इस सप्ताह श्रीलंका और सम्बंधित मुद्दे

keshav ram singhalतमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के जबरदस्त दबाव के चलते राज्य में होने वाले आईपीएल मैचों में श्रीलंकाई खिलाड़ियों को खेलने से रोक दिया है। आईपीएल की गवर्निंग काउंसिल ने सभी नौ फ्रेंचाइजी को चेन्नई में श्रीलंकाई खिलाड़ियों को नहीं खिलाने को कह दिया। यह फैसला ऐसे वक्त हुआ है, जबकि आईपीएल-6 में अब सिर्फ एक सप्ताह का वक्त बाकी है। 3 अप्रैल को शुरू होने जा रहे इस टूर्नामेंट में 13 श्रीलंकाई खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं। इनमें से दो श्रीलंकाई खिलाड़ी अपनी टीमों के कप्तान हैं।

तमिलनाडु विधानसभा में श्रीलंका से सम्बंधित मुद्दे इस सप्ताह छाये रहे। श्रीलंकाई नौसैनिकों की ओर से भारतीय मछुआरों पर हमले की बढ़ती वारदात पर चिंता जताते हुए तमिलनाडु सरकार ने मंगलवार 26 मार्च 2013 को केंद्र से आग्रह किया है कि इस पर काबू के लिए वह राजनयिक पहल करे। इसके साथ ही तमिलनाडु राज्य सरकार ने केन्द्र से मांग की है कि 1974 के उस समझौते को खत्म कर दिया जाए जिसके तहत कच्चातीवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 1974 तक इस द्वीप के नियंत्रण पर विवाद रहा. अंग्रेजों के शासन के दौरान इस द्वीप का नियंत्रण दोनों देशों की सरकारें करती थी,  क्योंकि दोनों देश अंग्रेजों के शासन के ही अधीन थे। 1974 में भारत सरकार द्वारा इस द्वीप को भारत के तमिलनाडु राज्य से श्रीलंका सरकार को सौप दिया गया। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता ने तमिलनाडु विधानसभा में एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर हुयी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि अगर यूपीए सरकार मांग को पूरा करने में नाकाम रहती है तो उनकी सरकार कानूनी विकल्प पर विचार करेगी। उन्होंने हमले जारी रहने की निंदा की और कहा कि कच्चातीवु दे दिए जाने के कारण श्रीलंकाई नौसैनिकों की ओर से भारतीय मछुआरों पर हमले हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि श्रीलंका पारंपरिक अधिकारों से जुड़े समझौते के कई प्रावधानों को मान ही नहीं रहा है। ‘बेरूबारी’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1960 के फैसले का जिक्र करते हुए जयललिता ने कहा कि बेरूबारी तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को दिए जाने के खिलाफ उस समय की पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि संवैधानिक संशोधनों के अलावा संसद के दोनों सदनों से मंजूरी के बाद ही ऐसे हस्तांतरण हो सकते हैं। जयललिता ने आरोप लगाया कि डीएमके चीफ एम करुणानिधि ने मुख्यमंत्री के रूप में 1974 में इसका अनुसरण किया होता तो कच्चातीवु श्रीलंका को नहीं सौंपा जाता।

श्रीलंका में तमिलों की समस्या को लेकर भारत में राजनीति तेज हो गई है। इस सम्बन्ध में तमिलनाडु विधानसभा में बुधवार 27 मार्च 2013 को एक प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव में भारत सरकार से संयुक्त राष्ट्र के मंच पर श्रीलंका में अलग तमिल ईलम राज्य बनाने के उद्देश्य से एक प्रस्ताव लाकर जनमत संग्रह कराने की मांग की गई है । इस जनमत संग्रह में श्रीलंका में रह रहे तमिल और दूसरे देशों में निवास कर रहे श्रीलंकाई मूल के अन्य तमिलों को भी शामिल करने की मांग की गई। इसके अलावा भारत सरकार से श्रीलंका को मित्र मुल्क का दर्जा बंद करने और लिट्टे के खिलाफ युद्ध अपराधों के लिए अंतरराष्ट्रीय जांच बिठाए जाने की अपील की गई।प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एक अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। तमिलनाडु मुख्यमंत्री जे जयललिता ने विधानसभा में यह प्रस्ताव पेश किया। इस दौरान जयललिता ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अमेरिका द्वारा श्रीलंका के खिलाफ लाए गए ताजा प्रस्ताव की भी चर्चा की। उधर श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने कहा कि स्‍थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रीलंका देश की शांति बिगाड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं। महिंदा राजपक्षे ने कहा कि देश की शांति बनाए रखना हर नागरिक का कर्तव्य है और वे किसी भी अफवाह पर ध्यान न दें। उन्होंने कहा कि श्रीलंका सरकार ने हमेशा आम लोगों की भलाई के लिए ही कदम उठाए हैं। अब देखना है कि हमारे देश की केंद्र सरकार क्या कदम उठाती है। अभी-अभी मिले समाचार के अनुसार हमारे देश के विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने तमिलनाडु सरकार द्वारा  पारित प्रस्तावों को खारिज कर दिया है और कहा है कि श्रीलंका एक मित्र पडौसी देश है। इस प्रकार भारत सरकार नेश्रीलंका में अलग तमिल ईलम राज्य बनाने के लिए जनमत संग्रह कराने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

एक अन्य समाचार के अनुसार श्रीलंका में जातीय हमले भी देखने को मिल रहे है. श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में बौद्ध भिक्षुओं के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में लोगों ने एक मुस्लिम व्यक्ति की कपड़े की दुकान पर हमला बोल दिया। इससे भविष्य में मुसलमानों और सिंहलियों के बीच तनाव पैदा हो सकता है। श्रीलंका में मुस्लिम विरोधी लहर भी यकीनन चिंता का विषय है।

– केशव राम सिंघल
(लेखक राजनीति विज्ञान के स्नातकोत्तर हैं तथा 1975 में श्रीलंका की यात्रा कर चुके हैं.) 

कृपया लेखक के पिछले दो लेख ‘श्रीलंकाई मुद्दा – सामरिक और राजनैतिक मज़बूरियों के साथ भारत सरकार’ और’संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और श्रीलंका’ भी देखें.

error: Content is protected !!