित नेता हैं। उन पर केंद्रीय मंत्री ने अनर्गल आरोप लगाया है। लिहाजा उन्हें तत्काल मंत्रिमंडल से हटाया जाना चाहिए। मुलायम सुषमा के इस समर्थन से अनुग्रहीत दिखे। सुषमा की सीट तक आकर उन्होंने धन्यवाद जताया। कोई समीकरण हो या नहीं बुधवार को ही रामगोपाल भी वाजपेयी सरकार की प्रशंसा करते दिखे। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वाजपेयी ने गठबंधन धर्म निभाया था, जबकि मनमोहन सरकार में कोई सहयोगी खुश नहीं है। हर कोई छोड़कर जा रहा है।

दो दिन पहले भाजपा ने मुलायम को भी याद दिलाया था कि उनमें स्वाभिमान है तो सरकार से समर्थन वापस ले लेना चाहिए। बताते हैं कि भाजपा के अंदर कुछ लोगों का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव पर भी विचार किया जा सकता है। यह और बात है कि खुद पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव की जरूरत ही नहीं है। बुधवार को वरिष्ठ नेता इकट्ठे बैठे तो हर बिंदु पर चर्चा हुई। फिलहाल भाजपा ‘वेट एंड वाच’ की मुद्रा में है।

बेनी की बलि चाहते हैं सपा प्रमुख

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के बाद की केंद्रीय राजनीति पर अभी से नजरें गड़ाए सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के तेवर बुधवार को अचानक बदल गए। संप्रग सरकार से द्रमुक की समर्थन वापसी होते ही मुलायम हर हाल में अपने पुराने दोस्त बेनी प्रसाद वर्मा की केंद्रीय मंत्रिमंडल से ‘बलि’ चाहते हैं। पार्टी को इससे कम पर कुछ भी मंजूर नहीं है। चाहे सपा को देर-सबेर कुछ भी फैसला करना पड़े।

मुलायम सिंह यादव पर आतंकवादियों से संबंधों से लेकर केंद्र को समर्थन के बदले कमीशन लेने तक के जिन आरोपों को सपा ने मंगलवार को भुला दिया था, बुधवार को पार्टी ने उसी मसले पर संसद नहीं चलने दी। पार्टी के लिए बेनी का अपने बयान पर खेद बेमायने है। सपा के एक रणनीतिकार ने कहा, ‘बेनी मामला फिर से मुद्दा बना है तो वह उनके अनमने खेद के लिए नहीं, बल्कि उनकी बर्खास्तगी के लिए है। ऐसा नहीं हुआ तो सरकार और सपा के रिश्ते खराब होने ही हैं, उसमें समय भले ही लगे।’ मुलायम गुरुवार को संसद भवन में सपा संसदीय दल की बैठक में बताएंगे कि पार्टी सांसदों को सरकार के साथ क्या बर्ताव करना है। इससे पहले सपा सांसदों को इस पर बोलने की मनाही है।

मुलायम बेनी के आरोपों को मुद्दा बनाकर एकसाथ दो निशाने साधने में जुट गए हैं। एक, 34 साल की दोस्ती व राजनीतिक सहयोगी रहने के बाद भी पांच साल से हमलावर बेनी से वह पुराना हिसाब चुकता करना चाहते हैं। मंशा, उन्हें उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर लाना और सोनिया व राहुल की नजर में बेनकाब करना है। दो, केंद्र में आगे की राजनीति के संभावित दोस्तों की तलाश की शुरुआत भी इसी बहाने अभी से करनी है। बुधवार को मुलायम और राकांपा प्रमुख शरद पवार की भेंट भी इसी रोशनी में हुई है। सपा के इस गणित के पीछे उसकी वह सोच भी काम कर रही है, जिसमें वह अगला लोकसभा चुनाव समय से पहले चाहती है। ऐसा होने पर वह उत्तर प्रदेश में अपना फायदा देख रही है। प्रदेश में सपा की सरकार है। चुनाव अगले साल व समय पर होने की स्थिति में उसे नुकसान का अंदेशा है।

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